मैं पढ़ना चाहती हूँ

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    डॉ. भूपेन्द्र ‘अलिप’

“तोड़ती पत्थर’ के रचनाकार कौन हैं?” शिक्षक ने ग्यारहवीं वर्ग में पढ़ने वाली उन सारी लड़कियों से पूछा जो उस वक्त उस वर्ग कक्ष में मौजूद थीं। अगली पंक्ति में बैठी पूजा ने झट से हाथ उठाकर जवाब दिया- ‘निराला’।

‘ठीक है! अच्छा पूजा के अलावा तुम लोगों में से कोई बता सकती हो कि निराला जी का पूरा नाम क्या है?” 

शिक्षक ने पुनः प्रश्न किया। वर्ग कक्ष में सन्नाटा-सा छा गया|  

दरअसल हिन्दी शिक्षक विनायक सर हर पाठ को पढ़ाने के पश्चात् उस से संबंधित प्रश्नों की तैयारी वर्ग में ही करवा दिया करते थे। यह प्रश्नोत्तर उसी शृंखला की एक कड़ी थी।  

शिक्षा का प्राचीन केंद्र नालंदा से 10-12 किलोमीटर दूर एक सरकारी +2 कन्या विद्यालय। यहाँ ग्रामीण एवं शहरी दोनों परिवेश की अपेक्षाकृत कमजोर परिवार की लड़कियां पढ़ती हैं। ग्यारहवीं कक्षा में कला संकाय में  नामांकित 40 छात्राओं में लगभग बीस छात्राएं नियमित कक्षा में मौजूद रहती हैं; जिसमें पूजा, काजल, सीमा और माधुरी पढ़ाई में अच्छी हैं। बाकी लड़कियां भी तन से कक्षा में मौजूद रहती हैं पर उनका मन पढ़ाई से ज्यादा छोटी-मोटी घरेलू परेशानियों में उलझा रहता है।  इसलिए शिक्षक के द्वारा पूछा गया सवाल उनके लिए  यक्ष प्रश्न के समान था और आज काजल, सीमा तथा माधुरी तीनों क्लास में अनुपस्थित थीं।     

शिक्षक के द्वारा पूछे गये प्रश्न के जवाब में सबकी चुप्पी ने उनका ध्यान इस ओर खींचा कि आज तीनों लड़कियां अनुपस्थित हैं। उनकी सखियों से पूछने पर पता चला कि माधुरी की शादी के लिए लड़केवाले उसे देखने आने वाले हैं। चूँकि काजल और सीमा माधुरी की पक्की सहेलियाँ हैं इसलिए वे भी उसी की घर गई हैं।  

यह सुनकर विनायक सर का मन गुस्से से भर उठा।

“कैसी बेवकूफ लड़कियां हैं कि पढ़ाई से ज्यादा महत्वपूर्ण इनके लिए शादी-ब्याह हो गया!”

फिर अगले ही पल उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि इसमें लड़कियों का क्या दोष? उनके घरवाले ही अनपढ़ और गँवार हैं तो फिर ये छोटी-छोटी लड़कियाँ क्या कर सकती हैं।

वर्ग में बैठी लड़कियों को समझाते हुए उन्होंने कहा- “मैंने तुम लोगों को कितनी बार कहा है कि शादी-ब्याह की उम्र होती है| कम उम्र में शादी करना किसी सूरत में अच्छा नहीं। ना तो तुम्हारी बुद्धि परिपक्व होती है और ना ही शरीर। और 18 से कम उम्र में शादी करना कानूनन अपराध भी है।”

लड़कियों ने चुपचाप विनायक सर की बात सुनी। कोई प्रतिक्रिया नहीं। वे जानती हैं कि सर किताबी बातें करते हैं। असल जिंदगी में इन बातों का कोई खास महत्त्व नहीं। होगा वही जो किस्मत में बदा होगा। विनायक सर ने भारी मन से लड़कियों को यह समझाते हुए कि ‘तुम लोग ऐसा नहीं करना,’ अपना क्लास खत्म किया।

16 वर्ष की माधुरी लगभग सभी शिक्षकों की दुलारी थी। इंटर ‘कला’ की छात्रा। मैट्रिक में 70 प्रतिशत अंकों के साथ विद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त करने के पश्चात् अपने घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उसने कला (Arts) विषय से इंटरमिडियट (Intermediate) करने का फैसला लिया। हालाँकि गणितवाले संतोष सर चाहते थे कि माधुरी विज्ञान संकाय की विद्यार्थी बने।

माधुरी के घर में अच्छी खासी चहल-पहल है। सीमा और काजल उसको सजाने-सँवारने में लगी हुई हैं। उन्हें पता है कि लड़केवाले बड़े दालान में बैठे नाश्ता कर रहे हैं और उसके बाद सीधे माधुरी को देखने घर आ जाएंगे|  माधुरी के चेहरे पर प्रसन्नता के कोई भाव ना देखकर सीमा ने उससे ठिठोली करते हुए कहा- “क्यों सखी! अपने दूलहा को याद कर रही हो?”

सीमा की बात सुनकर इस शादी से नाखुश माधुरी का चेहरा रुआँसा हो गया। काजल ने इस बात को ताड़ लिया और माहौल बदलने के लिए झट से बोल पड़ी- “अरे छोड़ो भी, माधुरी हमारी दोस्त है और मुझे पता है कि वह इस वक्त क्या सोच रही है।”

काजल की बात सुनकर माधुरी की आँखें किसी गहरे शून्य में खो गईं। उसके जेहन में इंट्रोडक्शन क्लास में बैठे क्लास टीचर विनायक सर के शब्द गूंजने लगे- “बस आप लोगों को आज अपना लक्ष्य तय कर लेना है। इसलिए आप अपना परिचय देते हुए बस तीन बातें बताएं। सबसे पहले अपना नाम,  फिर अपना पसंदीदा विषय और फिर आपके जीवन का उद्देश्य यानी आपको बनना क्या है?” सारी लड़कियाँ एक-एक कर अपने बारे में बतलाती जा रही हैं। कोई बैंक में जॉब करना चाहती हैं तो कोई जीविका समूह में जाकर समाज सेवा करना चाहती है;  कोई पुलिस बनना चाहती हैं तो किसी को पता ही नहीं है कि उसे क्या बनना है। जब माधुरी की बारी आई तो उसने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा- “मैं हिंदी शिक्षिका बनना चाहती हूँ।”

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दरअसल वह विनायक सर की शिक्षण शैली एवं उनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी प्रशंसक थी। वर्ग नवम में जब इसी विद्यालय में उसका नामांकन हुआ था तब विनायक सर ने अपने पहले क्लास में सभी लड़कियों से उसका लक्ष्य पूछा था। उस वक्त माधुरी ने कुछ तय नहीं किया था। परंतु अब उसने बहुत ही सोच-समझ कर यह निर्णय लिया है। वर्ग शिक्षक ने माधुरी के आत्मविश्वास और प्रतिभा की तारीफ करते हुए कहा- ‘मुझे विश्वास है कि तुमने जिस विश्वास के साथ अपना लक्ष्य तय किया है, उसमें अपनी प्रतिभा के बल पर जरूर कामयाब होओगी।”

और उस दिन के बाद माधुरी ने लगातार अपनी मेहनत और लगन से सारे शिक्षकों को प्रभावित किया।       पर आज उसके सपनों को ग्रहण लगने वाला था। लड़केवालों ने अगर पसंद कर लिया तो बाबूजी किसी की न सुनेंगे और जल्द-से-जल्द उसकी शादी कर देंगे। आखिर उसके बाद भी दो बहनों की जिम्मेवारी जो उनके सर पर है।

सीमा और काजल चुपचाप शून्य में देखती माधुरी को देखकर उदास हो उठीं। उन्हें माधुरी के साथ-साथ अपना भविष्य भी अंधकारमय लगने लगा। तभी माधुरी की छोटी बहन रीना ने आकर सूचना दी- “लड़केवाले आ गए हैं।”

लड़केवालों ने माधुरी को पसंद कर लिया था। उन्हें उसका रूप और गुण दोनों पसंद आया। अपने ऑटोचालक मैट्रिक फेल लड़के के लिए इससे ज्यादा अच्छी लड़की उन्हें नहीं मिल सकती थी। उन्हें और क्या चाहिए। होने वाली बहू 6 महीने में ‘आई.ए.सी.’  पास कर लेगी और ऊपर से डेढ़ लाख दहेज भी;  जिसमें लड़का अपना ऑटो खरीद लेगा। और यह तो जगजाहिर है कि शादी का पूरा खर्चा लड़कीवाले तो उठाते ही हैं।  

मतलब कि महेसर राम ने सिर्फ दो छोटे झूठ बोलकर यह रिश्ता पक्का कर लिया था। पहला यह कि माधुरी  ग्यारहवीं में नहीं बल्कि 12वीं में पढ़ती है और दूसरा झूठ कि वह आई.ए. की जगह आई.एस.सी. की ‘इस्टुडेंट’ है|  भोले भाले ग्रामीण महेसर का ऐसा मानना है कि “लड़की का घर बसाने के लिए एक-दुगो झूठ बोलने में कोई बुराई नहीं है।” शगुन के तौर पर लड़केवालों के हाथों में पूरे 1100 रुपए रखने के बाद महेसर की खुशी का ठिकाना नहीं। भतीजे को भेज कर जल्दी से उसने बाजार से ढाई किलो मछली मंगवा लिया। महेसर ने अपने मन में सोचा- “शादी पक्का हो जाने के बाद कुटुम को मछली-भात भी नहीं खिलाएंगे तो समाज में उसका क्या इज्जत रह जाएगा। आजकल शराब बंदी है नहीं तो…!”

माधुरी को अगले दिन पता चला कि विनायक सर गुस्सा हो रहे थे तो उसे अपने ऊपर बड़ी ग्लानि हुई। सर को उस पर कितना नाज़ था। कितने भरोसे से उसे बतलाते थे कि अपने पैरों पर खड़े होकर अपने पिता का नाम रोशन कर सकती हो। और जब से बिहार में दोबारा दहेज उन्मूलन एवं बाल-विवाह का कठोर कानून बना है तब से तो सर इस बात पर भी जोर देते थे कि दहेज प्रथा सिर्फ और सिर्फ लड़कियों की शिक्षा तथा उसके आत्मनिर्भर बनने के बाद ही खत्म हो सकेगी। इसी सोच-विचार में वह एक हफ्ते तक विद्यालय न जा सकी। हालाँकि इस बीच उसने अपनी माँ से साफ-साफ कह दिया था कि “अभी मैं पढ़ना चाहती हूँ।” पर उसकी माँ और घरवालों ने दो और बेटियों का वास्ता देकर उसे इस रिश्ते को मंजूर करने को मजबूर कर दिया।

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विनायक सर को यह पता चल चुका था कि माधुरी की शादी तय हो गई है। यह सुनकर उन्हें लगा कि शायद उनकी शिक्षा देने की काबिलियत ही खत्म हो चुकी है; क्योंकि पूरे क्लास में उन्हें सबसे ज्यादा भरोसा माधुरी पर ही था। आज माधुरी को अगले बेंच की जगह चौथे बेंच पर बैठे देख उनका मन बोझिल हो उठा। उन्होंने आज पहली बार किसी से कुछ न पूछा सिर्फ पढ़ा कर चले गए। अगले दिन विनायक जी ने कविता मैडम से सुना कि माधुरी ने उनके सामने फूट-फूट कर रोते हुए यह बताया कि उसके बाबू जी ने यह शादी ना करने पर जान देने की बात कही है। यह सुनकर विनायक जी ने मन-ही-मन निश्चय किया कि वे माधुरी को कभी भी हतोत्साहित ना करेंगे;  भले ही उसकी शादी हो जाए परंतु वह उसे अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करते रहेंगे।

विनायक सर ने माधुरी से बात कर उसे उसके लक्ष्य के प्रति सजग रहने की सलाह दी। पहले की तरह अब पुनः वह अपनी सहेलियों के साथ अगले बेंच पर बैठने लगी।

2 अक्टूबर! हमारा राष्ट्रीय पर्व। आज विद्यालय में अलग रौनक थी। प्रधानाचार्य एवं सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं के साथ छात्राओं को आज राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जयन्ती पर उनकी तस्वीर के सामने ‘बाल-विवाह एवं दहेज प्रथा’ के खिलाफ लड़ने हेतु शपथ लेनी है। लगभग 1:00 बजे दिन में शपथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। प्रधानाचार्य के निर्देश पर विनायक सर ने विद्यालय परिवार को यह शपथ दिलाया कि “हम आज से बाल-विवाह एवं दहेज-प्रथा का विरोध करेंगे तथा ऐसी शादियों में कभी भाग ना लेंगे।”  माधुरी भी इस समारोह में शामिल थी।  उसने सब के साथ शपथ तो ले लिया पर बार-बार उसके मन में यह बात उठ रही थी कि उसका भी तो बाल-विवाह ही होने वाला है।

घर में प्रवेश करते ही माधुरी ने देखा कि उसकी माँ की आँखें लाल हैं तथा उसके बाबूजी भी माथे पर हाथ रखे  काफी चिंतित दिखाई दे रहे हैं। उसे कुछ पूछने की हिम्मत न हुई। वह सीधे अपने कमरे में चली गई जहां उसकी छोटी बहन रीना चुपचाप बैठी थी। माधुरी ने आँखो-ही-आँखों में रीना से पूछा- “यहाँ क्या हुआ है? “

रीना ने दबी जुवान से माधुरी को बतलाया कि “लड़केवालों ने बाबूजी के झूठ बोलने पर रिश्ता तोड़ने की धमकी दी है तथा अब दहेज में ढाई लाख नकद एवं शादी का पूरा खर्चा उठाने को कहा है।”

यह सुनकर माधुरी के होश ही उड़ गए। उसे अबतक दहेज के बारे में कुछ पता ना था। बार-बार उसके दिमाग में विद्यालय में ली गई शपथ के शब्द गूंजने लगे।

…  दहेज….! बाल- विवाह…..! “न दहेज लेंगे,  न देंगे। दहेज एवं बाल विवाह वाली शादी में भाग नहीं लेंगे।”  दहेज … बाल विवाह…! 

उसका सिर चकराने लगा। रीना ने देखा शायद दीदी को चक्कर आ रहा है। वह उसे संभालने के लिए उठी तब तक माधुरी धड़ाम से फर्श पर गिर चुकी थी|

आज तीन दिन हो गए माधुरी ने बिस्तर नहीं छोड़ा। कभी माँ तो कभी बहनें लगातार उसकी सेवा में लगी हुई हैं। उसने अपनी माँ को समझाना चाहा कि दहेज देकर शादी करना गलत है.. पर उसकी माँ ने बाबूजी की इज्जत का वास्ता देकर उसे चुप करा दिया। उसकी माँ के अनुसार “अब जो भी करेंगे तुम्हारे बाबूजी करेंगे, हमारे कहने से कुछ नहीं होगा।”

महेसर को अफसोस हो रहा था कि उसने झूठ क्यों बोला। अब वह अपने झूठ को सच में बदलने के लिए कोई रास्ता ढूंढ़ रहा था। बहुत विचार करने के बाद उसने माधुरी के स्कूल जाकर मास्टर साहब से मिलने का मन बनाया।

विद्यालय की प्रधानाचार्य ने महेसर को माधुरी के वर्ग शिक्षक विनायक सर के पास भेज दिया। महेसर ने उनसे  सारी बात बताते हुए ‘आई. ए.’ को ‘आई.एस.सी.’ में बदलने की गुहार लगाई। विनायक सर ने ध्यान से सारी बात सुनने के पश्चात् माधुरी के पिता से पूछा- “आपने माधुरी के लिए जो वर ढूंढा है क्या वह उसके योग्य है?”

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महेसर अकचकाकर मास्टर जी का चेहरा देखना लगा।

“क्यों अपनी बच्ची का जीवन बर्बाद करना चाहते हैं। आपको पता है? ..  वह शिक्षिका बनकर आपका नाम रौशन करना चाहती है … और आप….हुंह… !”

“का करें मास्टर साहेब! हमारे समाज में इत्ती बड़ी लड़की तो माँ बन जाती है। पर हम… हम तो इतना हिम्मत किए।” महेसर ने विवशतापूर्ण स्वर में कहा।

“अच्छी बात है। जहां आपने इतनी हिम्मत की है वहाँ थोड़ा सा धीरज और रखते तो आपकी बच्ची का सपना पूरा हो सकता था।”  विनायक सर ने समझाने के अंदाज में कहा-

“मैं तो अब भी यही कहूँगा कि आप घर जाकर और इत्मिनान से सोचिए। एक तो उसकी उम्र कम है और ऊपर से कम पढ़े-लिखे लड़के से दहेज देकर शादी करना। आपको पता है ना कि 18 से कम उम्र में लड़की की शादी करना तथा दहेज लेना और देना दोनों अपराध है।”

मास्टरजी की बात सुन महेसर निरुत्तर दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। विनायक सर ने उसके चेहरे को देखा। उस पर पश्चाताप के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे|.. और फिर सुस्त कदमों से वह कमरे से बाहर निकल गया।

कमरे में चौकी पर लेटी माधुरी के सिरहाने बैठी उसकी माँ उसके बालों में तेल लगा रही थी कि तभी कमरे में प्रवेश करते हुए महेसर ने अपनी पत्नी से मोबाइल मांगा। मोबाइल लेकर वह एक नंबर डायल करने लगा। …  नंबर लग गया। रिंग जा रही है। माधुरी ने आंख बंद किए हुए ही सुना। फिर किसी ने फोन उठाया- “हलो,  परनाम भाई साहब!” महेसर ने कहा।

“हां समधी जी क्या डिसाइड किए?”  दूसरी तरफ से आवाज आई।

“हां भाई साहब! हम सोचे हैं कि..”

“सोचना-उचना बंद कीजिए और हम जो डिमांड रखें हैं पूरा कीजिए।”  महेसर की आवाज काटते हुए दूसरी तरफ से आवाज आई|

महेसर ने बड़े संयत स्वर में कहा- “सुनिए भाई साहब! पहले हमरा बात सुन लीजिए|”

“हाँ -हाँ.. बोलिए!”

“हमारी लड़की आपको पसंद है?”

“हाँ जी! मगर…”

“तो फिर बताइए हम आपको दहेज किस बात का दें?”  महेसर के स्वर में थोड़ी तल्खी थी।

माधुरी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था कि उसके बाबूजी अचानक ….. और उसकी माँ आश्चर्यचकित अपने पति को देखे जा रही थी।

“इ का कह रहे हैं आप?”  दूसरी ओर से क्रोधपूर्ण स्वर में कहा गया।

“हां हम वही कह रहे हैं जो आप सुन रहे हैं। एक बात और … आपके मैट्रिक फेल बेटे से हमारी बेटी किस बात में कम है?”  महेसर ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।

“मतलब..?”

“मतलब कि हमको आप के जैसे लोभी आदमी के यहां अपनी बच्ची का रिश्ता नहीं करना है। जय राम जी की! “कहते हुए महेसर ने फोन काट दिया|

माधुरी की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे। वह कभी अपनी माँ को तो कभी अपने पिता को देखे जा रही थी| उसकी माँ की आँखें भी गीली हो गई थीं। आज माधुरी को पता चला कि उसके बाबूजी उससे कितना प्यार करते हैं। भावातिरेक में वह उठकर अपने बाबू जी के गले लग गई। उसके बाबूजी ने भी उसे अपने कलेजे से लगा लिया।  

“… मैं पढ़ना चाहती हूँ बाबूजी!” “..हॉं बेटी हमको ‘बिसवास’ (विश्वास) है! मास्टर साहब बोल रहे थे कि तू टीचर बनना चाहती है।”

 “हां बाबूजी!”- माधुरी के रूंधे गले से आवाज निकली।

 रीना, उसकी माँ,  महेसर और माधुरी की आंखों से गंगा की धार फूट चली …।

“आज मास्टर साहेब ने उसकी लड़की का ‘भविश’ (भविष्य) खराब होने से बचा लिया …” महेसर ने सोचते हुए मन ही मन मास्टर साहेब को धन्यवाद किया।

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