जीने की कला

याददाश्त को ठीक बनाए रखने के लिए अनिवार्य है मानसिक सक्रियता

कुछ लोग, विशेष रूप से बढ़ती उम्र में कहते हैं कि उनकी याददाश्त बड़ी ख़राब है और वे जल्दी ही चीज़ों को भूल जाते हैं। जहाँ तक भूलने की बात है भूलना एक स्वाभाविक क्रिया है। यदि हम हर चीज़ को याद रखने की कोशिश करेंगे, तो हमारा दिमाग़ परेशान हो जाएगा। अतः कुछ चीज़ें […]

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श्राद्ध से भी ज़रूरी है वृद्धजनों का उचित सम्मान और उनकी पर्याप्त देखभाल

अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, सम्मान अथवा आभार प्रकट करने का एक तरीक़ा है श्राद्ध। निस्संदेह हमें उनका आभारी, उनका कृतज्ञ होना चाहिए। लेकिन क्या मात्र पितृपक्ष का अनुष्ठान उनके प्रति वास्तविक श्रद्धा व्यक्त करने में सक्षम हो सकता है? क्या किसी को भोजन करा देने से किसी दिवंगत की आत्मा वास्तव में तृप्त या

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तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु अर्थात् मेरा मन शुभ संकल्प वाला हो

यदि किसी घाटी अथवा किसी बड़े से कमरे में हम कुछ बोलते हैं तो वो आवाज वहाँ गूँजने लगती है और बार-बार हमें सुनाई पड़ती है। इसी प्रकार से हमारे मन में उठने वाले विचारों की गूँज भी बार-बार प्रतिध्वनित होकर हमें सुनाई पड़ती है और उसका सीधा प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। मन

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जिम्मेदारियाँ निभाने के बाद आई जिंदगी को जीने की बारी

जिंदगी जीने का शौक हमें भी है जनाबमगर यह नहीं हो पाता क्योंकि जिम्मेदारियां ज्यादा है बहुत सही है यह बात। शादी के 1-2 साल बाद बच्चे के जन्म लेने के बाद से उनके पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा फिर शादी-विवाह करने की जिम्मेदारियां निभाते-निभाते अपनी जिंदगी को जिंदादिली से जीने के सपने देखता एक युवा जोड़ा कब

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मनाने का विधान

हमारी लोक संस्कृति में तो रूठे हुओं को ही नहीं बिना रूठे हुओं को भी मनाने का विधान है। मकर संक्रांति का दिन हमारे पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में ही नहीं दक्षिण भारत तथा देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में भी यह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता

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जीवन को भरपूर जियें

“अब आप कितना काम करेंगे?”  “आराम कीजिए। क्या जिंदगी भर काम ही करते रहेंगे?” ऐसा कहने वाले आपको अनेक शुभचिंतक मिलेंगे, जब आप नौकरी से रिटायर होते हैं। आपका दिल भी कहता है कि अब ऑफिस जाना तो है नहीं, कोई निर्धारित दिनचर्या नहीं है। जब मर्जी वह सो सकता है, जग सकता है। अब

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एल्बम के बचे हुए पन्ने

सीताराम गुप्ता, पीतमपुरा, दिल्ली- 110034 जीवन रूपी अलबम में भरे हुए पन्नों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं बचे हुए पन्ने।      उम्र के विभिन्न अगले पड़ावों पर पहुँचने के बाद हम प्रायः यही सोचते हैं कि अब जीवन में कुछ नया सीखने अथवा जीवनवृत्ति में परिवर्तन करने का समय व्यतीत हो चुका है। प्रायः पच्चीस-तीस

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औरों के साथ-साथ स्वयं का विकास भी अत्यंत आवश्यक है

‘‘जो पुल बनाएँगे’’ शीर्षक से अज्ञेय की एक कविता है। कविता इस प्रकार से है: जो पुल बनाएँगे/ वे अनिवार्यतः/ पीछे रह जाएँगे/ सेनाएँ हो जाएँगी पार/ मारे जाएँगे रावण/ जयी होंगे राम/ जो निर्माता रहे/ इतिहास में/ बंदर कहलाएँगे। जो पर्वतों की ऊँची चोटियों पर पहुँचकर झंडा फहराते हैं विजेता कहलाते हैं लेकिन जो

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