कविता/गीत/गजल

निकला पुत्र बेदर्द हमारा

निकला पुत्र बेदर्द हमारा। वो ना समझे दर्द हमारा।  स्वर्ग सिधार गई है पत्नी, कोई नहीं हमदर्द हमारा।।1   सारी उमर कमाया खिलाया। लेकर कर्ज, पढ़ाया लिखाया। कफ, पित्त, वायु ने घेरा। वो ना समझे मर्ज हमारा।। निकला पुत्र बेदर्द हमारा। वो ना समझे दर्द हमारा ।। 2 मुश्किल मेरा रोग निवारण। कहते लोग बहू के […]

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तुम मिली …जीने को और क्या चाहिए

था बिछोह दो दशकों का भारी, विलग हो हुई अधूरी; बस साँसे थी तन में,               शक्तिहीन मन-प्राण। थे कुछ शिकवे और शिकायत, उस अनंत सत्ता से; बनी फरियादी दिया फरियाद; याद किया तुम्हें जब-जब, नयन नीर सजल, अधीर मन-प्राण हुई आज पुनः संबल पाकर तुमको एक क्षण सहसा चौंकी! कहीं दिवा स्वप्न

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सेवानिवृत्त कर्मचारी

मैं सेवानिवृत्त कर्मचारी, पहले दरबार लगाता था। अब बना हुआ हूँ दरबारी। मैं सेवानिवत कर्मचारी।। पहले कार्यालय जाता था, अपनी कुछ धौंस जमाता था, अब तो मन में ले टीस बड़ी मैं बना हुआ हूँ घरबारी। मैं… … पहले मैं रोब जमाता था, मन माफिक भोजन पाता था, अब तो भोजन के लिए मुझे करनी

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विकार

मिट्टी से ही बनता तू, मिट्टी में ही दफन होगा, पानी से वो शीतल मन, जल ही आखरी संगम होगा। तपिश तेरे जीवन की, अग्नि से ही राख होगी, आकाश से ऊँची तेरी सोच, हवा में तेरी साज़ होगी। पंचतत्व का ये शरीर जाने कौन बनाता है, खाक से जन्मे, खाक में उपजे, फिर खाक

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वृद्ध नहीं हैं भार तुल्य

वृद्ध जनों की सेवा करने को, हम सब आगे आएँ। भारतीय संस्कृति के मूल्यों, को जीवन में अपनाएँ।।  वृद्ध मार्गदर्शक हम सबके, क्यों नहीं बन सकते हैं आज। उनके बहुमूल्य अनुभवों से, रच सकते हम नया समाज।। वृद्ध नहीं भार तुल्य हैं, हमें जिन्होंने योग्य बनाया। हर कष्ट सह कर जिन्होंने, हम सब का भविष्य

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