blue zone

दीर्घ जीवन के 9 मंत्र देते हैं विश्व के ये पाँच ब्लू जोन

Share

 ब्लू जोन

2018 के विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर वर्तमान में मनुष्य जाति की औसत जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) 71.4 वर्ष है। लेकिन विश्व के प्रत्येक हिस्से में यह समान नहीं है। कहीं यह बहुत अधिक है तो कहीं बहुत कम। अभी तक जापान इसमें सबसे आगे था लेकिन अब हाँगकाँग 85.29 वर्ष के साथ पहले स्थान पर और जापान 85.3 वर्ष के साथ दूसरे स्थान पर है। भारत 70.42 वर्ष के साथ 135वें स्थान पर है। सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक 54.36 वर्ष के साथ अंतिम स्थान (191वें) पर है। स्पष्टतः जीवन प्रत्याशा में वैश्विक स्तर पर बहुत अन्तर है। इसी अन्तर ने शोधकर्ताओं में यह जिज्ञासा उत्पन्न किया कि क्या कारण है कि कुछ स्थानों के लोग अधिक समय तक जीवित रहते हैं। शोधकर्ताओं ने विश्व के ऐसे पाँच स्थानों की खोज की है, जहाँ लोग सबसे अधिक समय तक जीवित और स्वस्थ रहते है। इन्हें “ब्लू जोन” नाम दिया गया है।

      नेशनल ज्योग्राफिक नामक पत्रिका के नवम्बर, 2005 में आमुख आलेख (कवर आर्टिकल) से यह शब्द प्रचलन में आया। शीर्षक था “लम्बे जीवन के रहस्य (The Secrets of Long Life)” और लेखक थे डैम बटनर (Dam Buettner)। यह आलेख पाँच ऐसे क्षेत्रों (ब्लू जोन) के आँकड़ों और अध्ययन पर आधारित था। बाद में डैम बटनर ने एक किताब भी प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था “The Blue Zones: Lessons for Living Longer from the People Who’ve Lived the Longest are”।

      इसके लेखक डैम बटनर (Dam Buettner) ने विश्व के ऐसे पाँच क्षेत्रों की पहचान की जहाँ के व्यक्ति लंबी और स्वस्थ जीवन पाते थे। इन क्षेत्रों को उन्होंने “ब्लू जोन” नाम दिया। इन्हें ब्लू जोन नाम देने के पीछे कारण यह था कि मानचित्र में शोधकर्ताओं ने उन क्षेत्रों को नीला (ब्लू) रंग से गोला (circle) किया था जहाँ के लोग जीवन प्रत्याशा और सेहत के मामले में आगे थे, ताकि अन्य क्षेत्रों से उनकी अलग पहचान हो सके। ये पाँच क्षेत्र हैं:

  • 1. सार्डेनिया, इटली (Sardinia, Italy)
  • 2. ओकिनावा, जापान (Okinawa, Japan)
  • 3. लोमा लिंडा, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका (Loma Linda, California)
  • 4. निकोया प्रायद्वीप, कोस्टारिका (Nicoya Peninsula, Costa Rica)
  • 5. इकारिया, ग्रीस (Icaria, Greece)

      डैम बटनर (Dam Buettner) के शोधों के अनुसार इन क्षेत्रों के एक-तिहाई आबादी न केवल 90 वर्ष से अधिक आयु पाते हैं बल्कि इस उम्र में भी वे अपेक्षाकृत सेहतमंद और सक्रिय होते हैं।

      इन ब्लू जोन की यही विशेषता उन्हें जराशास्त्र (Gerontology) पर शोध करने वाले व्यक्तियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है। शोधकर्ताओं ने सबसे पहले उन तत्त्वों की खोज शुरू की जो इन सबमें सामान्य रूप से उपस्थित थे। नतीजा इस वेन चार्ट के रूप में उन्होंने रखा।

Read Also:  एल्बम के बचे हुए पन्ने

इस में उन्होने इन क्षेत्रों के लोगों की दिनचर्या से संबन्धित कुछ प्रमुख तथ्यों को इस तरह सूचीबद्ध किया:   

लोमा लिंडा, अमेरिका

  • · स्वस्थ सामाजिक जीवन
  • · भोजन में नट, साबुत अनाज का अधिक प्रयोग
  • · स्वस्थ पारिवारिक जीवन
  • · धूम्रपान नहीं
  • · वनस्पति आधारित भोजन
  • हल्की शारीरिक सक्रियता 

सार्डेनिया, इटली

  • · भोजन में साबुत अनाज, वनस्पति आधारित भोजन, फावा बीन्स (fava beans) और पोलिफेनोल (high polyphenol) वाइन का प्रयोग
  • · धूम्रपान नहीं
  • · स्वस्थ सामाजिक और पारिवारिक जीवन
  • · सशक्त महिलाएँ
  • · बागवानी

ओकिनावा, जापान

  • · भोजन में सोया का अधिक प्रयोग, वनस्पति आधारित भोजन, शराब और धूम्रपान का प्रयोग नहीं
  • · स्वस्थ पारिवारिक और सामाजिक जीवन,
  • · सशक्त महिलाएँ
  • · बागवानी

      इन सभी अध्ययनों के आधार पर शोधकर्ताओं ने नौ ऐसे कारणों की पहचान की जो कि सामान्य रूप से इन पाँचों क्षेत्रों में विद्यमान थे। इनका प्रयोग करने पर अन्य क्षेत्रों के जीवन प्रत्याशा में भी सुधार देखा गया। इन्हें स्वस्थ जीवन का मंत्र कहा जा सकता है। ये नौ हैं:

  • 1. शारीरिक रुप से सक्रियता
  • 2. जीवन का उद्देश्य होना
  • 3. तनाव रहित जीवन
  • 4. कम कैलोरी वाला भोजन
  • 5. भोजन में वनस्पति उत्पादों की अधिकता
  • 6. आध्यात्मिक गतिविधियों में लिप्तता
  • 7. स्वस्थ पारिवारिक जीवन
  • 8. स्वस्थ और सक्रिय सामाजिक जीवन, तथा
  • 9. धूम्रपान और नशे से परहेज।

      ब्लू जोन क्षेत्रों का यह अध्ययन जीव-जरा विज्ञान (Bio-gerontology), एपिजेनेटिक्स (Epigenetics) (ऐसा विज्ञान जिसमे जीन के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है) और प्राकृतिक चिकित्सा (Naturopathy) के आधार पर किया गया था। भोजन और संस्कृति में स्थानीय विभिन्नता के बावजूद ये नौ तत्व इन पाँचों जगह उपस्थित थे।

      सेहतमंद और लम्बे जीवन के इन नौ सूत्रों को अब थोड़ा विस्तार से देखते हैं:

   1. शारीरिक रुप से सक्रियता

      एक पुरानी कहावत है “स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।” शरीर को सक्रिय रखना इसको स्वस्थ रखने का सबसे कारगर तरीका है। किसी भौतिक मशीन को अगर उपयोग में नहीं लाया जाय, अथवा उसकी क्षमता से अधिक उपयोग में लाया जाए, दोनों ही स्थिति में वह ठीक से काम नहीं कर पाएगा। यही स्थिति मानव शरीर की भी है।

2. जीवन का उद्देश्य

आम तौर पर जीवन का एक निश्चित उद्देश्य या लक्ष्य (goal) बनाने के लिए युवाओं को कहा जाता है। बुजुर्ग तो उद्देश्य बनाते ही नहीं या बनाते हैं तो इस अवस्था में जब वे इसे पूरा करने के लिए सक्षम नहीं होते।

      बहुत सारे लोग कोई नौकरी, संपत्ति, परिवार को पालने या किसी निश्चित चीज को पा लेने को जीवन का उद्देश्य बना लेते हैं। ये उदेश्य अगर पूरे हो जाए, फिर क्या? फिर और भौतिक संपत्ति? एक और उद्देश्य? ये क्रम ही गलत है। ये गलत दो कारणों से है।

Read Also:  क्षमा

पहला, ये कार्य पूरे जीवन के उद्देश्य नहीं हो सकते  बल्कि एक सीमित समय के लिए उद्देश्य हो सकते हैं। ऐसे में अगर शरीर साथ छोडने लगता है या परिवार को आपकी अधिक जरूरत नहीं रह जाती है, तो जीवन निरुद्देश्य या तनाव से ग्रस्त हो जाता है। इसीलिए उद्देश्य ऐसा हो जो जीवन के अंतिम  चरण में भी आपके साथ रहे। साथ ही आपको इस कार्य को करने का अनुभव और इसमे आपकी रुचि पहले से ही हो।

   3. तनाव रहित जीवन

      वर्तमान जीवन शैली के कारण तनाव लगभग सबके जीवन में रहता ही है। कुछ लोग नशा आदि कर के इससे बचने के लिए प्रयास करते हैं। लेकिन यह तो तात्क्षणिक उपाय है। ध्यान जैसे तरीके भी हो सकता है बहुत कारगर साबित नहीं हो पाए क्योंकि जब मन बेचैन होगा तो ध्यान होगा ही नहीं।

      वास्तव में समस्या यह नहीं है कि तनाव ज्यादा है। बल्कि यह है कि हमे तनाव से निपटना नहीं आता है। स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मस्तिष्क और सकारात्मक सोच के साथ हम तनाव के मूल कारण को बहुत हद तक कम कर सकते है। साथ ही अपनी क्षमता इतनी बढ़ा सकते हैं कि बचे हुए तनाव के साथ सामंजस्य बना कर चल सकें। शारीरिक सक्रियता, स्वस्थ पारिवारिक और सामाजिक वातावरण इस सामंजस्य क्षमता को बढ़ाने में बहुत सहायक हो सकता है।

4. कम कैलोरी (वसा) वाला भोजन

      कम कैलोरी वाला भोजन प्रत्यक्ष रूप से वृद्धावस्था रोकने में सहायक नही होता लेकिन यह शरीर को चुस्त और तंदुरुस्त रखता है। एक उम्र के बाद पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है। शरीर को सामान्यतः उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा इत्यादि कई तरह की समस्याएँ हो जाती हैं। साथ ही स्वाभाविक रूप से शारीरिक सक्रियता घट जाती है।

      सक्रियता घटने से कैलोरी की खपत भी कम हो जाती है। इसलिए भोजन में वसा की मात्रा कम लेकिन प्रोटीन, विटमिन (विटामिन) और फाइबर की मात्रा बढ़ाना उचित होता है। 

5. भोजन में वनस्पति उत्पादों की अधिकता

      जैविक उत्पादों, जैसे मांस, अंडा, मछली, घी, दूध आदि में पाए जाने वाले प्रोटीन पचने में थोड़े कठिन होते हैं। इनमें वसा की मात्रा भी अधिक होती है। मांस जैसे उत्पादों को चबाने के लिए दाँत की जरूरत होती है। उम्र के साथ-साथ दाँत भी कमजोर हो जाते हैं। इससे कई बार भोजन पर्याप्त रूप से चबाए बिना ही निगल लिया जाता है। ये सारी बातें शरीर के स्वास्थ्य की दृष्टि से सही नहीं होती है। हाँ, इसके कुछ अपवाद भी हो सकते हैं। जैसे ओमेगा वसा, जो कि जापान के तट पर पाई जाने वाली एक विशेष प्रकर की समुद्री मछली में मिलती है, बहुत लाभदायक माना जाता है।

      अगर पचने में कोई दिक्कत नहीं हो तो मलाई निकाला हुआ दूध और दही आदि लिया जा सकता है। इसलिए स्वास्थ्य के दृष्टि से उम्र बढ़ने के साथ-साथ वनस्पति उत्पादों का प्रयोग भोजन में बढ़ाना चाहिए। दाल, बीन्स, स्थानीय तौर पर उपलब्ध मौसमी फल, सब्जी और अनाज आदि का प्रयोग अधिक करना चाहिए। 

Read Also:  पॉपकॉर्न माइंड: एक नई महामारी

      भोजन जो भी लें, इसमें अपने स्वास्थ्य की स्थिति, शारीरिक संरचना और उम्र का ध्यान रखना आवश्यक है।

6. आध्यात्मिक गतिविधियों में लिप्तता

      आध्यात्मिक गतिविधियों का अर्थ किसी विशेष प्रकार की पूजा पद्धति या अन्ध-विश्वास नहीं है। इसका सामान्य अर्थ है एक सकारात्मक मनोभाव के साथ अपने मस्तिष्क को किसी एक निश्चित दिशा में लगा देना, व्यस्त रखना। इससे तनाव और नकारात्मक विचार कम होते हैं। व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रहता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जो व्यक्ति आध्यात्मिक गतिविधियों में व्यस्त थे, उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ऐसे अन्य व्यक्तियों की तुलना में अच्छा था।

7. स्वस्थ पारिवारिक जीवन

      परिवार एक ऐसी जगह है जहाँ व्यक्ति सबसे अधिक भावनात्मक संबल और अपनापन पाता है। यही उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाता है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि जिस घर का माहौल कलहपूर्ण होता है, वहाँ के बच्चे भावनात्मक रूप से असंतुलित होते हैं। अगर किसी घर के पिता बहुत क्रोधी स्वभाव के हैं तो उस घर के बच्चों में भी व्यावहारिक असामान्यता आ जाती है। या तो वे बहुत ही अंतर्मुखी हो जाते हैं या बहुत ही उग्र स्वभाव के। ऐसे मानसिक अवस्था का प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक अवस्था पर भी पड़ता है। ऐसे पारिवारिक वातावरण में स्वाभाविक रूप से एक तो घर के बड़े-बुजुर्गों की सही देखभाल नहीं हो पाती। बुजुर्ग भी मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान रहते हैं।

      उपर्युक्त सभी पाँच ब्लू जोन में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी थीं। वहाँ की महिलाएँ सामाजिक और आर्थिक रूप से भी सक्रिय थी।  

8. स्वस्थ और सक्रिय सामाजिक जीवन

      यहाँ के लोग सामाजिक रूप से भी जुड़े हुए थे। वे आपस में मिलते-जुलते अपने दुख-सुख बाँटते और साथ मिलकर कई सामूहिक कार्य करते थे। अधिक उम्र के लोग भी ऐसे कार्यों में उत्साह से भाग लेते थे।

      सामाजिक जीवन शहरों की तुलना में गाँवों में, और घनी बसाहटों की तुलना में ऐसी जगहों पर अधिक मुखर होता है जहाँ घर के बाहर का स्थान खुला हो, या प्राकृतिक दृश्य हों।

9. धूम्रपान और नशे से परहेज

      हालाँकि कुछ जगहों पर स्थानीय प्रकार का हल्का वाइन लेने का प्रचलन था। उदाहरण के लिए  लोग सार्डीनिया में हाई पोलिफेनोल (high polyphenol) वाइन का प्रयोग करते थे। लेकिन मात्रा कम और औषधि के रूप में था, नशे के रूप में नहीं। धूम्रपान इन जगहों पर बहुत कम प्रचलन में था। इसके अतिरिक्त इन सभी क्षेत्रों का प्राकृतिक वातावरण स्वच्छ और हराभरा था। लोगों का प्रकृति से निकट का संबंध था। बागवानी, खेती, पशुपालन इत्यादि में वे अधिक लगे थे। एक निश्चित उम्र पर सेवानिवृत कर देने वाली नौकरी लोगों को अचानक से “बूढ़ा” होने या अनुपयोगी होने का अनुभव कराने लगती हैं, विशेष कर, तब जबकि जीवन का कोई उद्देश्य निर्धारित नहीं हो।

******

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top

Discover more from

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading