Babita Jha

Founder president of CLF

टैरेस गार्डनिंग

आज मैं आपको अपनी टैरेस गार्डन प्रारंभ करने की दास्ताँ सुनाने जा रहा हूँ। बात उस समय की है जब मैं अपनी लखनऊ पोस्टिंग के दौरान छुट्टी में अपने घर महू आ रहा था। रास्ते में पड़ने वाले देवास शहर जहाँ की फूल गोभी बहुत बड़े आकार के साथ ही बहुत सफेद होने के कारण […]

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उद्देश्य प्रेरित जीवन: कितना जरूरी हैं सफल वृद्धावस्था के लिए?

प्रस्तावना इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्राचीन कल मे वृद्धों की स्थिति अत्यंत उन्नत एवं सम्मानीय थी। उन्हें समाज एवं परिवार मे अलग वर्चस्व था। परिवार की समस्त बागडोर उनके हाथों मे हुआ करती थी। परिवार का कोई भी फैसला उनकी सलाह के आधार पर ही होता था। उन्हीं की सत्ता एवं

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उद्देश्यपूर्ण जीवन: बुढ़ापे का सबसे बड़ा सहारा

वृद्धावस्था का नाम आते ही पता नहीं क्यों सहसा ही हड्डियों के ढाँचे से बना, थका हुआ एक लाचार और बेबस प्राणी की तस्वीर आँखों के सामने उभर जाती है। जब से रोजगार के चक्कर में लोगों ने भारी संख्या में घर छोड़कर बाहर रहना शुरू किया है, तब से या तो अधिकांश घरों में

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वृद्धावस्था जीवन का स्वर्णिम काल

मुझे ओशो की निम्नलिखित पंक्तियां बहुत प्रभावित करती हैं। “तुम आज क्या हो? अगर तुम नाच रहे हो, तो तुमने आने वाले कल के लिए नाच दे दिया। अगर तुम प्रमुदित हो, प्रफुल्लित हो, तो कल का फूल खिलने ही लगा। क्योंकि जिस फूल को कल खिलना है, उसकी कली आज ही तैयार हो रही

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औरों के साथ-साथ स्वयं का विकास भी अत्यंत आवश्यक है

‘‘जो पुल बनाएँगे’’ शीर्षक से अज्ञेय की एक कविता है। कविता इस प्रकार से है: जो पुल बनाएँगे/ वे अनिवार्यतः/ पीछे रह जाएँगे/ सेनाएँ हो जाएँगी पार/ मारे जाएँगे रावण/ जयी होंगे राम/ जो निर्माता रहे/ इतिहास में/ बंदर कहलाएँगे। जो पर्वतों की ऊँची चोटियों पर पहुँचकर झंडा फहराते हैं विजेता कहलाते हैं लेकिन जो

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वरीय कोना

प्रश्न– मेरे पति सरकारी नौकरी में थे। उनकी मृत्यु के बाद अनुकम्पा के आधार पर उनकी बड़ी बेटी को नौकरी मिली है। वह मेरे पति की पहली पत्नी से उत्पन्न बेटी है। मेरे अपने बच्चे अभी बहुत छोटे हैं। मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूँ। पति की नौकरी के अलावा आय का कोई और स्रोत या संपत्ति

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महिलाओं के लिए जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाने का स्वर्णिम अवसर है रिटायरमेंट

समय कितनी तेजी से बदलता है। कब बचपन बीत गया और किशोरावस्था को पार करके युवावस्था में पहुँच गए, पता ही नहीं चला। अपनी पढ़ाई-लिखाई, नौकरी, विवाह और बच्चे, फिर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनकी नौकरी, उनके विवाह, उनके बच्चे, जीवन की अन्य समस्याएँ, उनको सुलझाने की भागदौड़ में एक दिन नौकरी से भी रिटायर हो

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सही दिशा

दसवीं की परीक्षा हो गए। अब आद्या के सामने तीन माह की लंबी छुट्टियाँ  हैं। दो-चार दिन तो बेफिक्री भरे आनंद से गुजरे। कभी आद्या वीसीआर में फिल्म लगा देती कभी चित्र कथाएँ पढ़ने लगती और कभी टेप रिकॉर्डर में अपनी पसंद के गाने सुनने लगती। पर अब वह इन सब से भी ऊबने लगी

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