सरस्वती का हाथ अभय मुद्रा में क्यों नहीं होता?

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सरस्वती का हाथ अभय मुद्रा में क्यों नहीं होता?

प्रत्येक भारतीय देवी देवताओं का एक प्रतीक शास्त्र होता है। चार या अधिक हाथ इसकी एक मौलिक विशेषता है जो अन्य किसी धर्म में नहीं पाया जाता है। अधिकांश देवी-देवताओं के इन चार में से एक हाथ ऊपर की तरफ होता है, जिसे अभय मुद्रा कहते हैं, और एक नीचे की तरफ जिसे वरद मुद्रा कहते हैं। लेकिन देवी सरस्वती के हाथ इन दोनों मुद्रा में नहीं होते। क्या कारण है इसका? ज्ञान तो आत्मविश्वास लाकर व्यक्ति को अभय बनाता है, फिर ज्ञान की देवी के हाथ अभय मुद्रा में क्यों नहीं?

देवी सरस्वती के एक हाथ में माला होता है। माला साधना और एकाग्रता का प्रतीक है। दो हाथों में वीणा होती है जो कला का प्रतीक है। चौथे हाथ में पुस्तक होता है। पुस्तक वैसे ज्ञान का प्रतीक है जो दूसरे लोगों ने अपने अनुभव से प्राप्त किया है। अगर हम केवल अपने अनुभव से ज्ञान प्राप्त करेंगे तो जीवन बहुत छोटा पड़ जाएगा।

लेकिन अपने अवलोकन और अनुभव से प्राप्त ज्ञान भी आवश्यक है। इसलिए देवी सरस्वती को हमेशा प्राकृतिक वातावरण और सरोवर में दिखाया जाता है। हम अपने परिवेश का अवलोकन कर ही ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

इन विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सूचना में से हम सही या सत्य को पहचान सके। इसका प्रतीक है हंस।

ज्ञान का उपयोग अगर समाज को सुंदर और सुगंधित बनाने में तो तभी वह सार्थक होता है। कमल सौन्दर्य, सुंगध और विपरीत परिस्थितियों में भी अपना गुण नहीं छोड़ने का प्रतीक है। 

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श्वेत वस्त्र सादगी का प्रतीक है लेकिन मुकुट और गहने मानसिक और भौतिक जगत में संतुलन को दर्शाता है।

ज्ञान को स्त्री को रूप में क्यों दर्शाया गया है? स्त्री को सौन्दर्य और कोमल भावनाओं का प्रतीक माना गया है। हमारा ज्ञान अगर हम में इन गुणों का विकास नहीं कर पाता तो वह अविद्या कहलाता है जो अभिमान और एकाकीपन का कारण बनाता है।

ज्ञान मन और जीवन में शांति और स्थिरता लाती है, इसलिए सरस्वती हमेशा बैठी हुई दिखाई जाती है।

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