फटेहाल मालिक- फटेहाल जूता (चीनी लोककथा) 

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चीन में चांग ची नामक एक चीनी रईस रहता था। उस में एक बुरी आदत थी। वह हद दर्जे का कंजूस व्यापारी था। उसे अपने कपड़े व जूते बहुत प्रिय थे। जब भी उसके कपड़े फट जाते वह उस में पैबंद लगा दिया करता था। इस कारण उस के कपड़े में पैबंद पर पैबंद लगे हुए थे। यही हाल उस के जूतों का था।

ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
रतनगढ़, नीमच, मप्र

 उसकी पत्नी बहुत समझदार थी। वह चांग ची को समझाती, ”ज्यादा कंजूसी करना अच्छी बात नहीं है।” मगर, वह अपनी पत्नी की बात नहीं मानता था। इस कारण कोई भी नौकर उस के यहां लंबे समय तक टिक नहीं पाता था।

एक बार की बात है। वह व्यापार के सिलसिले में एक गली से गुजर रहा था। वहाँ एक नाली में एक जाली लगी हुई थी। उसे जाली का ध्यान नहीं रहा। उस ने जाली पर पैर रख दिया। जाली कमजोर थी। वह टूट गई।

चांग ची का पैर नाली में फंस गया। वह दर्द से चिल्ला उठा। उस की चिल्लाहट सुन कर गली में खेल रहे कई बच्चे दौड़ कर उस के पास आ गए। उन्होने चांग ची का पैर नाली की जाली से निकाल दिया।

चांग ची के पैर छिल गया था। साथ ही उस में कुछ चोट आई थी। उन का जूता पंजे के तले से बिलकुल उखड़ गया। वह पहनने लायक नहीं रहा था।

एक लड़के ने जूता उठा कर दूर फेंक दिया। इस पर चांग ची बोला, ”अरे! वह जूता बहुत कीमती है। उसे ले कर आओ।”

इस पर लड़के ने कहा, ”सेठजी! वह जूता बिल्कुल  फट चुका है। जगह-जगह पैबंद लगे है। वह बेकार हो गया है। अब वह ठीक भी नहीं हो सकता है।” मगर, चांग ची नहीं माना।

लड़कों ने जूता ला कर वापस सेठजी को दे दिया। फिर उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया।

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कुछ ही दिनों में चांग ची ठीक हो गया। वह अपना जूता ले कर मोची के पास पहुंचा। ‘इसे ठीक कर दो।’ मोची ने स्पष्ट मना ​कर दिया, ‘यह ठीक नहीं हो सकता है।’ मगर, चांग ची नहीं माना। उस ने मोची को बहुत सी बातें बताई। इसलिए मोची मान गया। उस ने आखरी पैबंद लगा कर जूता ठीक कर दिया।

उसे पहन कर वह उसी गली से गुजर रहा था, जिस गली की नाली में उस का पैर फंसा था। उसे देख कर वहाँ खेल रही एक लड़की बोली, ”अरे! देखो, वही फटेहाल मालिक और उस का फटेहाल जूता आ रहा है।”

यह सुन कर चांग ची चिढ़ गया, ”क्या कहा तूने?” वह चिढ़ कर बोला।

”फटेहाल मालिक और उस का फटेहाल जूता।”

यह सुन कर चांग ची को गुस्सा आ गया। वह उस लड़की के पीछे भागा। तब से सभी बच्चे उसे यह कह कर चिढ़ाने लगे।

”फटेहाल मालिक, फटेहाल जूता।”

धीरे-धीरे यह खबर पूरे शहर में फैल गई। तब उस की पत्नी ने कहा, ”आप के पास इतना पैसा है। वह किस काम आएगा? आप इस फटेहाल दशा में रहते हैं। यह अच्छी बात नहीं है।”

पत्नी की बात सुन कर चांग ची विचार में पड़ गया, ”​तुम सही कहती हो। सभी मुझे इसी आदत की वजह से चिढ़ाने लगे हैं। अब मुझे बदलना होगा, ”यह सोच कर चांग ची ने नए कपड़े सिलवा लिए। साथ ही अपने पुराने जूते दान में दे कर फटेहाल जूते से छुटकारा पाने का उपाय सोच लिया।

चांग ची ने शहर के एक भिखारी को अपने जूते दे दिए। वह भिखारी भी खुश था। ठण्ड के दिन में उस के पैर ठण्ड से बचे रहेंगे। इधर चांग ची को भी लगा कि उस के फटेहाल जूते किसी के काम आएंगे। 

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भिखारी ने जूते उठाए और सड़क पर आ गया। वह उन्हें पहनने लगा। उधर से एक सिपाही गुजर रहा था। उस ने भिखारी के हाथ में चांग ची के जूते देखें। उसे पकड़ कर थाने ले आया। 

”बोल! तूने चांग ची के जूते चुराए है।”

”नहीं साहब! मैं ने कोई जूते नहीं चुराए है,” भिखारी ने स्पष्ट मना कर दिया। मगर उस की बात मानने वाला कोई नहीं था। थानेदार का कहना था, ”सेठ चांग ची बहुत कंजूस आदमी है। उसे अपने फटेहाल जूते से बहुत प्रेम था। वह अपने जान से प्यारे जूते किसी को नहीं दे सकता है।” यह कह कर थानेदार ने चांग ची को बुला कर जूते वापस कर दिए।

       चांग ची ने जूते प्राप्त कर माथा पीट लिया। वह जूते से छुटकारा पाना चाहता था। मगर, जूते वापस उस के पास आ गए थे।

इस बार चांग ची ने जूते एक नदी में फेंक दिए। ताकि जूते बहते हुए बहुत दूर चले जाए और उसे वापस न मिल सकें। यह सोच कर वह घर आ कर आराम करने लगा।

उसी वक्त किसी ने दरवाजा खटखटाया। चांग ची ने दरवाजा खोला तो बाहर कुछ बच्चे खड़े थे।

”सेठजी! आप के बेशकीमती जूते लीजिए और हमें इनाम दीजिए।”

”क्या!” चांग ची चौंका।

”हाँ सेठजी, हम नदी में नहा रहे थे। ये हमें नदी में बहते हुए मिले। शायद किसी चोर ने चुरा कर नदी में फेंक दिए थे।”

यह सुन कर चांग ची को बड़ा गुस्सा आया। वह चिल्ला कर बच्चों के पीछे भागा, ”सालो! जूतें मैं ने ही नदी में फेंके थे।”

बच्चे इनाम के लालच में आए थे, सेठजी का यह रूप देख कर चिल्लाते हुए भाग गए ”फटेहाल मालिक और फटेहाल जूते।”

अब चांग ची घबरा गया था। उस ने सोचा कि जूते शहर से बाहर पहुंचा देना चाहिए। ताकि दोबारा जूते वापस न आ सकें। यह सोच कर वह शहर से बाहर जाने वाले रास्ते पर आ पहुंचा।

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वहाँ एक व्यक्ति शहर से बाहर जा रहा था। सेठजी ने उसे रोक कर जूते दिए, ”इन्हें ले जा कर शहर के बाहर फेंक देना।” फिर वह अपनी दुकान पर आ कर बैठ गया।

तभी एक सिपाही दौड़ा हुआ आया, ”सेठजी! आप को महाराज बुला रहे हैं। मेरे साथ चलिए।” सिपाही ने चहकते हुए कहा।

”भला महाराज मुझे क्यों बुलाएंगे?” चांग ची ने पूछा।

”आप के जूते ले कर एक चोर शहर से बाहर जा रहा था। वह पकड़ा गया। राजा ने आप को जूत वापस लेने के लिए बुलाया है।” यह सुन कर चांग ची ने माथा पीट लिया। वह जूते से छुटकारा पाना चाहता था, मगर हर बार जूते उसी के पास चले आते थे। यानी सेठ से ज्यादा उस के जूते मशहूर हो गए थे।

वह तुरंत राजा के पास गया, ”महाराज! यह व्यक्ति चोर नहीं है। इसे मैं ने ही जूते दिए थे ताकि यह इन जूतो को शहर के बाहर फेंक सकें,” कहते हुए चांग ची ने राजा को पूरी कहानी सुना दी। ”महाराज! मैं कैसे भी कर के इन जूतों से छुटकारा पाना चाहता हूं।” चांग ची ने राजा से प्रार्थना कीं।

”आज से तुम इस की चिंता छोड़ दो। हम इन जूतों को शाही संग्रहालय में रखवा देते हैं ताकि सभी इन जूतों को देख कर कंजूसी न करने की शिक्षा ग्रहण करते रहे।” यह कह कर राजा ने जूते संग्रहालय में रखवा दिए।

चांग ची को फटेहाल जूतों से छुटकारा मिल गया था। मगर, उसे फिर भी एक चिंता सताती रही कि जब भी कोई संग्राहलय में उस के फटेहाल जूते देखेगा, उसे याद करता रहेगा।

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