कविता/गीत/गजल

पहले ख़ुद को तो समझा ले

दुनिया को समझाने वाले  पहले ख़ुद को तो समझा ले लोग पुकारें कैसे तुझको कम-से-कम इक नाम रखा ले  कब से देख रहा सूरज को वो अपनी आँखें न जला ले देखो वो इक परदेसी है  इस बस्ती में घर न बना ले कोई आने वाला होगा  अब तक जाग रहे घर वाले                        ****

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भीगिए,गाइए आज गाना

फिर हुआ आज मौसम सुहाना। आ गया बारिशों का जमाना भीगिए गाइए आज गाना॥ गातीं झर-झर फुहारें छतों पर दर्द लिख दीजिए सब खतों पर बचपने में चले जाइएगा बूँदों से है रिश्ता पुराना॥ युग-युगों से प्रतीक्षा रही है मीत! अब आस पूरी हुई है॥ प्रेयसी आ गई आज मिलने बात मन की उसे अब

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सफीर हो जाता

इश्क का गर सफीर हो जाता।नाम फिर मुल्कगीर हो जाता। जाने कब का अमीर हो जाता।बस ज़रा बे ज़मीर हो जाता। बात मन की अगर सुनी होती,कम न रहता कसीर हो जाता। उस घड़ी बेचता जो ईमां को,एक पल में वज़ीर हो जाता। शब्द होते अगर मेरे बस में,कब का तुलसी कबीर हो जाता। बात हल्की अगर कही होती,हर नज़र में हक़ीर हो जाता। साथ रहता जो उसके तकवा तो,आज रौशन ज़मीर हो जाता। फिर रिहाई उसे नहीं मिलती,ज़ुल्फ़ का जो असीर हो जाता। चूमते भी गले लगाते भी,गर निशाने का तीर हो जाता। ****

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दरक जाते हैं

चेहरे बुजुर्गों के फूल से खिल जाते हैं बच्चे जब मिलने चले  आते हैं… यह सच कहते हुए लोगों को सुना बुढ़ापे में बचपन ही तो दोहराते हैं… दिल का अच्छा खफ़ा-ख़फ़ा सा है रुठे हुए शख्स को चलो सब मनाते हैं… हार जाएंगे सन्नाटे जो ठान लो तुम, चलो एक गीत तरन्नुम में गुनगुनाते

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फ़लसफ़ा जीवन का

सब अपनो को पहचान लो भई !!  हम अपनी सोसाइटी की शान हैं फूलों की मुस्कान है हमे सीनियर सिटीजन समझने की भूल न करना!! हम जब मस्ती में पार्क में गीत नये पुराने गाते रहते हैं कितने तरुण तरुणी शरमा जाते हैं कितने हमउम्र के दिल को धड़का देते है चिड़ियों सी बेपरवाह जब

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जीना सीखो

सुख दुख जीवन के साथी है, इससे ना घबराओ जी।हिम्मत कर के आगे आओ, जीवन सफल बनाओ जी।। कल क्या होगा किसने देखा, फिर क्यों सोचा करते हो।सही कर्म की राहे चलते, फिर भी सारे डरते हो।। मुश्किल आती है जीवन में, उससे भी टकराओ जी।हिम्मत कर के आगे आओ, जीवन सफल बनाओ जी।। मिट्टी

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पुनरागमन है…

इसे क्यूँ कहते हो बुढ़ापा  ये तो पुनरागमन है मेरे बचपन का बच्चे ही सही  पकड़ हाथ चलाते हैं मुझे  रोटी ना सही  दवाई कह कहकर खिलाते हैं मुझे  कभी-कभी मचल जाता हूँ    खो भी जाता आपा इसे क्यूँ कहते हो बुढ़ापा  ये तो पुनरागमन है मेरे बचपन का। सिर में छितरे छितरे बाल 

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मेरी बातें

छोड़ चलो तुम अहंकार को, बनो नेक इंसान। सदा सत्य मीठी वाणी हो, प्राप्त करो सम्मान।। आज जमाना सुंदरता का, यहीं लगाते ध्यान। चन्द्र तेज सा मुखड़ा जिनका, खूब उन्हें अभिमान।। चार दिनों का जीवन सब का, कभी छाँव अरु धूप। उम्र ढलेगी वृद्धावस्था, ढ़ल जाएगा रूप।। पढ़े लिखे मानव हैं सारे, फिर भी कैसी

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