विकार

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निशांत रौनक
छात्र, (अंतिम वर्ष, कंप्यूटर इंजीनियरिंग)गाजियाबाद, उ प्र
 

मिट्टी से ही बनता तू, मिट्टी में ही दफन होगा,

पानी से वो शीतल मन, जल ही आखरी संगम होगा।

तपिश तेरे जीवन की, अग्नि से ही राख होगी,

आकाश से ऊँची तेरी सोच, हवा में तेरी साज़ होगी।

पंचतत्व का ये शरीर जाने कौन बनाता है,

खाक से जन्मे, खाक में उपजे, फिर खाक हो जाता है।

मोहताज़ जीवन वक़्त का, समय ही आखरी सच,

खुशी, दुख और मेहनत से जीवन जाता रच।

स्वस्थ रहेगा तेरा तन, जब करे रक्त तू दान,

वक़्त के जीवन काल में खुशियों के हो बाण।

प्रातः भोर से उठकर तू दे भानु का साथ,

खुद के आत्मविश्वास से तू कर दिन की शुरुआत।

भगवान बसता तेरे अंदर, खुद को क्यों भटकाता है,

पलभर के आनंद के लिए नशे से तेरा नाता है।

चाहे तो भी कब पूरे विश्व में शांति होगी,

निरोग जीवन की उपलब्धि की जब सारे जहाँ में क्रांति होगी।।।

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