उद्देश्यपूर्ण जीवन: बुढ़ापे का सबसे बड़ा सहारा

Share

वृद्धावस्था का नाम आते ही पता नहीं क्यों सहसा ही हड्डियों के ढाँचे से बना, थका हुआ एक लाचार और बेबस प्राणी की तस्वीर आँखों के सामने उभर जाती है। जब से रोजगार के चक्कर में लोगों ने भारी संख्या में घर छोड़कर बाहर रहना शुरू किया है, तब से या तो अधिकांश घरों में ताला लटका मिलता है या फिर घरों में बूढ़े लोग ही मिला करते हैं। उम्र के इस पड़ाव में घर की साफ-सफाई, खाना-पीना, कपड़े, बर्तन बुजुर्गों के लिए काफी मुश्किल भरा हो जाता है।

प्रभात कुमार
चोरौत, सीतामढ़ी, बिहार

यदि बुजुर्ग दंपत्ति एक साथ हों, तब कम से कम एकाकीपन की समस्या नहीं होती है। जीवन भर परिवार में सभी को दिये गये समय और इकट्ठा किये गये भौतिक संसाधनों का बुजुर्गों के लिए कोई औचित्य नहीं रह जाता है। इस अवस्था में उन्हें आराम और सेवा की जरूरत है। उनकी बातों को सुनने, समझने व उनसे बात करने वालों की जरूरत है।

सवाल है कि क्या इस स्थिति को बदलना संभव है? शहरीकरण के इस दौर में अब यह तो संभव होता हुआ बिलकुल भी दिखाई नहीं पड़ रहा है कि बच्चे अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ गाँव में रहें। इस स्थिति में बुजुर्गों को इस अवस्था से बचने के लिए उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की योजनाओं पर काम करने की जरूरत है। इसकी जरूरत खुद को व्यस्त रखते हुए आत्मिक सुख, एकाकीपन दूर करने व समाज कल्याण के लिए हो सकता है। अब ये उद्देश्य क्या हों, इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। ये उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में बुजुर्गों की रुचि से संबंधित हो सकता है।

Read Also:  सफल वृद्धावस्था क्या है?

यदि किसी को साहित्यिक या सांस्कृतिक गतिविधियों में रुचि हो तो वे इससे जुड़कर कुछ पढ़ते-लिखते हुये स्थानीय स्तर के विभिन्न छोटे-बड़े कार्यक्रमों का हिस्सा बन सकते हैं। यदि अध्यापन में रुचि हो तो आसपास के छोटे-छोटे बच्चों को मुफ्त शिक्षा देकर एक तरफ जहाँ शिक्षा के अलख को जगाया जा सकता है, वहीं बच्चों के बीच रहकर पोते-पोतियों की कमी को बहुत हद तक दूर किया जा सकता है। ऐसा करने से समाज में बुजुर्ग की प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होगी।

आसपास के बुजुर्गों को मिलाकर एक टोली या क्लब जैसा भी कुछ बनाया जा सकता है। यहाँ एक निश्चित समय पर सभी बुजुर्ग जुटकर मनोरंजन हेतु विभिन्न मुद्दों पर परिचर्चा कर सकते हैं। खेल जैसे: लूडो, शतरंज आदि की व्यवस्था की जा सकती है। गाँव के इतिहास या किसी भी ऐतिहासिक जानकारी, जो उनलोगों के पास हों, उसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए समय-समय पर विशेष सत्र रखकर परिचर्चा की जा सकती है।

अपने पास रखी पुरानी किताबों को जमा कर एक छोटे से पुस्तकालय की परिकल्पना भी की जा सकती है। एक नियमित समय पर यहाँ पहुँचकर दूसरों के द्वारा दी गई किताबों को पढ़कर भी खुद के ज्ञानवर्द्धन के साथ-साथ खुद को व्यस्त भी रखा जा सकता है। धार्मिक कार्यों में भाग लेकर, अपने-अपने धर्म के प्रचार-प्रसार में अपनी यथासंभव भागीदारी देकर भी बहुत हद तक खुद को व्यस्त रखने के साथ-साथ एक उद्देश्यपूर्ण जीवन व्यतीत किया जा सकता है।

बागवानी भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। इसके अंर्तगत पौधारोपण कार्यक्रम के तहत आसपास के प्रमुख इलाकों में कुछ लोगों की मदद से अलग-अलग तरह के रंग-बिरंगे फूलों को लगाकर खुद को व्यस्त रखने के साथ-साथ इलाके की प्रकृत्तिक सुंदरता में भी चार चाँद लगाया जा सकता है। युवाओं और बच्चों को आसपास के क्षेत्रों जैसे गलियों, नालियों, पार्कों, मंदिरों व अन्य सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता के महत्व को समझाते हुए अगली पीढ़ी के सहयोग से इलाके को स्वच्छ और पवित्र बनाया जा सकता है।

Read Also:  अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस

इसके अलावे भी कई अन्य विकल्प ऐसे हो सकते हैं, जिसके माध्यम से बुजुर्ग खुद को दीन-हीन न समझते हुए, दूसरों के सामने अपने दुखों का रोना बंद कर खुद को व्यस्त रखकर एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीते हुए गरिमामय स्थिति में अपना बुढ़ापा व्यतीत कर सकते हैं। इसमें बुजुर्ग महिलाओं की भी बराबर की भागीदारी हो। ऐसा करना उन्हें हर स्तर पर सुखद अनुभूति का कारक सिद्ध होगी।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top

Discover more from

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading