सफीर हो जाता

Share

इश्क का गर सफीर हो जाता।
नाम फिर मुल्कगीर हो जाता।

अब्दुल हमीद इदरीसी (हमीद कानपुरी)
मीरपुर, कैण्ट, कानपुर, यूपी
(वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत,
पंजाब नेशनल बैंक, मण्डल कार्यालय, कानपुर) 

जाने कब का अमीर हो जाता।
बस ज़रा बे ज़मीर हो जाता।

बात मन की अगर सुनी होती,
कम न रहता कसीर हो जाता।

उस घड़ी बेचता जो ईमां को,
एक पल में वज़ीर हो जाता।

शब्द होते अगर मेरे बस में,
कब का तुलसी कबीर हो जाता।

बात हल्की अगर कही होती,
हर नज़र में हक़ीर हो जाता।

साथ रहता जो उसके तकवा तो,
आज रौशन ज़मीर हो जाता।

फिर रिहाई उसे नहीं मिलती,
ज़ुल्फ़ का जो असीर हो जाता।

चूमते भी गले लगाते भी,
गर निशाने का तीर हो जाता।

****

Read Also:  मालिक से बात मत छुपाना (बंगाल की लोककथा)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top

Discover more from

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading