मिसाइलमैन ‘पीपुल्स प्रेसिडेंट’: डॉ अब्दुल कलाम

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वर्तमान उत्तराखंड का एक पवित्र शहर ऋषिकेश। गंगा का सुरम्य तट। एक युवक बेचैन सा टहल रहा था। उसका ध्यान प्रकृति के सौन्दर्य पर नहीं बल्कि अपने जीवन की उलझनों पर था।

वह दक्षिण के समुद्र तटीय जिले रामेश्वरम से इतनी दूर यहाँ एक इंटरव्यू देने आया हुआ था। उसका परिवार आर्थिक दृष्टि से अधिक सक्षम नहीं था। उसके पिता के आमदनी का स्रोत था मछुआरों को बोट किराए पर देना। पर इससे अधिक आय नहीं हो पाती थी। उस युवक को उसकी बहन ने अपने गहने बेच कर उसे वहाँ जाने के लिए पैसे दिए थे। युवक ने पैसे केवल जाने के लिए लिए लिया था क्योंकि उसे उम्मीद थी उसे नौकरी मिल ही जाएगी। लेकिन उसे नौकरी नहीं मिली। अब उसके पास घर जाने के पैसे भी नहीं थे। कभी ख्याल आता यहीं गंगा में डूब कर अपना जीवन समाप्त कर ले, वापस घर नहीं लौटे।

जब वह युवक अपने विचारों में इस तरह खोया हुआ था, तभी उसे एक संत ने देखा। उन्होने उस युवक से बातें की और उसे अपने आश्रम पर ले आए। भोजन और विश्राम के बाद संत की दिलासे वाली बातों से उसे भरोसा हुआ कि एक नौकरी नहीं मिलने से ज़िंदगी खत्म नहीं हो जाती है। शायद ज़िंदगी ने उसके लिए कुछ और योजना बना रखी होगी। कुछ और, कुछ नया, कुछ बड़ा। वह युवक लौट आया।

ऋषिकेश से लौटने के बाद भी वह युवक हताश नहीं हुआ। वह अपनी पढ़ाई जारी रखे रहा। शांतचित्त से अपने वैज्ञानिक शोधों में लगा रहा। उस युवक का नाम था अबुल पक्कीर जैनुल आबेदिन अब्दुल कलाम, जिसे दुनिया मिसाइल मैन डॉ अब्दुल कलाम के नाम से जानती है।

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डॉ अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम जिले के धनुषकोड़ि नामक गाँव में 15 अक्तूबर 1931 को हुआ था। पाँच भाई और पाँच बहनों सहित एक बड़ा परिवार था। लेकिन पिता की आमदनी इस बड़े परिवार को पालने के लिए अपर्याप्त थी।

डॉ कलाम के पिता यद्यपि अधिक पढे-लिखे नहीं थे लेकिन उनके विचार उच्च कोटि के थे। परिवार के उदार विचारों और संस्कारों का प्रभाव बालक कलाम पर भी पड़ा। वे बचपन से ही बेहद सादगी पसंद और अनुशासित व्यक्ति थे। उनकी आरंभिक पढ़ाई रामेश्वरम में हुई। ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली।   

एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद ही वे पायलट बनाने का सपना लेकर ऋषिकेश इंटरव्यू देने गए थे। वहाँ उनका चयन नहीं हुआ। लेकिन वहाँ से उन्हें एक नया मनोबल और सपना मिला।

अब उन्होने अपना रुझान पायलट से बदल कर अन्तरिक्ष शोध की तरफ कर लिया।

उन्होने अनेक उच्च पदों पर रहते हुए देश के लिए मिसाइल परियोजना सहित अन्य अनेक परियोजनाओं की सफलता के लिए अपना अथक सहयोग दिया।

1980 में भारत का पहला पूर्णतः स्वदेशी उपग्रह ‘रोहिणी’ का पहला सफल प्रक्षेपण उनके नेतृत्व में ही हुआ था। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनिजेशन (डीआरडीओ) में रहते हुए उन्होने ’पृथ्वी’ और ’अग्नि’ जैसे प्रक्षेपात्रों (मिसाइल) परियोजना का नेतृत्व किया। राजस्थान के पोखरण में 1998 में हुए दूसरे परमाणु परीक्षण (शक्ति 2) में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।

कृतज्ञ राष्ट्र ने उन्हे देश के सर्वोच्च वैधानिक पद ‘भारत के राष्ट्रपति’ पद पर सुशोभित किया।

सर्वोच्च पद पर पहुँचने के बाद भी उनकी सादगी, अनुशासन और पढ़ाई का लगन बना रहा। राष्ट्रपति भवन के उद्यान में भी उन्होने लकड़ी और सरकंडों का एक छोटा-सा कमरा बना रखा था जहां वे अपने कंप्यूटर और किताबों के साथ समय बिताते थे।

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एक बार उनके परिवार जन उनके साथ रहने राष्ट्रपति भवन में कुछ दिन के लिए आए थे। उनपर होने वाले खर्च को वहाँ उन्होने व्यक्तिगत रूप से किया था। प्रोटोकॉल के बावजूद वे आम जनता, और विशेष कर बच्चों के करीब जाते थे। उन्हें विज्ञान का महत्त्व बताने का प्रयास करते थे। इन्हीं कारणों से उन्हें लोग ’जनता का राष्ट्रपति’ या ‘पीपुल्स प्रेसिडेंट’ कहने लगे थे।   

उनकी लिखी हुई पुस्तकों में विंग्स ऑफ फायर, इंडिया 2020, इग्नाइटेड माइंड, माय जर्नी, इत्यादि अधिक महत्त्वपूर्ण है।

डॉ कलाम को 48 यूनिवर्सिटी और इन्स्टीट्यूशन से डॉक्टरेट की डिग्री मिली थी। उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत रत्न सहित अनेक सम्मान मिले थे।   

27 जुलाई, 2015 को आईआईटी गुवाहाटी में विद्यार्थियों को संबोधित करते समय कार्डिक अरेस्ट से डॉ कलाम का निधन हो गया। लेकिन उनके कार्य, वैज्ञानिक सोच और ‘द विंग्स ऑफ फायर’ जैसी पुस्तक हमेशा लोगों को प्रेरित और कृत संकल्पित करती रहेगी। 

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