साँझ के दीप

जिज्जी के परसाई (व्यंग्य)

सत्तो जिज्जी और पत्तो जिज्जी आजकल नामी लेखिका बनी बैठी हैं। पत्तो जिज्जी तो ज्यादातर घर-गृहस्थी में व्यस्त रहती हैं, उन्हें सोसाइटी के व्हाट्सअप ग्रुप और किटी पार्टी में चुगली और परनिंदा के भरपूर अवसर मिल जाते हैं इसलिये उन्हें लिखने पढ़ने में मजा नहीं आता। अलबत्ता इतना जरूर लिख पढ़ देती हैं कि लेखिका […]

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जीवन को भरपूर जियें

“अब आप कितना काम करेंगे?”  “आराम कीजिए। क्या जिंदगी भर काम ही करते रहेंगे?” ऐसा कहने वाले आपको अनेक शुभचिंतक मिलेंगे, जब आप नौकरी से रिटायर होते हैं। आपका दिल भी कहता है कि अब ऑफिस जाना तो है नहीं, कोई निर्धारित दिनचर्या नहीं है। जब मर्जी वह सो सकता है, जग सकता है। अब

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वाशिंग मशीन के पीछे के वैज्ञानिक सिद्धान्त

हम अपने आसपास अनेक ऐसे चीजें देखते हैं जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन का अंग बन चुके हैं पर उनके पीछे के मौलिक वैज्ञानिक सिद्धान्त हमें नहीं पता होता है। ऐसा ही एक उपकरण है वाशिंग मशीन। अधिकांश घरों में यह इतने सामान्य रूप से उपयोग होता है कि इसके पीछे के वैज्ञानिक सिद्धांतों की

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जिंदगी को जश्न कैसे बनाएँ 

इस दुनिया में सब कुछ परिवर्तनशील है केवल एक अटल सत्य को छोड़ कर। वह सत्य है मृत्यु। मृत्यु अपनी हो या अपनों की, होती यह दुखदायी और डरावनी ही है। पर क्या करें? यह अटल सत्य जो है। तो क्यों न इसका स्वागत उसी तरह करें जैसा हम जीवन के शुरुआत यानि जन्म का

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‘पढ़ाई’क्या है और यह मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता है?

भारतीय दर्शन मस्तिष्क के विकास के पाँच स्तर या पक्ष की बात करता है। इन स्तरों को समझना अपनी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने के लिए जरूरी है। ‘पढ़ना’ बौद्धिक क्षमता बढ़ाने का एक साधन है। डिजिटल या फिजिकल- दोनों माध्यमों की तुलना से पहले देखते हैं कि हमारा मस्तिष्क कार्य कैसे करता है। मौलिक प्रश्न

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सेहतनामा

स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन कहा गया है क्योंकि धन कमाने और उसका उपयोग करने के लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है। धन ही नहीं धर्म भी स्वस्थ शरीर के बिना नहीं हो सकता है। इसीलिए तो महाकवि कालीदास ने ‘कुमारसम्भव’ में कहा है “शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्” अर्थात शरीर ही धर्म का पहला और उत्तम

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प्रीति चौधरी

विचार करने की कला

विचार वही व्यक्ति गहनता से करता है जो अंतरात्मा की आवाज सुन लेता है। विचार करने की कला हर व्यक्ति के पास नहीं होती। विचार ही हृदय का दर्पण होते हैं। विचारों से ही व्यक्ति के मन की पावनता परिलक्षित होती है तथा उसके हृदय की मलिनता भी सामने आ जाती है।        अंतरात्मा की

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मातृभाषा

एक समय की बात है, एक व्यापारी का पुत्र बहुत कम उम्र में ही व्यापार करने के लिए अफगानिस्तान चला गया। वहाँ रहते रहते वह स्वाभाविक रूप से वहीं की भाषा और संस्कृति में रम गया। अपनी मूल भाषा की उसे याद नहीं रही। बहुत वर्षों बाद वह अपने परिजनों से मिलने अपने देश लौटा।

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