समझाइश (लघुकथा)
“इतने दिनों से मैं तुम्हें समझा रही थी; बात समझ नहीं आ रही थी? मेरे तन को खोखला तो कर डाला। मैंने तुम्हारे लिए कितना कष्ट सहा! दुःख सहा! कितनी पीड़ा हुई है मुझे! मैं ही जानता हूँ।” “लेकिन आपने मुझे कभी क्यों नहीं दुत्कारा? क्यों नहीं भगाया मुझे? मेरे प्रति स्नेह व अपनतत्व क्यों […]