आलेख

उद्देश्यपूर्ण जीवन: बुढ़ापे का सबसे बड़ा सहारा

वृद्धावस्था का नाम आते ही पता नहीं क्यों सहसा ही हड्डियों के ढाँचे से बना, थका हुआ एक लाचार और बेबस प्राणी की तस्वीर आँखों के सामने उभर जाती है। जब से रोजगार के चक्कर में लोगों ने भारी संख्या में घर छोड़कर बाहर रहना शुरू किया है, तब से या तो अधिकांश घरों में […]

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वृद्धावस्था जीवन का स्वर्णिम काल

मुझे ओशो की निम्नलिखित पंक्तियां बहुत प्रभावित करती हैं। “तुम आज क्या हो? अगर तुम नाच रहे हो, तो तुमने आने वाले कल के लिए नाच दे दिया। अगर तुम प्रमुदित हो, प्रफुल्लित हो, तो कल का फूल खिलने ही लगा। क्योंकि जिस फूल को कल खिलना है, उसकी कली आज ही तैयार हो रही

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महिलाओं के लिए जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाने का स्वर्णिम अवसर है रिटायरमेंट

समय कितनी तेजी से बदलता है। कब बचपन बीत गया और किशोरावस्था को पार करके युवावस्था में पहुँच गए, पता ही नहीं चला। अपनी पढ़ाई-लिखाई, नौकरी, विवाह और बच्चे, फिर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनकी नौकरी, उनके विवाह, उनके बच्चे, जीवन की अन्य समस्याएँ, उनको सुलझाने की भागदौड़ में एक दिन नौकरी से भी रिटायर हो

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है वृद्धावस्था के लिये?

वृद्धावस्था एक स्वाभाविक व प्राकृतिक घटना होती है। इस अवस्था में स्वत: ही अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी की समस्यायें एक जैसी हो। इन सबके बावजूद वृद्धावस्था को आनन्ददायक बनाया जा सकता है और बनाने के अनेक तरीके भी हैं। लेकिन इसके लिये  कम-से-कम एक उद्देश्य

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है सफल वृद्धावस्था के लिए

जीवन में कई अवस्थाएँ आती हैं- जैसे शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था एवं वृद्धावस्था इत्यादि। किंतु इनमें वृद्धावस्था का समय ऐसा होता है जिसमें व्यक्ति पुनः बालक बन जाता है। उसे देखभाल और प्रेम-स्नेह की अधिक आवश्यकता होती है। चेहरा झुर्रियों से भर जाता है, अकेलापन काट खाने को दौड़ता है। अस्थि पंजर धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं।

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बुढ़ापा की दशा को एक सही दिशा की जरूरत

वृद्धावस्था जीवन यात्रा का नैसर्गिक व अंतिम पड़ाव होता है। मानव जीवन चक्र चार अलग-अलग अवस्थाओं से गुजरती है: बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था। प्रकृत्ति खुद को एक चक्रीय पद्धति से परिवर्तित करती है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे: मौसम का बदलना, इतिहास का दुहराना आदि। ठीक उसी तरह एक वृद्ध व्यक्ति अपने जीवन

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वृद्धावस्था और व्यवहार परिवर्तन

वृद्धावस्था ऐसी अवस्था है जिससे लगभग सभी को गुजरना है। इससे निपटने की जो तैयारी रखते हैं वे समझदार हैं क्योंकि वे जानते हैं इस अवस्था में ऐसा परिवर्तन आयेगा जो मन पसंद न होगा। योगासन अपना कर, भोजन पर, क्रोध आदि पर अंकुश लगा कर स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मानसिकता रखने वाले वृद्ध समाज

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वृद्धावस्था में व्यवहार में परिवर्तन

 कहते हैं ढ़लती उम्र के साथ लोगों को अपनी सारी इच्छाएं सीमित कर लेनी चाहिए। ऐसा करना दैहिक, मानसिक और पारिवारिक तीनों तापों का समन कर सुख शांति प्रदान करने वाला और हितकारी होगा। मगर ऐसा होता नहीं है। बुढ़ापे में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए और भी ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है।

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