साँझ के दीप

औरों के साथ-साथ स्वयं का विकास भी अत्यंत आवश्यक है

‘‘जो पुल बनाएँगे’’ शीर्षक से अज्ञेय की एक कविता है। कविता इस प्रकार से है: जो पुल बनाएँगे/ वे अनिवार्यतः/ पीछे रह जाएँगे/ सेनाएँ हो जाएँगी पार/ मारे जाएँगे रावण/ जयी होंगे राम/ जो निर्माता रहे/ इतिहास में/ बंदर कहलाएँगे। जो पर्वतों की ऊँची चोटियों पर पहुँचकर झंडा फहराते हैं विजेता कहलाते हैं लेकिन जो […]

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निकला पुत्र बेदर्द हमारा

निकला पुत्र बेदर्द हमारा। वो ना समझे दर्द हमारा।  स्वर्ग सिधार गई है पत्नी, कोई नहीं हमदर्द हमारा।।1   सारी उमर कमाया खिलाया। लेकर कर्ज, पढ़ाया लिखाया। कफ, पित्त, वायु ने घेरा। वो ना समझे मर्ज हमारा।। निकला पुत्र बेदर्द हमारा। वो ना समझे दर्द हमारा ।। 2 मुश्किल मेरा रोग निवारण। कहते लोग बहू के

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महिलाओं के लिए जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाने का स्वर्णिम अवसर है रिटायरमेंट

समय कितनी तेजी से बदलता है। कब बचपन बीत गया और किशोरावस्था को पार करके युवावस्था में पहुँच गए, पता ही नहीं चला। अपनी पढ़ाई-लिखाई, नौकरी, विवाह और बच्चे, फिर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनकी नौकरी, उनके विवाह, उनके बच्चे, जीवन की अन्य समस्याएँ, उनको सुलझाने की भागदौड़ में एक दिन नौकरी से भी रिटायर हो

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है वृद्धावस्था के लिये?

वृद्धावस्था एक स्वाभाविक व प्राकृतिक घटना होती है। इस अवस्था में स्वत: ही अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी की समस्यायें एक जैसी हो। इन सबके बावजूद वृद्धावस्था को आनन्ददायक बनाया जा सकता है और बनाने के अनेक तरीके भी हैं। लेकिन इसके लिये  कम-से-कम एक उद्देश्य

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है सफल वृद्धावस्था के लिए

जीवन में कई अवस्थाएँ आती हैं- जैसे शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था एवं वृद्धावस्था इत्यादि। किंतु इनमें वृद्धावस्था का समय ऐसा होता है जिसमें व्यक्ति पुनः बालक बन जाता है। उसे देखभाल और प्रेम-स्नेह की अधिक आवश्यकता होती है। चेहरा झुर्रियों से भर जाता है, अकेलापन काट खाने को दौड़ता है। अस्थि पंजर धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं।

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वृद्धावस्था वरदान या अभिशाप

मानव जीवन के चार चरण हैं।  या आप कह सकते हैं संपूर्ण जीवन को चार अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है 1. बचपन 2. किशोरावस्था 3. युवावस्था एवं 4. वृद्धावस्था।        हमारे पूर्वजों ने “जीवेम् शरद: शतम्” अर्थात् सौ वर्ष का जीवन काल माना था इसलिए प्रत्येक अवस्था के लिए लगभग 25 वर्ष का

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