Babita Jha

Founder president of CLF

दीर्घसूत्री की कहानी

एक नदी में बहुत सी मछलियाँ रहती थीं। इनमें से तीन मछली आपस में बहुत अच्छी दोस्त थीं। तीनों के नाम थे दीर्घसूत्री, मध्यसूत्री, और आशुसूत्री। अपने नाम के अनुरूप ही तीनों के कार्य भी थे। आशुसूत्री निर्णय लेने में बहुत जल्दी करती थी। वह हमेशा समय रहते ही अपना काम कर लेती ही। लेकिन […]

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भारतीयता की भाषा: हिंदी

हिंदी भाषा न केवल भारत की पहचान है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर की सजीव अभिव्यक्ति भी है। यह भाषा उन धड़कनों में बसती है, जो हर भारतीय के दिल में होती हैं। हिंदी केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति है, जो हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक जीवन को एकजुट करती है।

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हिंदी भाषा: भारतीयता की भाषा

किसी भी देश की भाषा और साहित्य उस की सभ्यता और संस्कृति का दर्पण होता है। क्योंकि वहां की भाषा का निर्माण उस स्थान के निवासियों द्वारा निर्मित होता है, इसीलिए उन के जीवन की झांकी उस भाषा में लिखित साहित्य में दिखती है। दूसरे जिस देश, काल का जो साहित्य होता है, वह उस

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आधुनिकता की आड़ में बढ़ते वृद्धाश्रम

भारत सांस्कृतिक रूप से एक समृद्ध देश रहा है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ व ‘अतिथि देवो भव’ इसका मूल स्वभाव मंत्र रहा है। दादी-नानी द्वारा बच्चों को उनके बचपन में ‘मिल-बाँट खाय, राजा घर जाय’ सिखाने की परंपरा रही है। यह वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने बूढ़े व अंधे माता-पिता को बहँगी

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कोई बात नहीं (लघुकथा)

भूषण खाना खाकर उठा। सोफे पर बैठकर मोजे को पहनने लगा। सुखिया समझ गयी कि आज उसे ड्यूटी जाने में देर हो गयी। बोली- “बारिश का मौसम है। बदली छा रही है। पता नहीं बेटा, कब और पानी गिर जाएगा।” भूषण एक थैले में कुछ रखा और चलने लगा। “रूको बेटा, इसे पहन लो, क्योंकि

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बयार (लघुकथा)

“होटल के हाल में “हिंदी दिवस” का कार्यक्रम चल रहा था। मुख्य अतिथि बहुत प्रभावी भाषण दे रहे थे। श्रोता मंत्र मुक्त होकर उन्हें सुन रहे थे। कार्यक्रम संपन्न हुआ और सब लंच के लिए बाहर निकलने लगे। शहर का सबसे बढ़िया होटल था, इसलिए शानदार दावत थी। खाने के साथ-साथ कार्यक्रम की सफलता के

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वो नाश्ता (लघुकथा)

‘फिर से सूखी रोटी और आलू की सब्जी। पिछले तीन महीने से यही खाना खा-खाकर ऊब चुका हूं। मैं नहीं खाऊंगा’- खाने की थाली को गुस्से में उलटते हुए पप्पू ने कहा। ‘अरे बेटा! खाने का अपमान नहीं करते हैं। सुबह में अपने घर से खाना खाकर ही बाहर निकलना चाहिए। कल तुम्हारे पसंद का

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शिशु को गर्भ में ही दे सकती हैं अच्छे संस्कार

सुबह सुबह अखबार में किशोरों द्वारा अपराध की खबरें देखकर सरिता जी का मन खिन्न हो गया। गंभीरता से अखबार पढ़ते-पढ़ते सरिता जी ने कहा,” पता नहीं आजकल के मां-बाप बच्चों को कैसे संस्कार देते हैं। ना ये शिष्टाचार जानते हैं, ना छोटे-बड़े का लिहाज करना जानते हैं। दिन भर भद्दे गाने सुनते और गुनगुनाते

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