कहानी

संगति का असर (बाल कहानी)

बहुत पुरानी बात है। बोरसी नामक एक घना जंगल था। वन की दक्षिण दिशा में किरवई नदी बहती थी। नदी की काली-कच्छार भूमि से लगी एक बहुत बड़ी खुली जगह थी। उस जगह का नाम टीला था। वहाँ कई तरह के पक्षी रहते थे। इनमें एक कौए का परिवार था। उसके बच्चों के साथ एक […]

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        रोशन का पंद्रह अगस्त (बाल कहानी)

आज दोपहर को जैसे ही छुट्टी की घंटी बजी, बच्चे प्रेयर स्थल में पंक्तिबद्ध खड़े हुए। एक-एक करके सभी शिक्षक भी उपस्थित हुए। फिर हेड मास्टर रघुवीर ठाकुर जी बोले- “बच्चों! कल कौन-सी तारीख है; और कौन सा राष्ट्रीय पर्व है जी?” “कल 15 तारीख है; यानी 15 अगस्त। कल हमारा राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस

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आत्मबोध

सुनैना बार-बार बिस्तर से उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन उठ नहीं पा रही थी। सिर तवे के समान तप रहा था। शरीर में दर्द से अकड़न था। दरवाजे की तरफ आँखें टिक जाती थी, इस आस में कि बहू एक कप चाय लाकर देदे। दरवाजे से किसी को आते ना देख बगल में

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सही दिशा

दसवीं की परीक्षा हो गए। अब आद्या के सामने तीन माह की लंबी छुट्टियाँ  हैं। दो-चार दिन तो बेफिक्री भरे आनंद से गुजरे। कभी आद्या वीसीआर में फिल्म लगा देती कभी चित्र कथाएँ पढ़ने लगती और कभी टेप रिकॉर्डर में अपनी पसंद के गाने सुनने लगती। पर अब वह इन सब से भी ऊबने लगी

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साथी

मिसेज सक्सेना को छ: महीने हो गए थे, यूँ उदासी ओढ़े । अब करतीं भी क्या.. अकेली..?डॉक्टर सक्सेना अब न रहे।       उनकी एकलौटी बहू शालिनी तरह-तरह से जुगत लगाती रहती कि माँ जी किसी प्रकार से खुश रहें, किन्तु वे शालिनी के समक्ष तो स्वयं को खुश प्रकट करती किन्तु वे उदास ही रहतीं।

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वह नारियल का पेड़

सुबह के १० बजे थे । रोज़ाना की दिनचर्या से निबट जलपान ख़त्म कर शारदा जी ने नौकर को आवाज़ दी ।     “राघव, मेरी कुर्सी ज़रा बाहर लगा देना ।”        छोटी सी पोर्टिकोनुमा आँगन में धूप आने लगी थी । ज़ाड़े की धूप सुहानी होती है । और उसमें भी सुबह की धूप

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देशभक्ति

मास्टर दीनानाथ पंडित यूं तो गाँव  के सरकारी विद्यालय से कई वर्ष पूर्व सेवानिवृत हो चुके थे। लेकिन उनका मानना था कि एक अध्यापक अपने जीवनकाल में कभी भी रिटायर नहीं होता इसीलिए सरकारी पेंशन पाते हुए भी वे घर पर बच्चों को निःशुल्क शिक्षादान करते थे। सभी उन्हें आदर से ‘गुरुजी’ कहा करते थे।

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ऑनलाइन दादीमाँ

हुए बब्लू की नजरें अनायास ही दादाजी की तरफ उठ गई। वे पास ही एक कुर्सी पर बैठे हुए जाने किन ख्यालों में खोए हुए थे। उनकी उम्र 75 साल से कम न थी। उनके झुर्रियों से भरे चेहरे पर उदासी और आँखों में एक विरानी-सी दिख रही थी।        बब्लू को ध्यान आया कि

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