पुनरागमन है…

इसे क्यूँ कहते हो बुढ़ापा  ये तो पुनरागमन है मेरे बचपन का बच्चे ही सही  पकड़ हाथ चलाते हैं मुझे  रोटी ना सही  दवाई कह कहकर खिलाते हैं मुझे  कभी-कभी मचल जाता हूँ    खो भी जाता आपा इसे क्यूँ कहते हो बुढ़ापा  ये तो पुनरागमन है मेरे बचपन का। सिर में छितरे छितरे बाल  […]

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मेरी बातें

छोड़ चलो तुम अहंकार को, बनो नेक इंसान। सदा सत्य मीठी वाणी हो, प्राप्त करो सम्मान।। आज जमाना सुंदरता का, यहीं लगाते ध्यान। चन्द्र तेज सा मुखड़ा जिनका, खूब उन्हें अभिमान।। चार दिनों का जीवन सब का, कभी छाँव अरु धूप। उम्र ढलेगी वृद्धावस्था, ढ़ल जाएगा रूप।। पढ़े लिखे मानव हैं सारे, फिर भी कैसी

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औरों के साथ-साथ स्वयं का विकास भी अत्यंत आवश्यक है

‘‘जो पुल बनाएँगे’’ शीर्षक से अज्ञेय की एक कविता है। कविता इस प्रकार से है: जो पुल बनाएँगे/ वे अनिवार्यतः/ पीछे रह जाएँगे/ सेनाएँ हो जाएँगी पार/ मारे जाएँगे रावण/ जयी होंगे राम/ जो निर्माता रहे/ इतिहास में/ बंदर कहलाएँगे। जो पर्वतों की ऊँची चोटियों पर पहुँचकर झंडा फहराते हैं विजेता कहलाते हैं लेकिन जो

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निकला पुत्र बेदर्द हमारा

निकला पुत्र बेदर्द हमारा। वो ना समझे दर्द हमारा।  स्वर्ग सिधार गई है पत्नी, कोई नहीं हमदर्द हमारा।।1   सारी उमर कमाया खिलाया। लेकर कर्ज, पढ़ाया लिखाया। कफ, पित्त, वायु ने घेरा। वो ना समझे मर्ज हमारा।। निकला पुत्र बेदर्द हमारा। वो ना समझे दर्द हमारा ।। 2 मुश्किल मेरा रोग निवारण। कहते लोग बहू के

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महिलाओं के लिए जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाने का स्वर्णिम अवसर है रिटायरमेंट

समय कितनी तेजी से बदलता है। कब बचपन बीत गया और किशोरावस्था को पार करके युवावस्था में पहुँच गए, पता ही नहीं चला। अपनी पढ़ाई-लिखाई, नौकरी, विवाह और बच्चे, फिर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनकी नौकरी, उनके विवाह, उनके बच्चे, जीवन की अन्य समस्याएँ, उनको सुलझाने की भागदौड़ में एक दिन नौकरी से भी रिटायर हो

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है वृद्धावस्था के लिये?

वृद्धावस्था एक स्वाभाविक व प्राकृतिक घटना होती है। इस अवस्था में स्वत: ही अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी की समस्यायें एक जैसी हो। इन सबके बावजूद वृद्धावस्था को आनन्ददायक बनाया जा सकता है और बनाने के अनेक तरीके भी हैं। लेकिन इसके लिये  कम-से-कम एक उद्देश्य

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