कहानी

बयार (लघुकथा)

“होटल के हाल में “हिंदी दिवस” का कार्यक्रम चल रहा था। मुख्य अतिथि बहुत प्रभावी भाषण दे रहे थे। श्रोता मंत्र मुक्त होकर उन्हें सुन रहे थे। कार्यक्रम संपन्न हुआ और सब लंच के लिए बाहर निकलने लगे। शहर का सबसे बढ़िया होटल था, इसलिए शानदार दावत थी। खाने के साथ-साथ कार्यक्रम की सफलता के […]

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वो नाश्ता (लघुकथा)

‘फिर से सूखी रोटी और आलू की सब्जी। पिछले तीन महीने से यही खाना खा-खाकर ऊब चुका हूं। मैं नहीं खाऊंगा’- खाने की थाली को गुस्से में उलटते हुए पप्पू ने कहा। ‘अरे बेटा! खाने का अपमान नहीं करते हैं। सुबह में अपने घर से खाना खाकर ही बाहर निकलना चाहिए। कल तुम्हारे पसंद का

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रास्ते का पत्थर (प्रेरक कहानी)

अपने लोगों के मनोविज्ञान को समझने के लिए एक राजा ने एक प्रयोग करने का विचार किया। उसने एक बड़ा सा पत्थर मुख्य सड़क पर रख दिया और छुप कर उधर से गुजरने वालों की प्रतिक्रिया देखने लगा। सबसे पहले उस सड़क से राजा का महामंत्री गुजरा। वह पत्थर देख कर भुनभुनाता हुआ उसके बगल

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बनारसी पान

बनारस स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी। अपनी पंद्रह वर्षीय पुत्री के साथ कांता सेकंड एसी कोच से उतर पड़ी। कांता और उसकी बेटी दोनों के पास एक-एक बैग था दोनों ने अपना-अपना बैग संभाला हुआ था।    मॉम, सुना है, यहाँ के बनारसी पान बड़े फेमस है। यहाँ से सबके लिए पान लेते हुए

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धवल प्रेम

मनु अपने घर में सबकी दुलारी थी। उसके आगे के दो दाँत बाहर की तरफ थे इसलिए सब उसे चीकू बुलाया करते। छोटे बच्चे सौंदर्य से परिभाषित नहीं होते, उनका देवत्व उन्हे सर्व प्रिय बनाता है। पर जैसे-जैसे बड़े होते हैं सापेक्षता का सिद्धांत लागू होने लगता है। यही सिद्धांत मनु पर भी लागू हुआ

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गलत सवाल (लघुकथा)

उस आदमी ने पूछा, “तुम गलियों में क्यों फिर रही हो?” गाय बोली, “मैं अपने चारे की तलाश में इधर-उधर भटक रही हूँ। तुम लोग मेरी भूख की तरफ कुछ ध्यान ही नहीं देते?” गाय का प्रतिउत्तर सुनकर वह व्यक्ति झेंप गया। तब गाय ने ही पूछा, “तुम यहाँ धूप में क्यों बैठे हो?” “कड़ाके

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मैं पढ़ना चाहती हूँ

    डॉ. भूपेन्द्र ‘अलिप’ “तोड़ती पत्थर’ के रचनाकार कौन हैं?” शिक्षक ने ग्यारहवीं वर्ग में पढ़ने वाली उन सारी लड़कियों से पूछा जो उस वक्त उस वर्ग कक्ष में मौजूद थीं। अगली पंक्ति में बैठी पूजा ने झट से हाथ उठाकर जवाब दिया- ‘निराला’। ‘ठीक है! अच्छा पूजा के अलावा तुम लोगों में से कोई

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तोहफ़ा

डोरबेल बजे जा रही थी। रामसिंह भुनभुनाये “इस बुढ़ापे में यह डोरबेल भी बड़ी तकलीफ़ देती है।” दरवाज़ा खोलते ही डाकिया पोस्टकार्ड और एक लिफ़ाफा पकड़ा गया। लिफ़ाफे पर बड़े अक्षरों में लिखा था ‘वृद्धाश्रम’। रूँधे गले से आवाज़ दी- “सुनती हो बब्बू की अम्मा, देख तेरे लाड़ले ने क्या हसीन तोहफ़ा भेजा है!” रसोई

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