आलेख

प्रीति चौधरी

विचार करने की कला

विचार वही व्यक्ति गहनता से करता है जो अंतरात्मा की आवाज सुन लेता है। विचार करने की कला हर व्यक्ति के पास नहीं होती। विचार ही हृदय का दर्पण होते हैं। विचारों से ही व्यक्ति के मन की पावनता परिलक्षित होती है तथा उसके हृदय की मलिनता भी सामने आ जाती है।        अंतरात्मा की […]

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खुशियों की चाबी

 राजश्री राठी, गौरक्षण रोड, महेश‌ कॉलनी, अकोला, महाराष्ट्र पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है मानव जनम बहुत पुण्य के पश्चात मिलता है। मानव जीवन में ही मनुष्य मनचाहा लक्ष्य साध कर अपनी प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, परमार्थ और जनकल्याण के अच्छे कार्यों को करते हुए अपने जीवन को सार्थक करने का

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भावना मयूर पुरोहित

आर्ट ऑफ थिंकिंग

भावना मयूर पुरोहित, हैदराबाद  आर्ट ऑफ थिंकिंग   अर्थात सोचने की कला। जैसी हमारी सोच वैसे हम!!! आचार्य विनोबा भावे की एक लघुकथा याद करते है… एक बार एक मानव चलते चलते, किसी वन में भटक गया। वह एक वृक्ष के नीचे बैठा गया था। उसे मालूम नहीं था कि वह एक कल्प वृक्ष था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर

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आर्ट ऑफ थिंकिंग

मेरी एक मित्र है सुषमा। उसके नैन नक्श और शारीरिक बनावट अच्छी है लेकिन रंग साफ नहीं है। उसकी छोटी बहन का रंग गोरा है। छोटी बहन के स्वभाव और काम के कारण लोग उसकी प्रशंसा करते हैं। बचपन में जब सुषमा को घर के बड़े लोग किसी गलती पर डांटते तो उसे लगता वह

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है वृद्धावस्था के लिये?

वृद्धावस्था एक स्वाभाविक व प्राकृतिक घटना होती है। इस अवस्था में स्वत: ही अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी की समस्यायें एक जैसी हो। इन सबके बावजूद वृद्धावस्था को आनन्ददायक बनाया जा सकता है और बनाने के अनेक तरीके भी हैं। लेकिन इसके लिये  कम-से-कम एक उद्देश्य

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है सफल वृद्धावस्था के लिए

जीवन में कई अवस्थाएँ आती हैं- जैसे शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था एवं वृद्धावस्था इत्यादि। किंतु इनमें वृद्धावस्था का समय ऐसा होता है जिसमें व्यक्ति पुनः बालक बन जाता है। उसे देखभाल और प्रेम-स्नेह की अधिक आवश्यकता होती है। चेहरा झुर्रियों से भर जाता है, अकेलापन काट खाने को दौड़ता है। अस्थि पंजर धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं।

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वृद्धावस्था वरदान या अभिशाप

मानव जीवन के चार चरण हैं।  या आप कह सकते हैं संपूर्ण जीवन को चार अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है 1. बचपन 2. किशोरावस्था 3. युवावस्था एवं 4. वृद्धावस्था।        हमारे पूर्वजों ने “जीवेम् शरद: शतम्” अर्थात् सौ वर्ष का जीवन काल माना था इसलिए प्रत्येक अवस्था के लिए लगभग 25 वर्ष का

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मैं से हम तक की यात्रा

मित्रो! आप मेरे साथ सहमत होंगे कि इस भौतिकतावादी और प्रतिस्पर्धा के युग में मनुष्य स्वार्थी एवं आत्म केंद्रित होता जा रहा है। अब उसके आसपास उसे केवल ‘मै’ की गूंज सुनाई देती है।       अधिक से अधिक धन कमाकर एवं सुख सुविधाएं जुटा कर अपने आपको सफल समझने वाला मनुष्य कहीं ना कहीं अकेला

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