Babita Jha

Founder president of CLF

पहले ख़ुद को तो समझा ले

दुनिया को समझाने वाले  पहले ख़ुद को तो समझा ले लोग पुकारें कैसे तुझको कम-से-कम इक नाम रखा ले  कब से देख रहा सूरज को वो अपनी आँखें न जला ले देखो वो इक परदेसी है  इस बस्ती में घर न बना ले कोई आने वाला होगा  अब तक जाग रहे घर वाले                        ****

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विचार संप्रेषण की आजादी

अनेक विविधताओं से भरा भारत, ‘अनेकता में एकता’ के लिए जाना जाता है। यही एकता उसको आज़ादी की ओर ले गयी और आज, भारत अपनी आज़ादी की हीरक जयंती मना रहा है। भारत एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। संविधान सभा के सदस्य 1935 में स्थापित प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से चुने गए। फिर साल 1946 के

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भीगिए,गाइए आज गाना

फिर हुआ आज मौसम सुहाना। आ गया बारिशों का जमाना भीगिए गाइए आज गाना॥ गातीं झर-झर फुहारें छतों पर दर्द लिख दीजिए सब खतों पर बचपने में चले जाइएगा बूँदों से है रिश्ता पुराना॥ युग-युगों से प्रतीक्षा रही है मीत! अब आस पूरी हुई है॥ प्रेयसी आ गई आज मिलने बात मन की उसे अब

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ढोला–मारू (लोककथा)

आत्मकथ्य- राजस्थान का इतिहास प्रेम, भक्ति, त्याग, शौर्य और बलिदान की गाथाओं से भरा पड़ा है। यहाँ के कण-कण में मीरा के भजन, पन्ना धाय के त्याग, महाराणा प्रताप, गोरा–बादल, चेतक, रामदेव पीर, ढोला–मारू और वीर तेजा जी की कहानियाँ बसी हुई हैं। उन्हीं में से एक प्रेम लोक कथा है– ‘ढोला–मारू’ जिसे सबसे पहले

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फटेहाल मालिक- फटेहाल जूता (चीनी लोककथा) 

चीन में चांग ची नामक एक चीनी रईस रहता था। उस में एक बुरी आदत थी। वह हद दर्जे का कंजूस व्यापारी था। उसे अपने कपड़े व जूते बहुत प्रिय थे। जब भी उसके कपड़े फट जाते वह उस में पैबंद लगा दिया करता था। इस कारण उस के कपड़े में पैबंद पर पैबंद लगे

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जन्मदिन का उपहार (लघुकथा)

विभा और वैभव के विवाह को मुश्किल से पाँच वर्ष ही हुए थे कि दोनों के मध्य वैचारिक मतभेद इतना बढ़ गया कि नौबत तलाक तक आ पहुँची। उन्होंने इस समस्या का समाधान करने के लिए विवाह-विच्छेद करना ही उचित समझा। एक बेटा अनिरुद्ध जो कि चार वर्ष का था, दोनों की मनोदशा से अनभिज्ञ

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सरस्वती का हाथ अभय मुद्रा में क्यों नहीं होता?

सरस्वती का हाथ अभय मुद्रा में क्यों नहीं होता? प्रत्येक भारतीय देवी देवताओं का एक प्रतीक शास्त्र होता है। चार या अधिक हाथ इसकी एक मौलिक विशेषता है जो अन्य किसी धर्म में नहीं पाया जाता है। अधिकांश देवी-देवताओं के इन चार में से एक हाथ ऊपर की तरफ होता है, जिसे अभय मुद्रा कहते

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बेटी कोई वस्तु तो नहीं, फिर कन्यादान क्यों?

आजकल कुछ बौद्धिकतावादी लोग कहने लगे हैं कि बेटी कोई वस्तु नहीं तो फिर विवाह में कन्यादान क्यों करूँ? एक विज्ञापन ने इस विवाद को और बढ़ावा दिया। यह सही है कि समय के साथ रीति-रिवाज बदलते हैं, और बदलना चाहिए भी। इस संबंध में मेरे पास विचार करने के लिए 5 प्रश्न हैं: 1.

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