वृद्धावस्था में व्यवहार में परिवर्तन

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 कहते हैं ढ़लती उम्र के साथ लोगों को अपनी सारी इच्छाएं सीमित कर लेनी चाहिए। ऐसा करना दैहिक, मानसिक और पारिवारिक तीनों तापों का समन कर सुख शांति प्रदान करने वाला और हितकारी होगा। मगर ऐसा होता नहीं है। बुढ़ापे में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए और भी ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है।

कल्पना झा
दिल्ली

      आइये जानते हैं बुजुर्गों की कुछ मूलभूत समस्याओं से उत्पन्न उनके व्यवहाए में होने वाले परिवर्तनों के कारण और निदान के विषय में।

   वृद्धावस्था  धीरे-धीरे मानव शरीर में आने वाली एक ऐसी अवस्था है जो  स्वभाविक व प्राकृतिक प्रक्रिया है। वृद्धावस्था या बुढ़ापा जीवन की उस अवस्था को कहते हैं, जिसमें उम्र मानव जीवन की औसत काल के समीप या उससे अधिक हो जाती है। इस अवस्था में कई तरह के रोग लगने की अधिक सम्भावना होती है। साथ ही अनेकानेक अन्य समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती है।

      इस अवस्था में कुछ शारीरिक परिवर्तन भी होते हैं जिनमें मुख्य हैं- अंगों में शिथिलता आना, सभी अंगों की अवनति, क्षीण सहनशक्ति आदि। प्रत्येक वृद्ध मनुष्य की ऊँचाई 2 से 5 प्रतिशत तक कम हो जाती है। साथ ही व्यवहार में कई तरह के परिवर्तन आ जाते हैं, जैसे- चिड़चिड़ापन, अत्यधिक भावुकता, स्मृतिलोप आदि। इनमें से कुछ परिवर्तन तो शारीरिक एवं भावनात्मक कारणों से होते हैं तो वहीं कुछ समयानुकूल पारिवारिक और सामाजिक बदलाव के कारण उपजी परिस्थतियों के कारण।

वर्तमान में सबसे बड़ा परिवर्तन जो बुजुर्गो में देखा गया है वो निम्नलिखित कारणों से आते हैं। आइये इन पर एक नजर डालते हैं-

1. सेवा का अभाव

2. अपनो की उपेक्षा

3. आर्थिक तंगी

4. अकेलेपन का दर्द

5. घर से बेघर होने का भय

1. सेवा का अभाव 

      बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलाव आता है। ढ़लती उम्र अधिकांश अंगों को प्रभावित करती है। इसलिए इस समय बुजुर्गों को समुचित देखभाल अर्थात सेवा की आवश्यकता होती है। अपने प्रियजनों से थोड़ा मान-मनुहार और प्यार के साथ ही संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। जो नहीं मिलने के कारण बुजुर्गों के लिए बहुत ही दुःखदायी स्थिति उत्पन्न करती हैं ।

      वृद्धावस्था में जैसे-जैसे शरीर कमजोर होने लगता है शरीर में कई तरह की बीमारियों का आगमन भी शुरू होने लगता है। बीमारी बढ़ने के कारण दिनचर्या पूरी तरह से प्रभावित होने लगती है, डाक्टर, हॉस्पिटल का चक्कर शुरू हो जाता है। बहुत से दवाओं के साथ बहुत से परहेज भी होते हैं। ऐसे में आवश्यकता होती है उनके सही देख-रेख की। इन परिस्थितियों में अगर उनके पास अगर समुचित देख-रेख करनेवाले न हो तो परिस्थितियां और जटिल होती चली जाती हैं।

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2. अपनों की उपेक्षा

      कल तक जो घर के गृहस्वामी या गृहस्वामिनी थे, घर का सारा निर्णय स्वयं लेते थे, अपनी मर्जी से जीते थे, पूरे परिवार पर उनका दबदबा कायम था, वे अब कमजोर पड़ने लगते हैं। घर को सम्हालने की जिम्मेदारी किसी और कंधों पर आ जाती है। ऐसी स्थिति के अनुकूल होने के लिये उनको अपने परिवार का भरपूर स्नेह और आदर की आवश्यकता होती है। अगर दोनों पति-पत्नी सौभाग्य से साथ हों तो दोनों के लिए साथ मिलकर ऐसी परिस्थितियों को सम्हालना थोड़ा आसान हो जाता है मगर किसी एक की कमी उन्हें और भी कमजोर और चिड़चिड़ा बना देती है। ऐसे में बुजुर्गों के साथ थोड़ा सामंजस्य स्थापित करना, थोड़ा आदर देना बहुत जरूरी हो जाता है। अन्यथा उनके अन्दर का चिड़चिड़ापन और भी बढ़ने लगता है जो उन्हें हताश कर देती हैं, और जो सबके लिए हानिकारक है।

      आजकल लोगों की सोच बदल गई है, वे बूढ़े लोगों की उपेक्षा करने लगे हैं। कई घरों में बुजुर्गों को अपने घर में भी अलग-थलग कर दिया जाता है। बच्चों को उनसे दूर रखा जाने लगता है। इतना ही नहीं उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार कर उन्हें अपमानित भी किया जाता है। फलतः बूढ़ा शब्द अब गाली के रूप में रूढ़ हो गया लगता है। आज की कई युवा बुजुर्गों को वो सम्मान नहीं दे पाते जिनके हकदार वो होते हैं। यही कारण  है कि आज के बुजुर्गों के मन में एक डर-सा बैठ गया है। वो अपने आपको असहाय महसूस करने लगे हैं, और इसी भय के कारण और भी कई समस्याएं उत्पन्न होने लगती है।

3. आर्थिक तंगी

      वे कामकाजी लोग भाग्यवान होते हैं जिन्हें अवकाशप्राप्त करने के बाद पेंशन मिल रहा हो, या अपने बच्चों से आवश्यकतानुसार धन या आवश्यक वस्तुएं मिल जाता हो। पर अधिकतर लोगों के जीवन में आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है।  जबकि यही वो उम्र है जब हमारे शरीर को ज्यादा से ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है।

      बढ़ती उम्र में खान-पान का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है। बढ़ती उम्र के कारण लोगों को कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और ऐसे में पर्याप्त पोषण की कमी से स्थिति की गंभीरता बढ़ सकती है। इसलिए बुजुर्ग लोगों के लिए उचित पोषक तत्वों का सेवन जरूरी है।

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      व्यक्ति को समझने की जरूरत है कि बढ़ती उम्र के हिसाब से क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। 50 साल की उम्र के बाद कुछ ऐसी विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, जिनके कारण भोजन का सेवन कम हो सकता है। जैसे- भूख की कमी, स्वाद या गंध पहचानने की कमी, चबाने या निगलने में कठिनाई, शारीरिक शक्ति या गतिशीलता की कमी, गंभीर बीमारी या अधिक दवाओं का सेवन इत्यादि। इन सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन चाहिए, जो उम्र के इस पड़ाव पर कुछ ऐसे भाग्यवानों के पास ही संभव है जो पेंशनभोगी हैं या जिनके बच्चे बड़ों को आदर देना और उनकी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करना अपना कर्तव्य समझते हैं। महिलाओं को इस समस्या से ज्यादा जूझना पड़ता है। 

4.  अकेलापन का दर्द

      उम्र के इस पड़ाव पर कुछ लोग ही भाग्यशाली होते हैं जिनके जीवनसाथी साथ होते हैं। अगर दोनों साथ हों तो आने वाले किसी भी विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना आसान हो जाता है। पर किसी भी वजह से अगर अकेले रह जाएं तो जीवन जीना बहुत भारी पड़ता है। कुछ संक्रामक रोगों के कारण परिस्थितियां और भी भयावह हो जाती है। ऐसे में चाहिए कि परिवार का भरपूर स्नेह और आदर मिले जो कई कारणों से संभव नहीं हो पाता।

      पर इसके लिए हम नयी पीढ़ी को पूर्णतः दोषी नहीं ठहरा सकते क्योंकि पहले सम्मिलित परिवार हुआ करता था। रहन-सहन कुछ और ढंग का होता था। उस समय भी संक्रामक बीमारियों से खुद को और बच्चों को दूर रखा जाता था पर तरीके अलग हुआ करते थे। बुजुर्गों को कभी महसूस ही नहीं हो पाता था कि उनको अलग-थलग किया जा रहा है जैसे- उनके लिए अलग कमरे में विशेष रूप से कुछ खास इंतजाम किया जाता था। साफ-सुथरा बिछावन, चांदी या अन्य उच्च कोटिके धातुओं से निर्मित रोज इस्तेमाल के बर्तन- थाली, लोटा, ग्लास, चम्मच आदि। बिस्तर के पास ही टेबल पर कुछ धार्मिक पुस्तकें रखी जाती थी। घर की बहू-बेटियों को परदा प्रथा के कारण पहले ही बुजुर्गों के पास कम आना-जाना होता था, बच्चों को भी यह कहकर दूर रखा जाता था कि- भागो यहाँ मत आओ दादा-दादी का बिस्तर गंदा हो जायेगा। दादा-दादी के कीमती बर्तनों में कोई और खाना नहीं खायेगा। दादा-दादी के कमरे में आकर शोर मत करो इससे दादा-दादी परेशान होते हैं, आदि।

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      पर आजकल सब उलट-पलट हो चुका है। पहले जीविकोपार्जन का साधन भी कुछ अलग था। आजकल लोगों को घर छोड़कर बाहर जाकर अलग दुनिया बसाना पड़ता है जिससे एकल परिवार का चलन आ गया है। लोग छोटे-छोटे कमरों में किसी तरह गुजर-बसर करते हैं। ऐसे में कुछ मजबूरियों ने धीरे-धीरे इनके जीवन के मायने ही बदल दिये जो इनकी आदत बनती चली गई। और अब तो बुजुर्गों को अपमानित करना, घर से बेघर करना स्टेटस सिंबल बन गया है। कुछ बड़े लोगों को बुजुर्गों को अपने साथ रखने में अपनी तौहीन  नजर आती है। और इन्हीं परिस्थितियों ने बुजुर्गों को नितांत अकेला कर दिया है।

5.  घर से बेघर होने का भय

      आजकल जिस तरह से सामाजिक बदलाव देखने में आ रहा है उसमें मानवीय मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। लोगों में मनमानी करने, स्वतंत्रता और विद्रोही प्रवृत्ति ने पूरी तरह घर कर लिया है। उनका जीवन मूल्य क्या है वो खुद भी नहीं समझ पाते। सबका चित्त चंचल हो गया लगता है। वे पाश्चात्य जीवन शैली से प्रभावित हो भारतीय संस्कार और संस्कृति को भूलने लगे हैं। बड़े-बुजुर्गों से आज की युवा पीढ़ी इस हद तक ऊब चुके हैं  कि घर से बाहर भगा देना, कहीं अनजान जगह ले जाकर ये कहकर छोड़कर आना कि तुम यहाँ बैठो मैं अमुक काम कर अभी आते हैं, किसी ट्रेन या बस में बैठाकर छोड़ आना, किसी तीर्थ स्थल में छोड़ कर आ जाना जैस क्रूर समाचार भी अक्सर देखने सुनने में आ जाता है। और अब तो उनको और भी अच्छा विकल्प वृद्धाश्रम के रूप में मिल गया है जहाँ बूढ़े माँ-बाप को छोड़ आना फैशन बनता जा रहा है। इन सब करतूतों मे फिर भी कुछ तो मानवता का अंश दिखाई देता है पर इंसानियत तो तब शर्मसार हो जाती है जब आये दिन अखबार या विभिन्न न्यूज चैनल और सोशल मिडिया के माध्यम से ये खबड़ें आती हैं कि- बेटे ने माँ को छत से फेंका, बहू ने ससुर को झाड़ू से पीट-पीटकर मार डाला, बेटी ने धनके लालच में पूरे परिवार को जहर देकर मार डाला।

      इस तरह की घटनाओं का होना बुजुर्गों ही क्यों, हर किसी का कलेजा काँप उठता है। पता नहीं हम और हमारा समाज किस दिशा में जा रहे हैं? क्या इसी को आधुनिक सभ्य और विकसित समाज कहते हैं? इससे तो हम अविकसित, असभ्य और गँवार ही अच्छे थे।

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