आलेख

भारतीयता की भाषा: हिंदी

हिंदी भाषा न केवल भारत की पहचान है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर की सजीव अभिव्यक्ति भी है। यह भाषा उन धड़कनों में बसती है, जो हर भारतीय के दिल में होती हैं। हिंदी केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति है, जो हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक जीवन को एकजुट करती है। […]

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हिंदी भाषा: भारतीयता की भाषा

किसी भी देश की भाषा और साहित्य उस की सभ्यता और संस्कृति का दर्पण होता है। क्योंकि वहां की भाषा का निर्माण उस स्थान के निवासियों द्वारा निर्मित होता है, इसीलिए उन के जीवन की झांकी उस भाषा में लिखित साहित्य में दिखती है। दूसरे जिस देश, काल का जो साहित्य होता है, वह उस

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आधुनिकता की आड़ में बढ़ते वृद्धाश्रम

भारत सांस्कृतिक रूप से एक समृद्ध देश रहा है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ व ‘अतिथि देवो भव’ इसका मूल स्वभाव मंत्र रहा है। दादी-नानी द्वारा बच्चों को उनके बचपन में ‘मिल-बाँट खाय, राजा घर जाय’ सिखाने की परंपरा रही है। यह वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने बूढ़े व अंधे माता-पिता को बहँगी

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कैसे दिए जाएँ बच्चों में संस्कार?

तरुण आज ऑफिस से जल्दी घर आ गए थे। वह पारिवारिक व्यक्ति थे। परिवार के साथ समय बिताना, बच्चों से बाते करना उन्हें अच्छा लगता था। आते समय उन्होने रास्ते में जलेबी खरीदा। घर आकर बड़ी बेटी स्नेहा, जो कि अभी 6-7 वर्ष की थी, को दे दिया। बेटी ने जलेबी प्लेट में रख कर

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शिशु को गर्भ में ही दे सकती हैं अच्छे संस्कार

सुबह सुबह अखबार में किशोरों द्वारा अपराध की खबरें देखकर सरिता जी का मन खिन्न हो गया। गंभीरता से अखबार पढ़ते-पढ़ते सरिता जी ने कहा,” पता नहीं आजकल के मां-बाप बच्चों को कैसे संस्कार देते हैं। ना ये शिष्टाचार जानते हैं, ना छोटे-बड़े का लिहाज करना जानते हैं। दिन भर भद्दे गाने सुनते और गुनगुनाते

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संस्कार क्या है और क्यों आवश्यक है?

65 वर्षीय प्रभा जी ने विवाह के बाद मायके और ससुराल दोनों के संबंधियों से संपर्क नहीं रखा। पड़ोसियों और मित्रों से भी लगभग संपर्क में नहीं थीं। पति-पत्नी दोनों अच्छे पदों पर थे, बच्चों को पढ़ाने  और उनके करियर बनाने में व्यस्त रहे दोनों। माँ-बाप या सास-ससुर का भी कभी ख्याल नहीं रखा। उन्हें

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भावना मयूर पुरोहित

कन्या पूजन और श्रवण कुमार के देश में वृद्धाश्रम

भारत एक ऐसा देश है जिसमें विश्व में सबसे पुरानी संस्कृति की नींव है। जहाँ कन्या पूजन होता है। वहीं भ्रूण हत्याएँ भी होती हैं। यहाँ नारी की पूजा भी होती हैं और नारियों का अपमान भी होता हैं। भगवान श्री राम अपने पिताजी की आज्ञा का पालन करने के लिए हंसते हुए वनवास चले गए थे। साथ में

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शादियों में बढ़ती फिजूलखर्ची और प्रदर्शन की होड़

हमारे देश में शादी एक महत्वपूर्ण संस्कार है। कुछ समय पहले तक शादियां पूर्ण पारम्परिक तरीके से और अपने गृह नगर और अपने ही निवास स्थान में होती थी लेकिन आजकल शादियों का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है। आज़ शादी भी एक व्यवसाय बन गया है और उसकी व्यवस्था इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों द्वारा

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