आधुनिकता की आड़ में बढ़ते वृद्धाश्रम
भारत सांस्कृतिक रूप से एक समृद्ध देश रहा है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ व ‘अतिथि देवो भव’ इसका मूल स्वभाव मंत्र रहा है। दादी-नानी द्वारा बच्चों को उनके बचपन में ‘मिल-बाँट खाय, राजा घर जाय’ सिखाने की परंपरा रही है। यह वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने बूढ़े व अंधे माता-पिता को बहँगी […]
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