एल्बम के बचे हुए पन्ने

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सीताराम गुप्ता, पीतमपुरा, दिल्ली- 110034

जीवन रूपी अलबम में भरे हुए पन्नों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं बचे हुए पन्ने।

     उम्र के विभिन्न अगले पड़ावों पर पहुँचने के बाद हम प्रायः यही सोचते हैं कि अब जीवन में कुछ नया सीखने अथवा जीवनवृत्ति में परिवर्तन करने का समय व्यतीत हो चुका है। प्रायः पच्चीस-तीस साल की उम्र के बाद सोचते हैं कि अब कॉलेज या विश्वविद्यालय जाने व किसी नए कोर्स अथवा पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने या कुछ नया सीखने की उम्र नहीं रही है या फिर चालीस वर्ष की उम्र के बाद सोचते हैं कि अब जीवन में कोई नई शुरूआत नहीं की जा सकती। जिन लोगों ने जीवन में बहुत अच्छा कार्य न किया हो अथवा जिनका जीवन बहुत अनुशासित न रहकर अपेक्षाकृत उच्छृंखल रहा हो वे भी प्रायः यही कहते हैं कि आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ हों? या क्या कभी बूढ़े तोते भी पढ़ते हैं? अब तो पूरी ज़िंदगी पुराने ढर्रे पर ही गुज़रेगी।

  वास्तव में ये एक सोच मात्र है। यदि आप दृढ़तापूर्वक इस सोच पर डटे हुए हैं कि किसी ख़ास मोड़ पर परिवर्तन संभव ही नहीं है तो ये बिलकुल ठीक है। लेकिन यदि आप इस सोच के विपरीत सोचते हैं और सोचते हैं कि इस विपरीत सोच से जीवन को बदलना संभव है तो वो उससे से भी ज़्यादा ठीक है।

     जीवन क्या है? मान लेते हैं जीवन एक अलबम, स्केच बुक या नोट बुक है। यदि जीवन एक नोट बुक है तो ज़रूरी है कि जीवन रूपी इस नोट बुक के कुछ पन्ने भर चुके होंगे और कुछ खाली होंगे। जीवन रूपी इस नोट बुक के जो पन्ने भर चुके हैं वे उस जीवन का प्रतीक हैं जो बीत चुका है या उन कार्यों के जो हम कर चुके हैं अथवा सीख चुके हैं। इसमें अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात ये है कि हमारी जीवन रूपी इस नोट बुक में कुछ पन्ने अभी भी कोरे हैं और क्योंकि वे कोरे हैं इसलिए हम उन कोरे पन्नों पर नए ढंग से नई और उपयोगी इबारत ज़रूर लिख सकते हैं। जीवन रूपी अलबम के बचे हुए पृष्ठों  पर नए चित्र लगाने अथवा जीवन रूपी स्केच बुक की बची हुई शीटों पर नए चित्र बनाने व उनमें नए आकर्षक रंग भरने से हमें कोई नहीं रोक सकता। यदि कोई रोकता भी है तो वो स्वयं हम हैं। या तो हम अकर्मण्य हो चुके हैं या फिर सुविधाभोगी अथवा आरामपरस्त।

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     इसका ये अर्थ कदापि नहीं है कि हमने अपनी जीवन रूपी नोट बुक के जो पन्ने अब तक भरे हैं वो बेकार ही हों। उनका अपना विशेष महत्त्व है। हम सबने बहुत कुछ किया होगा इसमें संदेह नहीं लेकिन ये भी संभव है कि वो उपयोगी अथवा उत्कृष्ट न रहा हो या फिर हमें ही अपेक्षित संतुष्टि प्राप्त न हुई हो या उसमें संतुलन का अभाव दृष्टिगोचर हो रहा हो अथवा देश-काल के अनुसार परिवर्तन करना ज़रूरी हो गया हो अतः इस दृष्टि से शेष समय अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। पिछली इबारत को तो नहीं बदला जा सकता लेकिन नई इबारत तो नए सिरे से अच्छी प्रकार से सोच-समझकर लिखी जा सकती है। जीवन में न सीखने और आगे बढ़ने की कोई निश्चित उम्र होती है और न नई शुरूआत करने की ही। जब जागो तभी सवेरा।

     हाँ जीवनवृत्ति में नई शुरूआत करने के लिए एक विशेष योग्यता अवश्य अपेक्षित है। यदि वो योग्यता आप में पहले से ही है तो ठीक है अन्यथा उसे अर्जित करना अनिवार्य है। मान लीजिए आप कैमिस्ट्री के प्रोफेसर हैं लेकिन कुछ दिनों के बाद आपको लगता है कि कैमिस्ट्री में आपकी रुचि नहीं है अपितु फिज़िक्स में है। यदि आपको फिज़िक्स का प्रोफेसर बनना है तो उसके लिए अपेक्षित योग्यता तो अर्जित करनी ही होगी। लेकिन यह कार्य या परिवर्तन मुश्किल हो सकता है असंभव बिल्कुल नहीं। डी.लिट. या पी.एच.डी. की बात छोड़िए ऐसे अनेक लोग मिल जाएँगे जिन्होंने पचास-साठ वर्ष की उम्र में दसवीं या बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है अथवा साठ-पैंसठ साल की उम्र में बी.ए. या एम.ए. किया है अथवा सत्तर-पिचहतर साल की उम्र में काग़ज़-क़लम अथवा कैनवस, रंग और ब्रश पकड़े हैं। कई लोग तो रिटायरमेंट के बाद जीवन में परिवर्तन करने की महत्त्वपूर्ण शुरूआत करने का निर्णय लेते हैं।

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     यदि आप अपेक्षाकृत अधिक रोचक कार्य या अधिक लाभप्रद कार्य के लिए नई शुरूआत करना चाहते हैं तो दृढ़ संकल्प ले लें और नई शुरूआत के लिए शुरूआत कर दें। हो सकता है और बाद में ये इतना आसान न रहे। मान लीजिए आपका कपड़े का व्यवसाय है लेकिन उसमें न तो आपकी रुचि ही है और न ये विशेष लाभप्रद ही है। इस व्यवसाय का भविष्य भी उज्ज्वल नहीं है अतः आप व्यवसाय बदलना चाहते हैं। आपने पाँच वर्ष पहले चालीस वर्ष की उम्र में भी सोचा था कि आप कपड़े का व्यवसाय छोड़कर इलैक्ट्रॉनिक्स के सामान के व्यवसाय में आ जाएँ लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए। आज पाँच साल बाद फिर व्यवसाय बदलने की सोच रहे हैं लेकिन संभव है कि आज यह उतना सरल नहीं रह गया हो। आज इलैक्ट्रॉनिक्स के सामान के व्यवसाय का भी विशेष उज्ज्वल भविष्य नहीं रह गया हो। प्रतियोगिता भी ज़्यादा हो गई हो। यदि उस समय आप कपड़े का व्यवसाय छोड़कर इलैक्ट्रॉनिक्स के सामान के व्यवसाय में आ जाते तो अब तक न केवल व्यवसाय जम जाता अपितु काफी कमा भी लेते। कहने का तात्पर्य यही है कि वर्तमान क्षण किसी भी परिवर्तन के लिए अत्यंत उपयोगी क्षण है।

     हम प्रायः परलोक की बात बड़े विश्वास के साथ करते हैं और परलोक को सँवारने के लिए कोई कसर भी नहीं रख छोड़ते। वास्तविकता ये है कि परलोक तो दूर हम अगले क्षण के विषय में भी नहीं जानते। प्रश्न उठता है कि यदि हम परलोक को सवाँरने के लिए इतने उद्विग्न व तत्पर रहते हैं तो शेष बचे जीवन के लिए क्यों नहीं? हमें चाहिए कि हम केवल परलोक के सुधार के लिए ही अत्यधिक लालायित न हों अपितु शेष जीवन के सुधार के लिए भी अवश्य प्रयत्नशील रहें।

  हम अज्ञात जीवन के आनंद की चाह में वर्तमान जीवन के आनंद को उपेक्षित कर देते हैं जो हमारी सबसे बड़ी भूल है। हर अगला क्षण ही नवजीवन है, परलोक है, यदि इस बात को ध्यान में रखेंगे तो निश्चित रूप से जीवन में उत्कृष्टता उत्पन्न होगी। यदि परलोक को सुधारना महत्त्वपूर्ण है तो लोक मान्यता के अनुसार परलोक को सुधारने के लिए भी इस लोक को सुधारना अनिवार्य है। इस लोक को सुधारने से तात्पर्य वर्तमान जीवन में सत्कर्म करने से ही है।

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  हम वर्तमान क्षण में जैसे कर्म करते हैं भविष्य में उन्हीं के फल भोगने पड़ते हैं। इसी प्रकार से इहलोक में जैसे कर्म किए हैं अथवा शेष जीवन में करेंगे परलोक में उन्हीं के फल भोगने पड़ेंगे। जो समय बीत चुका है या जीवन रूपी नोट बुक के जो पन्ने भरे जा चुके हैं उन पर तो हमारा वश नहीं लेकिन जीवन रूपी नोट बुक के जो पन्ने शेष हैं उन पर अवश्य है।

     वैसे भी वर्ष के पहले महीने का प्रथम दिवस ही नया दिन नहीं होता अपितु हर दिन व हर क्षण एक नई शुरूआत होती है। व्यक्ति जिस दिन पैदा होता है वो धरती पर उसके जीवन का प्रारंभ है इसलिए उसके लिए महत्त्वपूर्ण है लेकिन न तो नववर्ष ही महत्त्वपूर्ण है और न जन्मदिन ही। सबसे महत्त्वपूर्ण वो दिन या क्षण है जब हम कुछ महत्त्वपूर्ण करते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। कुछ नया सीखते हैं। हम किसी बुरे विचार या बुरी आदत को त्यागकर नकारात्मकता से मुक्त हो जाते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण वो क्षण होता है जब हमारे जीवन में रूपांतरणकारी परिवर्तन होता है या हम अपने जीवन में किसी रूपांतरणकारी परिवर्तन को लागू करने का निर्णय लेते हैं।

  यदि जीवन के किसी मोड़ पर किसी भी तरह के परिवर्तन की ज़रूरत महसूस हो तो निर्णय लेने में विलम्ब नहीं करना चाहिए। यदि आप में हिम्मत है तो जब तक आपकी जीवन रूपी कॉपी अथवा अलबम में एक भी कोरा पन्ना बचा हुआ है उस पर मनमाफ़िक इबारत लिखने या रंग भरने का अवसर उपलब्ध है। उस अवसर का सदुपयोग करने में कोई बुराई नहीं। जीवन रूपी अलबम के शेष पन्ने ठीक से भरें या न भरें लेकिन एक बात निश्चित है और वो ये कि एक दिन ये जीवन रूपी अलबम मौत रूपी कबाड़ी के हाथों में सौंपनी ही होगी जिसके लिए इसकी क़ीमत मिट्टी, रद्दी अथवा स्क्रैप से ज़्यादा हो ही नहीं सकती।

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