साँझ के दीप

कन्या पूजन और श्रवण कुमार के देश में वृद्धाश्रम!

सच में यह परमावश्यक है। हम सभी को इस विषय पर चिन्तन करना जरूरी है कि जिस देश में श्रवण कुमार जैसे पुत्र हो, जिन्होंने अपने माता-पिता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। जिस देश का आदर्श वाक्य है, “अभिवादनशीलस्य नित्य, वृद्वोपसेविन: चत्वारि तस्य वर्धयन्ते आयुवि॑द्या यशोबलम।”उस देश में वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ती ही […]

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वृद्धावस्था की डगर कोमल मगर

वृद्धावस्था एक धीरे-धीरे आने वाली अवस्था है जो कि स्वभाविक व प्राकृतिक घटना है। वृद्ध का शाब्दिक अर्थ है बढ़ा हुआ, पका हुआ, परिपक्व। वृद्धावस्था में शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन भी होते हैं जिसके प्रभाव से वृद्धों की स्वाद इंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है। जीवन की सभी अवस्थाओं में से वृद्धावस्था एक ऐसी

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अनाथालय में बदलता समाज

एक दिन एक वृदधा न्यायालय की चक्कर लगाती मिली। पूछने पर पता चला कि उनका कोई अपना नहीं था। “ससुराल, मायके, पड़ोसी, दोस्त कोई तो होगा?” “पति की मृत्यु के बाद रिश्तेदारों ने संबंध तोड़ लिया। तीन बेटे थे, तीनों की मृत्यु हो गई, बेटी ससुराल में है। किराए के घर में यहाँ रहती हूँ।

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दिल तो बच्चा है जी (व्यंग्य)

नजर बचाकर निकलना ही चाहता था कि बड़े मियां आकर सामने खड़े हो गये। मैंने झुककर अदब से सलाम किया तो तुनकते हुए बोले “ये सलाम ही करते रहोगे कभी हाय-हैलो भी कर लिया करो मियां।” मुझे हैरानी तो हुई मगर अचानक मुंह से निकल पड़ा “जब से होश संभाला है तब से सलाम ही

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दुर्गाबाई देशमुख

एक ऐसी महिला, जिनके बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया, कम उम्र में ही विवाह हो गया, बचपन में स्कूल नहीं जाने दिया गया, लेकिन फिर भी उसने उच्चा शिक्षा प्राप्त किया, वकील बनी, स्वतन्त्रता सेनानी बनी, समाज सुधारक बनी और आजादी के बाद संविधान सभा के लिए चुने जाने वाली पहली

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समकालीन हिंदी कविता में वसंत

महानगर में हूं तो “कूलन में केलिन में बगर्यो बसंत है” का आभास तो दूर-दूर तक नहीं है। अलबत्ता ईस्वी कैलेंडर में छुपा विक्रमी पंचांग जरूर बता रहा है कि वसंत पंचमी आ रही है। कुछ पारंपरिक घर हैं कि पूजन करेंगे, तो बाजार से पूजाकर्म की चीजों का दिखना हो जाएगा। बहुत हुआ तो

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हिन्दी दिवस की सार्थकता

एक और हिन्दी दिवस आया और चला गया। लोगों ने हिन्दी की विशेषताओं का गुणगान किया, इसके बढ़ते कद की की बातें की। यह सच है कि हिन्दी बोलने वालों की संख्या राष्ट्र और विश्व के स्तर पर बढ़ी है। लेकिन यह भी सच है कि इसकी यह उपलब्धि हिन्दी भाषी लोगों के प्रयासों का

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कन्या पूजन और श्रवण कुमार के देश में वृद्धाश्रम!

कहते हैं श्रवण कुमार के माता-पिता अंधे थे। इसलिए उन्हें छोड़ कर श्रवण कुमार ने धनार्जन के लिए अन्यत्र जाना स्वीकार नहीं किया। वह उनकी सेवा करता हुआ उनके साथ ही रहा। जब उन्होने तीर्थ यात्रा की इच्छा की तब श्रवण ने उन्हें काँवड़ के दोनों पलड़ों पर रख कर तीर्थयात्रा करवाने का निश्चय किया।

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