दुनिया में कई बड़े बड़े वैज्ञानिक प्रयोग हुए हैं, वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं, बड़े-बड़े वैज्ञानिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं। लेकिन यह सब समान्यतः कोई सरकार या बड़ी बड़ी कंपनियाँ चलाती हैं। पर आज कहानी एक ऐसे प्रोजेक्ट की जहां एक छोटे से गाँव के लोगों ने अपने बल पर अपना एक कृतिम सूर्य बना लिया।

पृथ्वी के उत्तर और दक्षिण ध्रुव के पास के प्रदेश में कई ऐसे प्रदेश हैं जहां कई-कई दिनों से लेकर कई महीनों तक सूर्य नहीं दिखता है। जहां सूर्य आकाश में बीच में नहीं पड़ता वहाँ पहाड़ों की घाटियों में स्थित हिस्से एक लंबे समय तक धूप से वंचित रह जाते हैं। ऐसे प्रदेशों में कुछ स्थान पर आबादी भी है।
ऐसा ही एक गाँव है इटली में। गाँव का नाम है विगनेला। यह गाँव इटली में स्विट्जरलैंड सीमा के पास पहाड़ी के बीच एक गहरी घाटी के तल पर स्थित है। इस छोटे से गाँव की आबादी मात्र 200 के लगभग है। इस गांव में 11 नवंबर से 2 फरवरी के बीच लगभग ढाई महीने सूर्य की रोशनी बहुत कम पहुँचती है। ढाई महीने तक अंधेरा या कृतिम रोशनी में रहने से लोगों को स्वाभाविक रूप से बहुत परेशानी होती थी। लंबे समय तक सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाने की वजह से इस गांव में बीमारियां फैलने लगती थी। लोग रोशनी नहीं मिल पाने की वजह से नकारात्मक मानसिकता, नींद की कमी, मूड खराब रहने, अपराध बढ़ने आदि की समस्या से भी परेशान रहते थे।
ऐसा सदियों से होता रहा था। 2005 में वहाँ के लोगों ने इसके लिए एक स्थायी समाधान निकालने के लिए सोचा। इस कार्य में उन्हें प्रेरणा और सहयोग वहाँ के नए मेयर पियरफ्रेंकों मिडाली से मिल रहा था। उनके सहयोग से गाँव के लोगों ने गाँव के सामने के पहाड़ पर एक बहुत बड़ा शीशा लगाने की योजना बनाया।
इस योजना के लिए लोगों ने मेयर के सहयोग से आपस में एक बड़ा कोष इकट्ठा कर लिया। यह कोष भारतीय रुपया में लगभग एक करोड़ (100000 यूरो) के लगभग था।

इस पैसे से गाँव वालों ने नवंबर 2006 में पहाड़ पर 1100 मीटर की ऊंचाई पर 40 वर्ग मीटर का 1.1 टन भारी स्टील का शीट लगाया जिस पर दर्पण लगा था। दर्पण को ऐसे समायोजित किया गया कि जो थोड़ी सी सूर्य की रोशनी पहाड़ी पर आती थी शीशा उसे एकत्र कर गाँव के मध्य में स्थित चर्च तक पहुंचा सके। चर्च के पास के चौक पर शीशे का फोकस था। शीशे को कम्प्युटर से इस तरह समायोजित किया गया था कि वह सूर्य के गति के अनुसार घूमता रहता है। इससे गाँव के प्रत्येक क्षेत्र को एक दिन में करीब 6 घंटे प्रतिबिम्बित धूप मिलती है।
इटली के विगनेला गाँव के लोगों ने जो किया वह हालांकि पहला ऐसा कृतिम सूर्य नहीं है। ऐसा ही एक सूर्य चीन में भी है। लेकिन चीन में इसे बनाने में 1 लाख करोड़ रुपया लगा था जबकि विगनेला में केवल एक करोड़ रुपया लगा है। यह पूरी तरह लोगों ने आपसी सहयोग से बनाया है, सरकार का कोई सहयोग नहीं लिया। तकनीक भी बहुत साधारण हैं।
लेकिन विगनेला गाँव के लोगों के लिए यह आसान नहीं था। बीबीसी के रिपोर्ट के अनुसार मेयर मिडाली ने इसके चुनौतियों के बारे में बात करते हुए बताया था, ‘यह आसान नहीं था, हमे इसके लिए उचित सामग्री ढूंढनी थी, तकनीक सीखना था और विशेष रूप से पैसों का इंतजाम करना बड़ी चुनौती थी।‘ वह आगे कहते हैं ‘इस परियोजना के पीछे का विचार वैज्ञानिक आधार नहीं बल्कि मानवीय जरूरत है।’
हम भारतीय लोग इस मामले में भाग्यशाली हैं कि हमें प्रकृति ने अपने उपहार भरपूर मात्रा में दिए हैं। अपने कृतिम सूर्य के लिए दुनिया भर में चर्चित इटली के विगनेला गाँव ने हमें एक बार फिर से याद दिला दिया कि अगर मनुष्य चाहे तो बड़ी-से-बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है।
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