कैसे दिए जाएँ बच्चों में संस्कार?

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तरुण आज ऑफिस से जल्दी घर आ गए थे। वह पारिवारिक व्यक्ति थे। परिवार के साथ समय बिताना, बच्चों से बाते करना उन्हें अच्छा लगता था। आते समय उन्होने रास्ते में जलेबी खरीदा। घर आकर बड़ी बेटी स्नेहा, जो कि अभी 6-7 वर्ष की थी, को दे दिया। बेटी ने जलेबी प्लेट में रख कर भाई बहन और माता पिता सबको दिया। सभी खाने के लिए बैठे और बाते करने लगे। स्नेहा ने सबको देने के बाद जल्दी से अपना प्लेट उठाया और जल्दी-जल्दी खाने लगी। तरुण ने एक हल्का थप्पड़ उसके गाल पर मार दिया। तरुण ने बच्चों को ‘टेबल मैनर्स’ सिखाया था। आज स्नेहा जलेबी देख कर उसे भूल गई। तरुण चाहते थे कि उनके बच्चे अनुशासित और संस्कारी बने। बच्चों के ‘स्टडी मटेरियल’, कोर्स, स्कूल-कॉलेज आदि सभी चीजों का निर्णय वही लेते थे हालाँकि इसके लिए बच्चों से बात करते थे लेकिन बच्चों ने भी उन पर ही छोड़ रखा था।  वे चाहते थे कि वे सारे काम कर दे ताकी बच्चे अपना अधिक समय पढ़ाई में दें और अच्छा करें। लेकिन एक दिन डॉक्टर ने बताया स्नेहा अवसाद की शिकार है। अत्यधिक अनुशासन के कारण अवचेतन मन में उसे अपने घर वालों से नफरत थी। सब कार्य माता–पिता द्वारा किए जाने के कारण वह स्वयं निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो पायी थी। उसने केवल माता-पिता की बात मानना सीखा था।

कहाँ चूक हुई तरुण से? क्या माता-पिता अपने बच्चों के लिए नहीं सोचें? क्या उन्हें अनुशासन में रखना गलत है? सभी माता-पिता चाहते हैं उनके बच्चे संस्कारी और अनुशासित बने, इसके लिए वे बहुत प्रयास भी करते हैं, पर क्यों सफल नहीं हो पाते हैं? वास्तव में वे बच्चों के बारे में सोचते समय संतुलन के विषय में भूल जाते हैं। वे बच्चों में गुण भरने लगते हैं, गुणों को विकसित होने का अवसर नहीं देते।

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वास्तव में बच्चों के संस्कार देने के निम्नलिखित तरीके हो सकते हैं:       

स्वयं संस्कारी बने

बच्चे कही हुई बातों से ज्यादा देखी हुई चीजों का अनुकरण करते हैं। अगर आप अपने बच्चों से जैसा उम्मीद करते हैं सबसे पहले स्वयं ऐसा व्यवहार करना होगा। अनुभव बताते हैं ज़्यादातर लोग सिगरेट, तंबाकू, शराब जैसे नशा अपने घर के बड़ों से ही सीखते हैं। घर में कलह या नकारात्मक माहौल होगा तो बच्चे इससे अलग नहीं हो सकते। घर के बड़े अगर स्वस्थ्य दिनचर्या रखेंगे तो बच्चे अपने आप बिना कहे ही इसमें ढल जाएंगे।     

किस्से कहानी को माध्यम बनाएँ

बच्चों को छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से नैतिक शिक्षा देना बहुत ही कारगर और परंपरागत तरीका है। कहानी ऐसे सुनाया जाय जिसे वे मनोरंजन समझे, पढ़ाई नहीं। अगर संभव हो तो दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता स्वयं सुनाएँ। थोड़ा-बहुत यू ट्यूब, टीवी आदि से भी मदद ले सकते हैं।

बच्चों में पढ़ने की आदत डाले

अध्ययन बताते हैं कि जब हम कोई वीडियो देखते हैं तब आँख, कान और मस्तिष्क तीनों उसमें एकाकार हो जाते हैं, देखी हुई चीजों को असर ज्यादा देर रहता है। इस कारण मस्तिष्क स्वयं उस पर विचार नहीं कर पाता। लेकिन जब हम कोई पुस्तक पढ़ते हैं तो उसके वर्णन के अनुसार हमारे मस्तिष्क में एक छवि बनती है, मस्तिष्क उस विषय पर विचार कर पाता है, कल्पनाशक्ति बढ़ती है। इसलिए बच्चों में पुस्तक पढ़ने की आदत डालना बहुत जरूरी है। इनमें पाठ्यक्रम के अलावा अन्य विषयों की पुस्तक भी होनी चाहिए। बच्चों में पढ़ने की आदत डालने का सबसे आसान तरीका यह है कि आप स्वयं कोई किताब लेकर कुछ देर जरूर पढे।

बच्चों को व्यवहारिक दुनिया से जोड़ें

बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं। वे बहुत से सवाल करते हैं, नई-नई चीजें जानना चाहते हैं। उनके सवालों का स्वयं भी जवाब दें और जवाब ढूँढने के लिए उन्हें प्रेरित भी करें। उन्हें अपने आसपास के वातावरण से जोड़ने की कोशिश करें। आसपास के पशुपक्षी, पेड़पौधे, नदियां, लोग, सब कुछ के बारे में वो जाने और उन्हें अपनी दृष्टि से सोचने-समझने का प्रयास करें। जो किताबों में पढ़ाया जाता है उसे जहां तक संभव हो व्यावहारिक रूप से समझाएँ। जैसे बारिश हो, बिजली चमके, ट्रेन की सिटी, मोबाइल टीवी जैसे घरेलू चीजें इन सब के विषय में उन्हें व्यावहारिक रूप से जानकारी देते रहें ताकि वह अपने आस पास के प्रति अधिक जिज्ञासु और जागरूक हो सके। उसका मस्तिष्क विभिन्न विषयों को विभिन्न दृष्टिकोण से अवलोकन करने में सक्षम हो सके। इन सबको एक खेल के रूप में सहज रूप से करें, बोझ या पढ़ाई बना कर नहीं।

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बच्चों के सामने नकारात्मक बातें न करें

बड़ों की दुनिया बच्चों से अलग होती हैं। उनका मस्तिष्क कोरा होता है। लेकिन बड़ों के मस्तिष्क में अपने समाज, संबंधियों, दोस्तों आदि के प्रति कई तरह की धारणाएँ हो जाती है। बच्चों में किसी व्यक्ति, परिस्थिति या उसके स्वयं के विषय में कोई नकारात्मक धारणा नहीं बनने दें। उनके सामने किसी की बुराई करने या तुलना करने से बचें। बच्चों को सावधान करना अलग चीज है लेकिन उनमें डर या नकारात्मक बाते भरना अलग चीज है। उनमें यह क्षमता विकसित करें कि वह धीरे-धीरे स्वयं अच्छा और बुरा में अंतर करना सीख जाए।

बच्चों को ज़िम्मेदारी दें

बच्चों को उनकी उम्र के अनुरूप छोटी मोटी जिम्मेदारियाँ जरूर दें। उदाहरण के लिए पौधों में पानी डालना, चिड़ियों को दाना डालना, कोई समान उनकी जगह पर रखना, बाजार से दूध सब्जियाँ लाना आदि। उनके अच्छे कार्यों के लिए उन्हें कभी कभी प्रोत्साहन स्वरूप कोई इनाम भी दें। अगर वह सच बोले, मेहनत करें, अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से निभाए तो इसके लिए प्रोत्साहन मिलने से वह आगे भी ऐसा करेगा।

पाठ्यक्रम से इतर गतिविधियां

पाठ्यक्रम के अलावा कुछ अन्य रचनात्मक गतिविधियों के लिए भी उसे प्रोत्साहित करें। नाटक, नृत्य, गायन, चित्रकला, खेल, बागवानी आदि ऐसी गतिविधियाँ हो सकती हैं। विश्वास कीजिए इससे उसके पढ़ाई में बाधा नहीं आएगी, समय बर्बाद नहीं होगा बल्कि पढ़ी हुई चीजों को समझने और समय का सदुपयोग करने की उसे प्रेरणा मिलेगी।

बच्चों को केयर और शेयर करना सीखाएँ

आज कल लोगों के सामान्यतः एक या दो बच्चे होते हैं। एकल परिवार में उन्हें अधिक महत्त्व मिलता है। उनकी बातों और इच्छाओं को तुरंत पूरा किया जाता है। ऐसे में वे जिद्दी बन जाते हैं और अपनी बाते ही मनवाना चाहते हैं। उन्हें दूसरों के प्रति संवेदना और उनकी सहायता करना सिखाना चाहिए। अगर घर में कोई बीमार हो तो बच्चा उन्हें पानी और दवा दे सकता है। ऐसे ही अपनी चीजों को लेकर भी बहुत पोजेसिव होना सही नहीं होता।

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कौन दे संस्कार?

बच्चों की पहली पाठशाला तो घर ही होता है और पहली शिक्षिका माँ होती है। इसलिए सबसे पहली ज़िम्मेदारी तो परिवार की ही बनती है। बाहरी दुनिया से जुडने का उसे पहला अनुभव स्कूल से होता है। इसलिए स्कूल और शिक्षक इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।  चूंकि बच्चे ही तो भविष्य होते हैं। इसलिए अंततः एक समाज के रूप में यह हम सब की ज़िम्मेदारी हैं कि बच्चों में उचित संस्कार और आदतों का विकास हो।

बच्चों में उचित संस्कार न केवल बच्चों के स्वयं के लिए बल्कि, उनके माता-पिता, परिवार जन और समस्त समाज के लिए जरूरी है। संस्कार ही वह माध्यम है जिससे वह अपनी तमाम उपलब्धियों का लाभ ले सकता है। अपने बच्चों को संस्कार देकर कर हम देश में अपराध, अनाचार, भ्रष्टाचार और वृद्धाश्रम जैसी समस्याओं से बचा सकते हैं। निश्चय ही संस्कार ही सबसे मूल्यवान उपहार है जो हम अपने बच्चों को दे सकते हैं।          

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