बनारस स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी। अपनी पंद्रह वर्षीय पुत्री के साथ कांता सेकंड एसी कोच से उतर पड़ी। कांता और उसकी बेटी दोनों के पास एक-एक बैग था दोनों ने अपना-अपना बैग संभाला हुआ था।

रतलाम (मध्यप्रदेश)
मॉम, सुना है, यहाँ के बनारसी पान बड़े फेमस है। यहाँ से सबके लिए पान लेते हुए अंकल जी के घर चलते है।
“क्यों नही, जरूर लेते है।” कांता स्टेशन के बाहर निकल आयी। वह बाहर पान बेचते हुए एक लड़के से पान बंधवाकर चलने लगी।
“मॉम! ये क्या? स्टेशन में स्टॉल है वहाँ से लेना था।” बेटी का स्वर नाराज़गी भरा था। और आपने बाकी के रुपये भी छोड़ दिये, छुट्टे नही होने की वजह से, जबकि छुट्टे है आपके पास।
“बेटा फेमस स्टॉल वालों के यहाँ तो सब जाते हैं, कभी-कभी इन गरीब दुकानदारों से भी सामान लिया करो, और बड़ा नोट देने के बाद जानबूझकर कभी छुट्टे रुपए छोड़ भी दिया करो, इससे इनकी मदद भी हो जाती है और इनका आत्म सम्मान भी बना रहता है।” कांता ने पाँच की जगह दस पान ले लिए।
बेटी अपनी माँ की सुंदर सोच पर हैरान भी थी और खुश भी।
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