कविता/गीत/गजल

भला-सामुक़द्दर न हो

ग़म  नहीं  गर  भला-सा मुक़द्दर न हो।दिल के अन्दर मगर कोई भी डर न हो। कितने ख़तरात हैं फायदा  कुछ नहीं,सर खुला हो अगर सर पे चादर न हो। बस यही है ख़ुदा से मेरी इल्तिज़ा,हुक्मरां अब कोई भी सितमगर न हो। क्या करे जा ब जा गर न घूमे कहीं,पास जिसके ज़मी पर कोई घर न हो। सच कहे कौन ज़ालिम के तब […]

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ये प्रेम कोई बाधा तो नहीं

ये प्रेम कोई बाधा तो नहीं तुम आँचल समेटे कहती हो मैं मृदु बातों में उलझा ही क्यों ये भंवर सजीले हैं मितवा जो हम दोनों को ही ले डूबेंगे ये मोह का जाल है प्रेम भरा जिसमें प्रेम के पक्षी फँसते ही हैं, फिर भी ये प्रेम कोई बाधा तो नहीं  तुम अक्सर इस

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वीरत्व की परिभाषा

सत्य अहिंसा और धर्म, वीरों के जहां श्रृंगार रहे, त्याग प्रेम और पतिव्रत, स्त्री जाति का मान रहे। उस दिव्य धरातल का यशगान कहूं तो कहूं भी क्या, जिस पुण्यभूमि को निखिल विश्व जय जय हिंदुस्तान कहे। राम भरत केशव अर्जुन और कर्ण जैसे महादानी, ध्रुव प्रहलाद लव कुश और कालिदास से महाज्ञानी। भीष्म सरीखे

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याद हमेशा करना

आज़ादी  के  परवानों को,  याद हमेशा करना। स्वर्ग में बैठे उन वीरों को ठेस लगेगी वरना।। लड़ी लड़ाई आज़ादी की, फूले नहीं समाए हैं। ज़र्ज़र कश्ती को साहिल तक लेकर वे ही आए हैं।।               लाठी  गोली बम धमाके,               रूखी सूखी फाकम फाके,               जान की बाज़ी लगा गए वो,               थे वीर पूत

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बस जीतने वाला ही सिकंदर नहीं होता

हर एक जगह एक सा मंजर नहीं होता बाहर है जो अक्सर यहां अंदर नहीं होता क़ातिल कई ऐसे भी होते हैं जहाँ में  हाथों में वो जिनके कोई खंजर नहीं होता  मज़बूत अगर होते कहीं रिश्तें दिलों के  तो आज मकां मेरा यूँ खंडहर नहीं होता  क़ीमत जो समझता यदि शबनम की ज़रा भी

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जी चाहता है!

सालों  से जैसे जिया नहीं, जी भर के जीने को जी चाहता है! हसरत की पोर-पोर खुली रह गयी हो जैसे, उनके प्यार की सतरंगी बारिश में भीग जाने को जी चाहता है! खुल के कभी ना नाच सका मन मयूरा, बूंदों संग अठखेलियों को जी चाहता है! हर सांस ऐसी हो कि तन मन

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भावना मयूर पुरोहित

अय जिंदगी

अय जिंदगी! तुम्हारें बख़्शे हुए हर एक लम्हा।   जश्न हैं इसलिए तुम हो जश्ने जिंदगी॥ किंतु अय जश्ने जिंदगी, खफ़ा हूँ मैं तुझसे, क्योंकि… पता नहीं देती तू, मेरी खता का। कभी तू आईने-सी साफ़ निर्मल झील। कभी समंदर सी-गहरी रहस्यमयी बोझिल।। कलकल करती बहती सरिता  सहेली-सी सुगम। और कभी, झील के उद्गम-सी, पहेली दुर्गम।।

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माँ (त्रिकोणीय तुकांत कविता)

माँ हाँ रूप साकार मूर्तिकार जीव संचार संसार आधार अद्भुत चमत्कार स्तन क्षीर फुहार त्याग प्रेम दया विहार संवेदना वात्सल्य फुहार गंगा जमुना सरस्वती सार कुटुंब उज्जवल भावि गुहार   सदन मजबूत नींव एकाधार चार धाम यात्रा पवित्र चरण द्वार जननी धात्री मातृ प्रसू उपनाम हार सशरीर जगत जननी दिव्य अवतार अधर सदैव उच्चरित आशीर्वचन धार

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