Babita Jha

Founder president of CLF

उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है वृद्धावस्था के लिये?

वृद्धावस्था एक स्वाभाविक व प्राकृतिक घटना होती है। इस अवस्था में स्वत: ही अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी की समस्यायें एक जैसी हो। इन सबके बावजूद वृद्धावस्था को आनन्ददायक बनाया जा सकता है और बनाने के अनेक तरीके भी हैं। लेकिन इसके लिये  कम-से-कम एक उद्देश्य […]

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साथी

मिसेज सक्सेना को छ: महीने हो गए थे, यूँ उदासी ओढ़े । अब करतीं भी क्या.. अकेली..?डॉक्टर सक्सेना अब न रहे।       उनकी एकलौटी बहू शालिनी तरह-तरह से जुगत लगाती रहती कि माँ जी किसी प्रकार से खुश रहें, किन्तु वे शालिनी के समक्ष तो स्वयं को खुश प्रकट करती किन्तु वे उदास ही रहतीं।

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी है सफल वृद्धावस्था के लिए

जीवन में कई अवस्थाएँ आती हैं- जैसे शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था एवं वृद्धावस्था इत्यादि। किंतु इनमें वृद्धावस्था का समय ऐसा होता है जिसमें व्यक्ति पुनः बालक बन जाता है। उसे देखभाल और प्रेम-स्नेह की अधिक आवश्यकता होती है। चेहरा झुर्रियों से भर जाता है, अकेलापन काट खाने को दौड़ता है। अस्थि पंजर धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं।

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लोगों पर चलेगा आपका जादू और इंप्रूव होंगे रिलेशन

सरला के रिश्ते सबसे अच्छे हैं। ऑफिस में, अपने घर में, अपनी बिल्डिंग में, रिश्तेदारों में और फ्रेंडसर्किल में हर जगह उसकी पर्सनैलिटी और स्वीट बिहेवियर की धाक जमी हुई है। उसकी भाभी तनुजा को इस बात पर अक्सर ताज्जुब होता है। उसकी फ्रेंड काजल भी अक्सर कह देती है, “यार! जादू की छड़ी है

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वह नारियल का पेड़

सुबह के १० बजे थे । रोज़ाना की दिनचर्या से निबट जलपान ख़त्म कर शारदा जी ने नौकर को आवाज़ दी ।     “राघव, मेरी कुर्सी ज़रा बाहर लगा देना ।”        छोटी सी पोर्टिकोनुमा आँगन में धूप आने लगी थी । ज़ाड़े की धूप सुहानी होती है । और उसमें भी सुबह की धूप

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देशभक्ति

मास्टर दीनानाथ पंडित यूं तो गाँव  के सरकारी विद्यालय से कई वर्ष पूर्व सेवानिवृत हो चुके थे। लेकिन उनका मानना था कि एक अध्यापक अपने जीवनकाल में कभी भी रिटायर नहीं होता इसीलिए सरकारी पेंशन पाते हुए भी वे घर पर बच्चों को निःशुल्क शिक्षादान करते थे। सभी उन्हें आदर से ‘गुरुजी’ कहा करते थे।

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बुढ़ापा की दशा को एक सही दिशा की जरूरत

वृद्धावस्था जीवन यात्रा का नैसर्गिक व अंतिम पड़ाव होता है। मानव जीवन चक्र चार अलग-अलग अवस्थाओं से गुजरती है: बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था। प्रकृत्ति खुद को एक चक्रीय पद्धति से परिवर्तित करती है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे: मौसम का बदलना, इतिहास का दुहराना आदि। ठीक उसी तरह एक वृद्ध व्यक्ति अपने जीवन

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तुम मिली …जीने को और क्या चाहिए

था बिछोह दो दशकों का भारी, विलग हो हुई अधूरी; बस साँसे थी तन में,               शक्तिहीन मन-प्राण। थे कुछ शिकवे और शिकायत, उस अनंत सत्ता से; बनी फरियादी दिया फरियाद; याद किया तुम्हें जब-जब, नयन नीर सजल, अधीर मन-प्राण हुई आज पुनः संबल पाकर तुमको एक क्षण सहसा चौंकी! कहीं दिवा स्वप्न

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