क्यो जरूरी है भोजन और भजन की सावधानियाँ
श्वेतांबर कुमार झा, भागलपुर, बिहार

भोजन हम जीवन पर्यंत लेते हैं। लेकिन फिर भी भोजन क्या लें और कैसे लें, इस संबंध में कुछ जानबूझ कर लापरवाही से, तो कुछ अन्जाने में गलतियाँ करते हैं। भोजन जैसे शरीर के लिए आवश्यक है वैसे ही भजन मन के लिए।
लेकिन भजन का अर्थ किसी देवता की आराधना में गाए जाने वाले पद से नहीं है। बल्कि भजन का अर्थ है वे चीज, वे विचार या वे बातें जिन्हें हम हमेशा अपने मन-मस्तिष्क में बनाए रखते हैं। एक स्वस्थ मस्तिष्क के बिना एक स्वस्थ शरीर की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसे हम उल्टा भी बोल सकते हैं अर्थात एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है।
भोजन की पाँच सावधानियाँ
पहले बात भोजन की। जीवन चक्र की प्रत्येक अवस्था में हमारे शरीर की एक अलग और विशेष प्रकार की जरूरत होती है। इसलिए भोजन के प्रकार में भी अन्तर आना स्वाभाविक है। लेकिन हम जब किसी एक प्रकार के भोजन के आदी हो जाते हैं तो उसे तब तक आसानी से नहीं छोड़ पाते जब तक कि हमे स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी न हो जाए और डॉक्टर उसे बंद करने के लिए नहीं कहे। अगर स्वेच्छा से कुछ सावधानी रख लें तो संभवतः ऐसे अवसरों की संभावना में कमी आ जाए।
सबसे पहले तो यह देखते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे भोजन संबंधी आवश्यकताओं में क्या परिवर्तन आता है। ऐसे परिवर्तनों को इस तरह सूचीबद्ध किया जा सकता है:
- 1. शरीर के हर तंत्र, जिसमें पाचन तंत्र और प्रतिरक्षा तंत्र भी शामिल है, की क्षमता कम हो जाती है।
- 2. दाँत संबंधी भी अनेक तरह की समस्याएँ आने लगती है।
- 3. शारीरिक गतिविधियाँ सीमित हो जाती हैं। इसलिए इसकी आवश्यताएँ बदल जाती हैं।
- 4. इस समय तक उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गठिया, हृदय रोग आदि कई तरह की समस्याएँ आ जाती हैं। इसलिए भोजन अपनी इस शारीरिक सीमाओं के अनुसार ही लेने की विवशता हो जाती है।
- 5. उम्र बढ़ने पर बहुत से लोगों को आर्थिक कठिनाई भी हो जाती है। इस कारण वे चाह कर, या जानते हुए भी, संतुलित आहार नहीं ले पाते हैं।
- 6. कुछ बीमारियों, जैसे पर्किंसन आदि में लोग भूलने लगते हैं। वे अपने खानपान का स्वयं ध्यान रखने की हालत में नहीं होते हैं।
7. कई वरिष्ठ लोग जिन्हें रात में नहीं दिखाई देने की समस्या होती है या जिन्हें चलने-फिरने में कठिनाई होती है, वे भोजन कम करने लगते हैं ताकि उन्हें बार-बार शौचालय न जाना पड़े। प्रोटेस्टेंट ग्लैंड का बढ़ जाना या कुछ अन्य समस्याएँ भी होती हैं जिसमे ब्लैडर (मूत्राशय) की क्षमता कम हो जाती है और बार-बार पेशाब जाने की जरूरत होती है। ऐसे लोग कई बार जानबूझ कर पानी पीना कम कर देते हैं।
8. पता होता है। स्त्रियों के लिए भी यह सही हो सकता है। लेकिन उम्र होने पर अगर पत्नी की मृत्यु हो जाए या स्त्री स्वयं भोजन नहीं बना सकती हो, तब ऐसी हालत में जो नया व्यक्ति भोजन बना रहा होता है, वह उनकी आदतों को नहीं जानता। फिर उसकी अपनी आदतें और सहूलियतें भी होती हैं। दूसरी तरफ भोजन करने वाला व्यक्ति अपनी आदतों और आदत बदलने की विवशता से उत्पन्न चीड़चिड़ापन को छोड़ नहीं पाता। बहुत-से सामान्य घरों में आदतों की यह टकराव गृह-क्लेश का रूप ले लेता है।
परिवर्तन को शाश्वत सत्य मानते हुए परिस्थिति अनुसार अपने स्वभाव और आदतों में परिवर्तन लाना एक स्वस्थ शरीर और मन का रहस्य है। वरीय व्यक्तियों को अपने भोजन में ये सावधानी रखनी चाहिए:
1. अपने शरीर की आवश्यकता को समझें
भोजन की मात्रा से अधिक ध्यान उसकी पौष्टिकता पर दें। संतुलित भोजन कैसा हो, यह आपकी शारीरिक स्थिति, कार्य और सामान्य स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। सामान्यतः जिस भोजन में विटमिन (विटामिन), मिनरल्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा इत्यादि की उतनी मात्रा हो, जितनी आपको जरूरत हो, तो उसे संतुलित भोजन कहा जाता है।
ये अलग-अलग शरीर के लिए अलग-अलग हो सकता है। उदाहरण के लिए नारियल पानी। इसमे फॉस्फोरस और कई मिनरल्स की उच्च मात्रा के कारण एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए या एक ऐसे व्यक्ति के लिए जिनमें किसी मिनरल की कमी है, बहुत ही लाभदायक है। लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे किडनी की समस्या हो, उसे नारियल पानी बिल्कुल नहीं पीना चाहिए। इसलिए अगर डॉक्टर ने आपको भोजन सम्बन्धी कोई हिदायत दी हो तो उसे जरूर माने।
2. संतुलित भोजन लें
एक स्वस्थ वरीय व्यक्ति को कम वसा और अधिक पौष्टिकता वाला भोजन लेना चाहिए। भोजन में मौसमी सब्जी और फल, दालें और बीन्स, बीज वाले फल और नट्स, साबुत अनाज, कम वसा वाले दुग्ध उत्पाद, सुपाच्य प्रोटीन आदि लेना चाहिए। फाइबर वाले फल और सब्जियाँ अधिक लें। गेहूँ, ओट, आदि छिलके सहित हो और चावल, दाल आदि बिना पॉलिश वाली हो तो अच्छा होगा।
तली चीजें, गरिष्ठ भोजन (जैसे मांस), डिब्बाबंद चीजें, अत्यधिक मीठा, कोल्ड ड्रिंक्स आदि कभी- कभार ही यानि कम-से-कम लें।

3. आवश्यकतानुसार संपूरक आहार लें
संतुलित भोजन लेने के बाद भी हो सकता है कि शरीर में कुछ अवयवों की कमी रह जाए। इसलिए अवश्यतानुसार विटमिन (विटामिन) डी, विटमिन बी-12, कैल्शियम, मैग्नेशियम आदि संपूरक (supplementary) के रूप में ले। वर्तमान जीवनशैली के कारण हर उम्र के अधिकांश व्यक्तियों में विटमिन डी की कमी हो रही है। कैल्शियम की कमी युवाओं में भी सामान्य है। लेकिन ये संपूरक भी अवश्यकता से अधिक मात्रा में नहीं लें।
4. आवश्यकता से अधिक या डॉक्टर की सलाह के बिना संपूरक आहार या दवाएँ न लें
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि तंत्रिका सम्बन्धी या किसी अन्य कारण से हाथ-पैरों में कमजोरी आने लगती है। लेकिन वरीय व्यक्ति इसे सामान्य कमजोरी समझ कर कैल्शियम, विटमिन आदि की दवाएँ, या च्यवनप्राश आदि संपूरक आहार कैमिस्ट से लेकर बहुत अधिक मात्रा में खा लेते हैं। इससे उनकी मूल बीमारी तो बढ़ती ही रहती है, साथ-साथ कुछ नई समस्याएँ भी हो जाती हैं। इसलिए दवाएँ या संपूरक आहार की मात्रा का भी ध्यान रखें।
5. पानी और अन्य तरल पदार्थ पर्याप्त मात्रा में लें
संतुलित भोजन में हम सामान्यतः भोजन का तो ध्यान रख लेते हैं पर पानी और अन्य तरल पदार्थों का ध्यान कई बार नहीं रखते। उम्र होने पर सामान्यतः चार कारणों से लोग पर्याप्त पानी या अन्य तरल पदार्थ नहीं लेते हैं:(1) खान-पान सम्बन्धी गलत आदतें (2) संवेदना की कमी। इस कारण उन्हें प्यास की अनुभूति नहीं हो पाती (3) भूल जाना (4) बार-बार पेशाब जाने से बचने के लिए जानबूझ कर पानी नहीं पीते हैं।

लेकिन पानी की शरीर में कमी कई तरह की परेशानियों और शरीर में ऊर्जा की कमी का कारण हो सकता है। इसलिए पानी पर्याप्त मात्र में पीएँ। ऊपर बताए गए कारणों से अगर आप पानी नहीं पी पाते तो ऐसा कीजिए कि एक बर्तन में उतने पानी अपने पास रख लीजिए। यह पानी कम-से-कम तीन लीटर हो। यह निश्चित कीजिए कि इस सारे पानी को आप पूरे दिन में ख़त्म कर देंगे। पानी बोतल के बदले गिलास से पीएँ। पानी दिन में अधिक पीएँ, रात को कम। खाने के कम-से-कम आधे घंटे पहले तक नहीं पीएँ। रात का भोजन थोड़ा जल्दी कर लें। उसके आधे घंटे बाद पानी पीएँ। सोने से दो घंटा पहले से पानी नहीं पीएँ।
भजन यानि विचारों की सावधानियाँ
उम्र बढ़ने के साथ-साथ विचार नकारात्मक और जिद्दी होने लगते हैं। इसके ये सामान्य कारण होते हैं:
- 1. शारीरिक दुर्बलता और पीड़ा
- 2. आर्थिक दुर्बलता
- 3. परिवार और समाज में अपनी उपयोगिता समाप्त होने का एहसास
- 4. अपने मित्रों, संबधियों आदि प्रिय व्यक्तियों को एक-एक कर मरते हुए देखना और अकेलेपन का अनचाहा भाव
- 5. अवचेतन मन में मृत्यु का भय
- 6. जीवन की कटु स्मृतियाँ
इस मन का यह स्वभाव है कि इसे जिधर ले जाया जाता है वह उधर ही दौड़ लगाने लगता है। अगर आप एक बार कुछ नकारात्मक सोचने लगे तो पुरानी से पुरानी नकारात्मक बातें याद आने लगती है। इस प्रवाह में सकारात्मक बातें ठहर ही नहीं पाती। वरीय व्यक्ति उपर्युक्त कारणों से नकारात्मक दृष्टि वाले हो जाते हैं। वे अपने गम और विचारों में इतना उलझे होते हैं कि अपने को दूसरों के खुशी से नहीं जोड़ पाते। कई बार अहम और झिझक के कारण भी वे दूसरों, जिनमें उनके अपने बच्चे भी शामिल होते हैं, से जुड़ नहीं पाते। कुछ नई चीजें सीख नहीं पाते या यूँ कहें कि सीखना नहीं चाहते। इस स्थिति से निकलने के लिए उन्हें कुछ प्रयास करना पड़ेगा।
होता यह है कि हम हमेशा कुछ-न-कुछ सोचते रहते हैं, लेकिन यह सोच कैसे होती है, इसके प्रति बड़े लापरवाह होते हैं। संभवतः इसीलिए गौतम बुद्ध और महावीर जैन को “सम्यक स्मृति” पर इतना अधिक बल देना पड़ा। हमारे मस्तिष्क में जो विचार चल रहें हैं, वे किस तरफ जा सकते हैं, इस के विषय में हमे सचेत रहना चाहिए। यह कहने में हो बहुत आसान होता है, लेकिन करने में तब तक मुश्किल है जब तक इसके लिए मस्तिष्क को अभ्यास न करा दिया जाय। स्वस्थ विचार के पाँच सूत्र या रहस्य हैं:
1. सकारात्मक सोच
अगर हम सावधानी से याद करें तो देखेंगे कि हमारे अधिकांश विचार “नहीं” वाले यानि नकारात्मक ही होते हैं। उदाहरण के लिए, “मेरे पास समय नहीं है”, “मेरे पास पैसे नहीं हैं”, “मेरी तबीयत ठीक नहीं है”, “आज खाना अच्छा नहीं है”, “आजकल समय अच्छा नहीं है”, इत्यादि। इसके बदले अगर हम यह सोचने की आदत डाल लें कि मेरे पास (समय नहीं है तो क्या हुआ) काम है, परिवार है, दोस्त हैं, पैसे हैं। मेरे पास (पैसे नहीं है तो क्या हुआ) समय है, दोस्त हैं, परिवार है, स्वस्थ शरीर है, इत्यादि। जब आप इस पर ध्यान केंद्रित करेंगे कि आपके पास ऐसा क्या है जो दूसरों के पास नहीं है, तो आप अपने को बहुत अच्छी स्थिति में पाएँगे। साथ ही जो आपके पास है, उसके अधिकतम उपयोग पर आपका ध्यान केंद्रित होगा। हमेशा सकारात्मक और ऊर्जावान व्यक्ति से ही संपर्क में रहे। नकारात्मक व्यक्तियों से बचे।
2. मस्तिष्क को हमेशा सक्रिय रखना
शरीर की तरह मस्तिष्क को भी व्यायाम की जरूरत होती है। अगर इसका उपयोग नहीं होगा तो इसकी क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। विभिन्न शोध बताते हैं कि जो व्यक्ति एक रूटीन जीवन जीते हैं। अपना मस्तिष्क केवल अपने निश्चित कार्य में लगाते हैं उन्हें उम्र होने पर मानसिक रोग होने की संभावना अधिक होती है अपेक्षाकृत उन लोगों के जो मस्तिष्क को नए-नए चुनौतीपूर्ण कार्यों, जैसे कुछ नई चीजें सीखने, में लगाते हैं। शब्द-पहेली, वर्ग-पहेली जैसे दिमागी कसरत भी इसके लिए लाभदायक माना गया है।
3. शारीरिक सक्रियता
सही तरीके से टहलना, प्राणायाम, आदि कुछ शारीरिक व्यायाम और गतिविधियाँ मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक पाया गया है।
4. मस्तिष्क को एकाग्र करना
मस्तिष्क को हमेशा कुछ-न-कुछ व्यर्थ की बातों को सोचने से बचाने के लिए उसे दिन में कुछ समय सायाश रूप से बिना किसी विचार के बिल्कुल खाली कर एकाग्र करने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रक्रिया को कुछ लोग ध्यान या मेडिटेशन कहते हैं। लेकिन व्यवहार में जब व्यक्ति का मन व्यथित होता है तब ध्यान करना बहुत ही कठिन होता है। ऐसे समय के लिए आध्यात्म, जप, पूजा, किसी अच्छी पुस्तक का पाठ आदि किया जा सकता है। कुछ दिनों के अभ्यास के बाद हो सकता है, अपनी व्यथा से ध्यान हट कर एकाग्र हो जाए।
5. एक उद्देश्य बनाए रखना
हमेशा जीवन का कोई न कोई उद्देश्य यानि लक्ष्य रखना बहुत ही आवश्यक है। यह उद्देश्य कुछ भी हो सकता है, जो हमारे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक क्षमता के अनुसार हो। अपने पड़ोस के बच्चों को पढ़ाना, फूलों या सब्जियों के पौधे लगाना और उनकी देखभाल करना, किसी संस्था से जुड़ना इत्यादि ऐसे कार्यों के उदाहरण हो सकते हैं।
उद्देश्य हमारे जीवन को सार्थक और सकारात्मक बनाता है। हमारा ध्यान अपने उद्देश्य पर होता है तो अपनी समस्याओं से ध्यान हटता है। और मस्तिष्क अपने-आप सक्रिय रहता है।