Babita Jha

Founder president of CLF

बस जीतने वाला ही सिकंदर नहीं होता

हर एक जगह एक सा मंजर नहीं होता बाहर है जो अक्सर यहां अंदर नहीं होता क़ातिल कई ऐसे भी होते हैं जहाँ में  हाथों में वो जिनके कोई खंजर नहीं होता  मज़बूत अगर होते कहीं रिश्तें दिलों के  तो आज मकां मेरा यूँ खंडहर नहीं होता  क़ीमत जो समझता यदि शबनम की ज़रा भी […]

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समकालीन हिंदी कविता में वसंत

महानगर में हूं तो “कूलन में केलिन में बगर्यो बसंत है” का आभास तो दूर-दूर तक नहीं है। अलबत्ता ईस्वी कैलेंडर में छुपा विक्रमी पंचांग जरूर बता रहा है कि वसंत पंचमी आ रही है। कुछ पारंपरिक घर हैं कि पूजन करेंगे, तो बाजार से पूजाकर्म की चीजों का दिखना हो जाएगा। बहुत हुआ तो

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भावना मयूर पुरोहित

अय जिंदगी

अय जिंदगी! तुम्हारें बख़्शे हुए हर एक लम्हा।   जश्न हैं इसलिए तुम हो जश्ने जिंदगी॥ किंतु अय जश्ने जिंदगी, खफ़ा हूँ मैं तुझसे, क्योंकि… पता नहीं देती तू, मेरी खता का। कभी तू आईने-सी साफ़ निर्मल झील। कभी समंदर सी-गहरी रहस्यमयी बोझिल।। कलकल करती बहती सरिता  सहेली-सी सुगम। और कभी, झील के उद्गम-सी, पहेली दुर्गम।।

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घटते मूल्य: बढ़ते वृद्धाश्रम

कुछ दिन पहले कुछ दोस्तों के साथ एक वृद्धाश्रम जाने का अवसर मिला। यह एक निःशुल्क वृद्धाश्रम था जहां समान्यतः ऐसे लोग थे जिनका या तो परिवार नहीं था, या अगर था भी तो उनसे संबंध नहीं रखना चाहता था। हमलोगों में उनके प्रति सहानुभूति उत्पन्न हुई। सोचने लगी इनसे बात किया जाय और पूछा

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कन्या पूजन और श्रवण कुमार के देश में वृद्धाश्रम!

कहते हैं श्रवण कुमार के माता-पिता अंधे थे। इसलिए उन्हें छोड़ कर श्रवण कुमार ने धनार्जन के लिए अन्यत्र जाना स्वीकार नहीं किया। वह उनकी सेवा करता हुआ उनके साथ ही रहा। जब उन्होने तीर्थ यात्रा की इच्छा की तब श्रवण ने उन्हें काँवड़ के दोनों पलड़ों पर रख कर तीर्थयात्रा करवाने का निश्चय किया।

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हिन्दी दिवस की सार्थकता

एक और हिन्दी दिवस आया और चला गया। लोगों ने हिन्दी की विशेषताओं का गुणगान किया, इसके बढ़ते कद की की बातें की। यह सच है कि हिन्दी बोलने वालों की संख्या राष्ट्र और विश्व के स्तर पर बढ़ी है। लेकिन यह भी सच है कि इसकी यह उपलब्धि हिन्दी भाषी लोगों के प्रयासों का

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बिल्कुल वसंत सा है स्त्री जीवन

वसंत और स्त्री अलग कहां हैं? दोनों एक ही तो हैं! घर में बेटी आ जाए या बहू आ जाए तो मानो वसंत ही आ जाता है। एक नई रौनक आ जाती है। समाज, परिवार, साहित्य और फिल्मों में कई अवसरों पर विभिन्न उद्गारों के माध्यम से इसे महसूस किया जा सकता है। आंगन की

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चिन्तन

चिंतन बहुत जरूरी है, चाहे वह वैज्ञानिक चिंतन हो, आत्मचिंतन हो, सामाजिक चिंतन हो, परिवारिक चिंतन हो या राष्ट्र चिंतन हो। चिंतन हर क्षेत्र में जरूरी है। वैज्ञानिक चिंतन के कारण ही आज हमें मशीनी शक्ति और सुविधा प्राप्त है। लेकिन इस सुख-सुविधा का उपयोग, हम किस हद तक, कहां तक और कैसे करें इसमें

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