साँझ के दीप

“खोए हुए भेड़ की कहानी

बाइबिल में ईसा मसीह द्वारा कही गई एक बहुत ही प्रसिद्ध और उपयोगी कहानी है “खोए हुए भेड़ की कहानी”। सच में अगर हमारे पास कोई 10 चीज है और उसमें से कोई एक खो जाए तो हमारा ध्यान बचे हुए नौ पर नहीं बल्कि खोए हुए 10वें पर अधिक होता है। मनोवैज्ञानिकों ने एक […]

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‘सीखना’ क्यों सीखना जरूरी है?

रामायण का एक प्रसंग है। सीता हरण हो चुका था। राम और लक्ष्मण दोनों भाई उनकी खोज में थे। कबंध ने उन्हें इसके लिए सुग्रीव से मिलने की सलाह दी। किन्तु, सुग्रीव उस समय अपना राज्य ही नहीं बल्कि अपना घर और परिवार भी खो कर अपनी जान बचाने के लिए यहाँ-वहाँ भाग रहे थे।

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प्रेम और मोह

हस्तिनापुर के महाराजा शांतनु ने प्रथम पत्नी के  जाने के कुछ वर्षों बाद निषादराज दशराज की पुत्री सत्यवती से विवाह करने का विचार किया। इस विवाह के लिए निषादराज सहर्ष तैयार थे। लेकिन उन्होने एक शर्त रखा।       शर्त यह थी कि उनकी पुत्री से उत्पन्न पुत्र ही उनका उत्तराधिकारी होगा। चूँकि शांतनु को पहली

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‘नहीं है’ का होना  

महाभारत का एक बहुत ही विशिष्ट पात्र हैं कर्ण। वह एक विरल वीर और दानी थे  लेकिन इतिहास में वह नायक नहीं बल्कि दुखांत नायक के रूप में याद रखे गए। कारण था उनका सामाजिक स्तर क्रम में छोटी (शूद्र) मानी जाने वाली जाति “सूत” का होना। ऐसा कारण स्वयं कर्ण ने माना। ऐसा मानने

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अपूर्ण का सम्पूर्ण होना

एक पाँच साल का बच्चा अपने नए फुटबॉल लेकर बड़े उत्साह से दौड़ता हुआ अपनी माँ के पास गया। व्हीलचेयर पर बैठी माँ के पैरों से लाड़ से लिपट कर बोला “अम्मी! अम्मी! तुम इसे फेंको।” माँ को अपने पैर नहीं होने का जैसा शिद्दत से एहसास इस समय हुआ, वैसा शायद पहले कभी नहीं

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विचार करने की कला

विचार वही व्यक्ति गहनता से करता है जो अंतरात्मा की आवाज सुन लेता है। विचार करने की कला हर व्यक्ति के पास नहीं होती। विचार ही हृदय का दर्पण होते हैं। विचारों से ही व्यक्ति के मन की पावनता परिलक्षित होती है तथा उसके हृदय की मलिनता भी सामने आ जाती है।        अंतरात्मा की

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एल्बम के बचे हुए पन्ने

जीवन रूपी अलबम में भरे हुए पन्नों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं बचे हुए पन्ने।      उम्र के विभिन्न अगले पड़ावों पर पहुँचने के बाद हम प्रायः यही सोचते हैं कि अब जीवन में कुछ नया सीखने अथवा जीवनवृत्ति में परिवर्तन करने का समय व्यतीत हो चुका है। प्रायः पच्चीस-तीस साल की उम्र के बाद

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खुशियों की चाबी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है मानव जनम बहुत पुण्य के पश्चात मिलता है। मानव जीवन में ही मनुष्य मनचाहा लक्ष्य साध कर अपनी प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, परमार्थ और जनकल्याण के अच्छे कार्यों को करते हुए अपने जीवन को सार्थक करने का सौभाग्य केवल मानव को ही मिला है। हमारे

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