ग्रामीण रोजगार
एक खुशहाल देश के लिए एक खुशहाल गाँव की आवश्यकता एक निर्विवाद सत्य है। वर्तमान संदर्भ में यह प्रश्न एक बार फिर से इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है कि लॉक डाउन में एक बड़ी संख्या में लोग शहरों से गाँव वापस चले गए हैं। जिसे कई लोग रिर्वस migration भी कह रहे हैं। इनमें से अगर बहुत से लोग वापस आ गए फिर भी बहुत-से लोग गाँव में रह जाएँगे। इनके लिए वहाँ रोजगार की आवश्यकता होगी।
गाँव में रोजगार की आवश्यकता इसलिए भी है कि गाँव से शहरों की तरफ पलायन से जो जनसंख्या वितरण में गाँव और शहर के बीच असंतुलन आने लगा है, शहरों पर जो अतिरिक्त दबाव पड़ा है, उसे कम किया जा सके।
ग्रामीण रोजगार की विशेष प्रकृति
लेकिन गाँव में रोजगार के प्रकृति शहरों की तुलना में थोड़ा अलग होता है। गाँव में रोजगार के लिए इन तथ्यों को ध्यान में रखना होगा:
- शहरों की तरफ पलायन के कारण गाँवों में महिलाओं और बुजुर्गों की संख्या अधिक हो गई है। इसलिए किसी भी तरह के रोजगार योजनाओं में इनका विशेष ध्यान रखना होगा।
- स्थानीयता का भी ध्यान रखन होगा। स्थानीय और परम्परागत उत्पादों, कलाओं, शिल्प आदि को रोजगार से जोड़ना होगा।
- इनके लिए कच्चा माल, तकनीकी कौशल और श्रम स्थानीय स्तर पर मिल जाएगा। पर प्रशिक्षण, पूंजी और बाजार की आवश्यकता होगी।
ग्रामीण रोजगार के लिए सरकार की योजनाएँ
ग्रामीण रोजगार के लिए राज्य और केंद्र दोनों स्तर पर कई योजनाएँ चलाई जा रहीं है।
केंद्रीय स्तर पर केंद्र सरकार के पाँच मंत्रालय विशेष रूप से ऐसी योजनाएँ चला रहीं हैं। ये मंत्रालय हैं:
ग्रामीण विकास मंत्रालय (the Ministry of Rural Development) – ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास के उद्देश्य से ही इसका गठन किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, आवास और सड़क निर्माण आदि इसकी की जिम्मेदारी है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के दो विभाग हैं:
- ग्रामीण विकास विभाग; और
- भूमि संसाधन विभाग।
ग्रामीण विकास विभाग वर्तमान में ग्रामीण विकास के तीन योजनाओं को संचालित कर रहा है। ये योजनाएँ हैं:
- प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (PMGSY)
- स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SJSY)
- प्रधानमंत्री आवास योजना
ये तीनों योजनाएँ क्रमशः ग्रामीण सड़क निर्माण, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और ग्रामीण क्षेत्रों में आवास निर्माण के लक्ष्य को लेकर चलाए जा रहें हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण जिला विकास अधिकरण (District Rural Development Agency – DRDA) के द्वारा इन योजनाओं का संचालन करता है।
इसके तहत तीन स्वायत्त संस्थाएं भी कार्य करतीं हैं-
- Council of Advancement of People’s Action and Rural Technology (CAPART),
- National Institute of Rural Development (NIRD)
- National Rural Road Development Agency (NRRDA)
मंत्रालय का भूमि संसाधन विभाग ये योजनाएं चला रहा है:
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना;
- Digital India Record Modernization Programme;
- नीरांचल नेशनल वाटरशेड प्रोजेक्ट.
यह विभाग उपर्युक्त तीन के अतिरिक्त GIZ led Pilot Land Use Planning and Management Project और Ease of Doing Business – initiatives भी संचालित कर रहा है।
वर्तमान में ग्रामीण विकास और रोजगार के लिए जो समेकित योजनाएं चल रहीं हैं उनमें सबसे प्रमुख और चर्चित योजना है महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi Employment Guarantee Scheme – मनरेगा)।
मनरेगा को लागू करने के लिए 2005 में महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी एक्ट, 2005 पारित किया गया। यह के समेकित योजना है जिसमें रोजगार के साथ-साथ श्रमिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा का भी लक्ष्य रखा गया है।
यह पहला कानून है जो वर्ष में कम-से-कम 100 दिन के “काम के अधिकार” की गारंटी देता है। इसके तहत होने वाले निर्माण कार्य से ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना का भी विकास होता है । यह देश के 625 जिलों में लागू है।

इस योजना के लिए नोडल एजेंसी भारत सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय ही है। इसका कार्यान्वयन ग्राम पंचायतों के द्वारा होता है। इसमें किसी भी स्तर पर किसी भी कार्य के लिए ठेकेदारों (contractors) के उपयोग पर पूर्ण पाबंदी है।
यह “सामाजिक सुरक्षा और लोक निर्माण के लिए” विश्व की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना है। विश्व बैंक ने अपने “विश्व विकास रिपोर्ट, 2014” में इस योजना को “stellar example of rural development” कहा था।
विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा और ग्रामीण आधारभूत संरचना के निर्माण के अलावा मनरेगा से पर्यावरण के संरक्षण, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक समानता आदि को भी बढ़ावा मिला है। ऐसी योजनाएँ गाँवों से शहरों की तरफ पलायन को कम करने में भी सहायक हो सकती हैं।
श्रम और रोजगार मंत्रालय (Ministry of Labour and Employment)
यह श्रमिकों, विशेष रूप से गरीब, वंचित और कमज़ोर वर्ग के श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कार्य करता है। ताकि श्रमिकों के लिए कारी की दशाएँ अनुकूल हो और उत्पादकता में वृद्धि हो। 2014 में कौशल विकास उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship) की स्थापना से पहले कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण भी इसके अंतर्गत ही था पर अब यह नव गठित मंत्रालय को हस्तांतरित हो गया है।
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने 20 जुलाई, 2015 को एक नेशनल करियर सर्विस पोर्टल शुरू किया जिसका उद्देश्य है नौकरी देने और लेने वाले दोनों को एक जगह मिलाना।
कौशल विकास उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship)
ग्रामीण रोजगार में सहायता देने वाला तीसरा मंत्रालय है कौशल विकास उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship)। यह मंत्रालय देश भर में कौशल विकास (skill development) के लिए प्रयास करता है ताकि एक तरफ रोजगार के लिए माँग और उसकी आवश्यकता के अनुसार कुशल श्रम की पूर्ति दोनों में संतुलन बना रहे।
यह देखा जा रहा है कि एक तरफ लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है, तो दूसरी तरफ रोजगार देने वालों को आवश्यकता के अनुरूप कुशल श्रम नहीं मिल रहा है। इसी अंतराल को खतम करना इसका उद्देश्य है। मंत्रालय ऐसे नए विचारों और आविष्कारों को भी प्रोत्साहित करता है जिससे रोजगार सृजन हो।
कुछ अन्य मंत्रालय जैसे वस्त्र मंत्रालय (विशेष कर खादी और हथकरघा विभाग), पर्यटन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला हस्त शिल्प और हस्त कला (art & craft) विभाग आदि स्थानीय शिल्प और कला के विकास और तटसंबंधित प्रक्षीक्षण के लिए अनेक योजनाएँ संचालित कर रहीं हैं।
ऐसी योजनाएँ केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और कई गैर-सरकारी संगठन भी चला रहें हैं। स्थानीय कला और के प्रदर्शनी आदि के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के लिए बाधाएँ:
पर इतने प्रयासों के बावजूद अभी भी गाँवों में रोजगार की जरूरत है। इतने बड़े पैमाने पर रोजगार मनरेगा या किसी योजना से होना संभव नहीं है। स्वरोजगार इसके लिए आवश्यक है।
- प्रशिक्षण और पूँजी की कमी
- उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार तक उचित समय और उचित खर्चे में पहुँच का अभाव
- कोल्ड स्टोरेज जैसे आधारभूत सुविधाओं का अभाव।
- गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा आदि की कमी जिस कारण कार्यशील जनसंख्या का एक बड़ा भाग शहरों में पलायन कर गया है। गाँवों में स्त्रियाँ और बुजुर्ग अधिक रह गए हैं। किसी भी रोजगार योजना में इन लोगों को भी ध्यान रखा जाए। अगर गाँवों में रोजगार की सुविधा हो तो संभवतः वहाँ से पलायन भी रुकेगा और श्रमशक्ति उपलब्ध हो सकेगी।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए आवश्यकताएँ क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं, संसाधनों और भौगोलिक विशेषताओं के अनुरूप छोटे-छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना। कृषि से संबंधित
- उद्योगों के विकास की अभी देश में असीम संभावना है।
- स्थानीय कला और शिल्प को बढ़ावा देना।
- अंतर्देशीय पर्यटन को बढ़ावा देना।
- स्थानीय उत्पादों को सुरक्षित रखने और समय से मंडी तक पहुँचने की व्यवस्था। बहुत से किसान सूचना के आधुनिक साधनों का उपयोग कर अगर अपने योग्य बाजार का पता लगा भी लेते हैं तो अपने उत्पादों को उस बाजार तक ले जाने का समय या खर्च इतना अधिक हो जाता है कि वे विवश होकर उसे स्थानीय बाजारों में ही कम दामों पर बेचते हैं या कभी-कभी तो फसलें खराब हो जाती हैं या फेंक दी जातीं हैं।
निष्कर्ष
गाँवों और शहरों दोनों के संतुलित विकास के लिए जरूरी है कि दोनों एक हद तक आत्मनिर्भर हों लेकिन शहरों का अपने नजदीकी गाँवों से ऐसा संबंध हो कि गाँव के उत्पादन शहर के बाजारों को यथाशीघ्र मिल सके। तो दूसरी तरफ शहर की सुविधाएँ आवश्यकता के समय गाँवों को भी उपलब्ध हो सके।