इश्क का गर सफीर हो जाता।
नाम फिर मुल्कगीर हो जाता।

मीरपुर, कैण्ट, कानपुर, यूपी
(वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत,
पंजाब नेशनल बैंक, मण्डल कार्यालय, कानपुर)
जाने कब का अमीर हो जाता।
बस ज़रा बे ज़मीर हो जाता।
बात मन की अगर सुनी होती,
कम न रहता कसीर हो जाता।
उस घड़ी बेचता जो ईमां को,
एक पल में वज़ीर हो जाता।
शब्द होते अगर मेरे बस में,
कब का तुलसी कबीर हो जाता।
बात हल्की अगर कही होती,
हर नज़र में हक़ीर हो जाता।
साथ रहता जो उसके तकवा तो,
आज रौशन ज़मीर हो जाता।
फिर रिहाई उसे नहीं मिलती,
ज़ुल्फ़ का जो असीर हो जाता।
चूमते भी गले लगाते भी,
गर निशाने का तीर हो जाता।
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