कहानी

बरसात

होगा वसंत ऋतुराज लेकिन विरह, अभिसार और कजरी तो बरसात में ही संभव है। वसंत अगर ऋतुराज है तो बरसात मधुमास। इसका अर्थ यह भी नही की बरसात में सबकुछ मधुर-मधुर है। सुख और दुःख तो जीवन के दो चक्र हैं। जब हम अपने जीवन के व्यक्तिगत इतिहास में देखते हैं तो लगता है कहाँ […]

बरसात Read More »

टेक केयर (लघुकथा)

पापा बहुत ख़ुश थे कि उनका बेटा विदेश में अच्छी तरह से सैटल हो गया था। बेटे ने वहीं एक विदेशी युवती से शादी कर ली और उनके दो बच्चे भी हो गए। अब तो उसने अपना एक अच्छा सा मकान भी ले लिया है और बच्चों के साथ मज़े से वहीं रह रहा है।

टेक केयर (लघुकथा) Read More »

वसीयतनामा (लघुकथा)

“एक ही घर में अब एक साथ रहना बहुत मुश्किल है बाबूजी। मुझे अपना हक चाहिए।” बड़े बेटे राजेश ने अपनी बात रखी। “आज तुम्हें क्या हुआ राजेश! पहले तो ऐसी बातें नहीं किया करते थे; और बेटे, एक साथ रहने में ही सबकी भलाई है।” बूढ़े व बीमार पिता गोपाल जी ने कहा- “देखो

वसीयतनामा (लघुकथा) Read More »

अग्निदाह

हैलो..हैलो..,हैलो..पमा!” “हां। हैलो..बोल बालू।” “मैं गांव में आया हूँ। तू कहाँ है?” -“मैं काम पर हूँ। रात को जल्द घर आया तो मिलता हूं; नहीं तो कल मिलेंगे।” “ठीक है। रखता हूँ। बाय।” दूसरे दिन दोपहर के समय रास्ते से जोर से आवाज आया, “बालू है घर पर।” माँ ने घर का गेट खोला, तो

अग्निदाह Read More »

तिथियों वाला कैलेंडर (लघुकथा)

“गुड़ी पड़वा” के दिन तिथियों वाला हिंदी कैलेंडर खुशी से फूला नहीं समा रहा था। वह कभी दाएं डोल रहा था तो कभी बाएं…! दूसरी दीवार पर टंगे अंग्रेजी कैलेंडर को उसकी खुशी फूटी आंखों नहीं सुहा रही थी।        “ए मिस्टर… तुम ज्यादा मत खुश हो! मेरे व्यक्तित्व के सामने तुम्हारा क्या अस्तित्व? जैसा

तिथियों वाला कैलेंडर (लघुकथा) Read More »

प्रेम का परिमार्जन

शोभना ने अपना जीवन अपनी गृहस्थी के हवाले कर दिया था। सौ प्रतिशत का उसका यह प्रयास बेहतर परिणाम दे रहा था। एक आदर्श नींव पर उसका परिवार भली प्रकार फल-फूल रहा था और क्यों ना हो, शोभना अपने खून-पसीने से इसका सिंचन जो कर रही थी।        यूँ तो सास-ससुर साथ नहीं रहते थे

प्रेम का परिमार्जन Read More »

समझदार चिड़िया (लोककथा)

(आत्मकथ्य- दादी नानी की कहानियाँ)  एक चिड़ा और एक चिड़िया थी। दोनों बड़े प्रेम से साथ साथ रहते थे। एक दिन चिड़ा को चावल व चिड़िया को दाल मिली। दोनों ने मिलकर खिचड़ी बनाने की सोची। दोनों अग्नि-पानी व बर्तन की व्यवस्था में जुट गये। चिड़िया कुम्हार के यहाँ से सिराई (मिट्टी का सकोरा) भी

समझदार चिड़िया (लोककथा) Read More »

ढोला–मारू (लोककथा)

आत्मकथ्य- राजस्थान का इतिहास प्रेम, भक्ति, त्याग, शौर्य और बलिदान की गाथाओं से भरा पड़ा है। यहाँ के कण-कण में मीरा के भजन, पन्ना धाय के त्याग, महाराणा प्रताप, गोरा–बादल, चेतक, रामदेव पीर, ढोला–मारू और वीर तेजा जी की कहानियाँ बसी हुई हैं। उन्हीं में से एक प्रेम लोक कथा है– ‘ढोला–मारू’ जिसे सबसे पहले

ढोला–मारू (लोककथा) Read More »

Scroll to Top