सफीर हो जाता

इश्क का गर सफीर हो जाता।नाम फिर मुल्कगीर हो जाता। जाने कब का अमीर हो जाता।बस ज़रा बे ज़मीर हो जाता। बात मन की अगर सुनी होती,कम न रहता कसीर हो जाता। उस घड़ी बेचता जो ईमां को,एक पल में वज़ीर हो जाता। शब्द होते अगर मेरे बस में,कब का तुलसी कबीर हो जाता। बात हल्की अगर कही होती,हर नज़र में हक़ीर हो जाता। साथ रहता जो उसके तकवा तो,आज रौशन ज़मीर हो जाता। फिर रिहाई उसे नहीं मिलती,ज़ुल्फ़ का जो असीर हो जाता। चूमते भी गले लगाते भी,गर निशाने का तीर हो जाता। ****

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जश्ने ज़िन्दगी

अरे नहीं नहीं….. मैं नहीं कहता हूँ कि पति पत्नी आपस में लड़ो, झगड़ो नहीं। खूब बहस करो, एक दूसरे को जी भर के कोसो, जितना सुनाना है सुनाओ, एक दूसरे की कमियाँ निकालो…. अतीत में जा कर मुद्दे ढ़ूंढ़ो, उस समय तुमने ऐसा किया था, तुमने ये कहा था…. मेरे तो भाग्य खराब थे

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राष्ट्रउत्थान के लिये संकल्पित होने का आह्वान

जैसा सभी प्रबुद्ध पाठक जानते हैं 15 अगस्त, 2022 को देश की आजादी के 75 साल पूरे हो गये हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए 75वीं वर्षगांठ से 75 सप्ताह पूर्व यानि 12 मार्च, 2021 से आजादी का अमृत महोत्सव पूरे देश में 15 अगस्त 2022  तक मनाया जाना था लेकिन सभी वर्ग के उत्साह के मद्देनजर सरकार

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भावना मयूर पुरोहित

अजब चोर (लोककथा)

आत्मकथ्य: प्रस्तुत लोककथा प्रसिद्ध गुजराती लोककथाकार झवेरचंद जी मेघाणी जी के लोककथा संग्रह में से ली है। इसके लिए मैंने उनके पौत्र पिनाकिन भाई मेघाणी जी अनुमति ली है) एक चोर था। उसने एक नियम बना रखा था कि वह साल में केवल एक ही बार चोरी करेगा। एक बार वह एक जंगल के रास्ते से जा

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नमक जैसा मीठा (लोककथा)

पंजाब की लोक कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ। प्रस्तुत लोक कथा स्वर्ण मंदिर (अमृतसर पंजाब) में स्थित ‘दुःख भंजनी बेरी’ पास स्थित सरोवर के संदर्भ में उस काल में पट्टी क्षेत्र के शासक सेठ दुनी चंद की बेटियों में से एक, ‘बीबी रजनी’ के बारे में कही जाती है।) बात बहुत पुरानी है। एक राजा

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खिंचाव (लघुकथा)

समाजसेवी मित्र के साथ एक दिन मुझे वृद्धाश्रम जाना हुआ।  जैसे ही हमारी कार उस परिसर में जाकर ठहरी,  सभी वृद्धाएं एक साथ अपने-अपने कमरों से बाहर आकर, हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं। मुझे, ये अच्छा नहीं लगा। मैंने एक वृद्धा के पास जाकर, नमस्कार करके कहा- माँ, हमें हाथ मत जोड़ों, हम सब तो

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शूर्पणखा (लघुकथा)

“अपनी नाक कटवाने के बावजूद तुम्हें बात समझ नहीं आई। तुमने औरत होकर औरत का वजूद नहीं समझा। धिक्कार है तुम्हारा औरत होना।” सीता के प्रत्युत्तर में शूर्पणखा ने कहा- “सीते! मैंने अपनी नाक नहीं कटवायी; बल्कि बलात काट दी गयी।” शूर्पणखा की बात सुन सीता से रहा नहीं गया। बोली- “परपुरुष के प्रति तुम्हारी

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अपना सूरज

दुनिया में कई बड़े बड़े वैज्ञानिक प्रयोग हुए हैं, वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं, बड़े-बड़े वैज्ञानिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं। लेकिन यह सब समान्यतः कोई सरकार या बड़ी बड़ी कंपनियाँ चलाती हैं। पर आज कहानी एक ऐसे प्रोजेक्ट की जहां एक छोटे से गाँव के लोगों ने अपने बल पर अपना एक कृतिम सूर्य बना लिया।  

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