शादियों में बढ़ती फिजूलखर्ची और प्रदर्शन की होड़

हमारे देश में शादी एक महत्वपूर्ण संस्कार है। कुछ समय पहले तक शादियां पूर्ण पारम्परिक तरीके से और अपने गृह नगर और अपने ही निवास स्थान में होती थी लेकिन आजकल शादियों का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है। आज़ शादी भी एक व्यवसाय बन गया है और उसकी व्यवस्था इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों द्वारा […]

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वृद्धावस्था, संतान और वर्तमान

वर्तमान में गाँव शहर बन रहे हैं और शहर मेट्रो सिटी। पश्चिमी सभ्यता युवा पीढ़ी पर सिर चढ़कर बोल रही है। भारतीय संस्कृति हिचकोले खा रही है। साँसें गिन रही है। सोच, चिंतन, मनन युवा पीढ़ी का पूरी तरह बदला-बदला नजर आ रहा है। एकल परिवारों की संस्कृति ने पूरी तरह पाँव जमा लिए हैं,

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रास्ते का पत्थर (प्रेरक कहानी)

अपने लोगों के मनोविज्ञान को समझने के लिए एक राजा ने एक प्रयोग करने का विचार किया। उसने एक बड़ा सा पत्थर मुख्य सड़क पर रख दिया और छुप कर उधर से गुजरने वालों की प्रतिक्रिया देखने लगा। सबसे पहले उस सड़क से राजा का महामंत्री गुजरा। वह पत्थर देख कर भुनभुनाता हुआ उसके बगल

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बनारसी पान

बनारस स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी। अपनी पंद्रह वर्षीय पुत्री के साथ कांता सेकंड एसी कोच से उतर पड़ी। कांता और उसकी बेटी दोनों के पास एक-एक बैग था दोनों ने अपना-अपना बैग संभाला हुआ था।    मॉम, सुना है, यहाँ के बनारसी पान बड़े फेमस है। यहाँ से सबके लिए पान लेते हुए

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भला-सामुक़द्दर न हो

ग़म  नहीं  गर  भला-सा मुक़द्दर न हो।दिल के अन्दर मगर कोई भी डर न हो। कितने ख़तरात हैं फायदा  कुछ नहीं,सर खुला हो अगर सर पे चादर न हो। बस यही है ख़ुदा से मेरी इल्तिज़ा,हुक्मरां अब कोई भी सितमगर न हो। क्या करे जा ब जा गर न घूमे कहीं,पास जिसके ज़मी पर कोई घर न हो। सच कहे कौन ज़ालिम के तब

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कन्या पूजन और श्रवण कुमार के देश में वृद्धाश्रम!

सच में यह परमावश्यक है। हम सभी को इस विषय पर चिन्तन करना जरूरी है कि जिस देश में श्रवण कुमार जैसे पुत्र हो, जिन्होंने अपने माता-पिता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। जिस देश का आदर्श वाक्य है, “अभिवादनशीलस्य नित्य, वृद्वोपसेविन: चत्वारि तस्य वर्धयन्ते आयुवि॑द्या यशोबलम।”उस देश में वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ती ही

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वृद्धावस्था की डगर कोमल मगर

वृद्धावस्था एक धीरे-धीरे आने वाली अवस्था है जो कि स्वभाविक व प्राकृतिक घटना है। वृद्ध का शाब्दिक अर्थ है बढ़ा हुआ, पका हुआ, परिपक्व। वृद्धावस्था में शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन भी होते हैं जिसके प्रभाव से वृद्धों की स्वाद इंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है। जीवन की सभी अवस्थाओं में से वृद्धावस्था एक ऐसी

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अनाथालय में बदलता समाज

एक दिन एक वृदधा न्यायालय की चक्कर लगाती मिली। पूछने पर पता चला कि उनका कोई अपना नहीं था। “ससुराल, मायके, पड़ोसी, दोस्त कोई तो होगा?” “पति की मृत्यु के बाद रिश्तेदारों ने संबंध तोड़ लिया। तीन बेटे थे, तीनों की मृत्यु हो गई, बेटी ससुराल में है। किराए के घर में यहाँ रहती हूँ।

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