कहानी

फटेहाल मालिक- फटेहाल जूता (चीनी लोककथा) 

चीन में चांग ची नामक एक चीनी रईस रहता था। उस में एक बुरी आदत थी। वह हद दर्जे का कंजूस व्यापारी था। उसे अपने कपड़े व जूते बहुत प्रिय थे। जब भी उसके कपड़े फट जाते वह उस में पैबंद लगा दिया करता था। इस कारण उस के कपड़े में पैबंद पर पैबंद लगे […]

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जन्मदिन का उपहार (लघुकथा)

विभा और वैभव के विवाह को मुश्किल से पाँच वर्ष ही हुए थे कि दोनों के मध्य वैचारिक मतभेद इतना बढ़ गया कि नौबत तलाक तक आ पहुँची। उन्होंने इस समस्या का समाधान करने के लिए विवाह-विच्छेद करना ही उचित समझा। एक बेटा अनिरुद्ध जो कि चार वर्ष का था, दोनों की मनोदशा से अनभिज्ञ

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पुण्य कार्य (लघुकथा)

शादी की तैयारी पुरी हो चुकी है। बारात द्वार पर आ गई है। सभी लोग इधर-उधर कर रहे हैं। बारातियों का स्वागत कैसे किया जाय, रामप्रसादजी इसके लिए बहुत चितिंत हैं। क्या करूँ, क्या न करूँ। उनकी पत्नी परेशान देखकर बोली- “क्यों न महेन्द्रजी से कुछ पैसा उधार ले लेते हैं और लड़केवाले को जो

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भावना मयूर पुरोहित

अजब चोर (लोककथा)

आत्मकथ्य: प्रस्तुत लोककथा प्रसिद्ध गुजराती लोककथाकार झवेरचंद जी मेघाणी जी के लोककथा संग्रह में से ली है। इसके लिए मैंने उनके पौत्र पिनाकिन भाई मेघाणी जी अनुमति ली है) एक चोर था। उसने एक नियम बना रखा था कि वह साल में केवल एक ही बार चोरी करेगा। एक बार वह एक जंगल के रास्ते से जा

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नमक जैसा मीठा (लोककथा)

पंजाब की लोक कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ। प्रस्तुत लोक कथा स्वर्ण मंदिर (अमृतसर पंजाब) में स्थित ‘दुःख भंजनी बेरी’ पास स्थित सरोवर के संदर्भ में उस काल में पट्टी क्षेत्र के शासक सेठ दुनी चंद की बेटियों में से एक, ‘बीबी रजनी’ के बारे में कही जाती है।) बात बहुत पुरानी है। एक राजा

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शूर्पणखा (लघुकथा)

“अपनी नाक कटवाने के बावजूद तुम्हें बात समझ नहीं आई। तुमने औरत होकर औरत का वजूद नहीं समझा। धिक्कार है तुम्हारा औरत होना।” सीता के प्रत्युत्तर में शूर्पणखा ने कहा- “सीते! मैंने अपनी नाक नहीं कटवायी; बल्कि बलात काट दी गयी।” शूर्पणखा की बात सुन सीता से रहा नहीं गया। बोली- “परपुरुष के प्रति तुम्हारी

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खिंचाव (लघुकथा)

समाजसेवी मित्र के साथ एक दिन मुझे वृद्धाश्रम जाना हुआ।  जैसे ही हमारी कार उस परिसर में जाकर ठहरी,  सभी वृद्धाएं एक साथ अपने-अपने कमरों से बाहर आकर, हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं। मुझे, ये अच्छा नहीं लगा। मैंने एक वृद्धा के पास जाकर, नमस्कार करके कहा- माँ, हमें हाथ मत जोड़ों, हम सब तो

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एक दोस्ती ऐसा भी…(लघुकथा)

“लो दादाजी …ये आया….आया…एरोप्लेन, आपके पास, इस में बैठकर जल्दी आ जाओ मेरे घर” पाँच वर्षीय क्षितिज ने साथ वाले फ्लैट में व्हीलचेयर पर बैठे एक वृद्ध की ओर अपने कागज का बनाया हुआ जहाज उड़ा दिया। उधर उनके नौकर ने फुर्ती से कैच कर उन्हें पकड़ाया तो वह ज़ोर-ज़ोर से ठहाका लगाते हुए उसका

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