चिन्तन

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चिंतन बहुत जरूरी है, चाहे वह वैज्ञानिक चिंतन हो, आत्मचिंतन हो, सामाजिक चिंतन हो, परिवारिक चिंतन हो या राष्ट्र चिंतन हो। चिंतन हर क्षेत्र में जरूरी है। वैज्ञानिक चिंतन के कारण ही आज हमें मशीनी शक्ति और सुविधा प्राप्त है। लेकिन इस सुख-सुविधा का उपयोग, हम किस हद तक, कहां तक और कैसे करें इसमें भी चिंतन की आवश्यकता है।

अनीता मिश्रा
दिल्ली

ज्यादा सुख सुविधा हमें आलसी और स्थूल बना देती है। बिल्कुल सही कहा गया है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। अत्यधिक टेक्नोलॉजी के प्रयोग से लगता है जैसे हम मशीन के गुलाम बन गए हैं। खासकर बच्चों के दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। स्वाध्याय बहुत कम हो गया है। बच्चे अब अपने परिवार के सदस्यों से बहुत कम मिलते-जुलते और उनके साथ कम समय बिताते हैं। चिंतन क्षमता घटती जा रही है। इन पहलुओं पर हमें चिंतन करना चाहिए।

गूगल से ढूंढ कर बड़े-बड़े संदेश व्हाट्सएप और फेसबुक पर भेज तो देते हैं एक दूसरे को, लेकिन क्या उसे हम अपने आचरण में शत-प्रतिशत ला पाते हैं?

एक कहानी है कि एक गुरू जी कुछ चिड़ियों को पिंजरे में बंद करके और नित दिन उसको सिखाते थे  “शिकारी आएगा दाना डालेगा जाल बिछाएगा लोभ से उस में फंसना नहीं।” जब सभी चिड़ियों ने अच्छी तरह से इस वाक्य को रट लिया तो एक दिन गुरु जी ने सभी चिड़ियों को पिंजरे से आजाद कर दिया यह देखने के लिए केवल ये सभी रट लिए हैं कि व्यवहारिक ज्ञान में भी उपयोग करने का ज्ञान आया है? जब शाम तक एक भी चिड़िया वापस नहीं आई तो गुरुजी देखने जंगल में गए। देखकर दंग रह गए सभी चिड़िया वही वाक्य गा रही थी “शिकारी आएगा दाना डालेगा जाल बिछाएगा लोभ से उसमें फंसना नहीं लेकिन सभी जाल में फंसी हुई थी।”

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इसीलिए बहुत जरूरी है कि प्रतियोगिताओं की दौड़ में हम नैतिक और व्यवहारिक ज्ञान पर भी चिंतन करें। हम सब का यह कर्तव्य है कि अपने बच्चों को उचित माहौल दें।

थॉमस अल्वा एडिसन एक महान वैज्ञानिक थे जिन्होंने 1093 अविष्कार करके विश्व रिकॉर्ड बना दिया। लेकिन इनकी महानता के पीछे इनकी मां का बहुत बड़ा हाथ है। थॉमस अल्वा एडिसन का जन्म 11 फरवरी 1847 को अमेरिका में हुआ था। करीब 6-7 वर्ष की उम्र में उन्होने विद्यालय जाना आरंभ किया। पर अध्यापक ने उन्हें मंदबुद्धि कहकर स्कूल से निकाल दिया और उनके मां के नाम एक चिट्ठी लिखा कि आपका बच्चा पढ़ ही नहीं सकता। सोचिए सामान्यत:, मां इस परिस्थिति में अपना सर पीटने लगती है, अपने नसीब को कोसने लगती है लेकिन एडिसन की मां ने एडिसन को भी यह बात नहीं बताया।

उनकी माँ ने घर पर ही स्वयं अपने बेटे को पढ़ाया। वह अपने बेटे के हर प्रश्न का जवाब सोच-समझ कर इस तरह देतीं ताकि वह कुछ अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित हो। घर पर ही वैज्ञानिक माहौल तैयार किया। जीवन में परिश्रम और शिक्षा का महत्व माँ से ही एडिसन को पता चला।

एडिसन के मन में नए-नए चीजों की जानकारी और तर्क भरे प्रश्न पूछने की आदत थी। वह हमेशा जिज्ञासाओं से भरे रहते थे। इन्हीं सब के कारण लोग उन्हें बेवकूफ और मंदबुद्धि समझते थे। एक बार जब उन्होंने चिड़िया को उड़ते देखा तो उनके मन में प्रश्न आया कि जब चिड़िया उड़ सकती है तो हम इंसान क्यों नहीं। चिड़िया के हर व्यवहार का निरीक्षण किया कि चिड़िया ऐसा क्या करती है, क्या खाती है, जिससे वह उड़ पाती है। जब उन्होंने देखा कि चिड़िया कीड़े-मकोड़े खा रही है तो उनके मन में यह आया कि शायद चिड़िया इसी वजह से उड़ पाती है। ऐसा सोच कर वह  कीड़े-मकोड़े ले आए और उसे पीस करके अपनी नौकरानी की बेटी को पिला दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह उड़ तो ना सकी लेकिन मरते-मरते बची।

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इस बात के लिए उन्हें अपनी मां से बहुत मार खानी पड़ी। आज यदि सबसे ज्यादा वैज्ञानिक आविष्कार करने के लिए उनका नाम मशहूर है तो सबसे ज्यादा असफल वैज्ञानिक प्रयोग के लिए भी उनका नाम मशहूर है। एडिसन अपने प्रत्येक असफल प्रयोग से भविष्य में सफलता पाने की कड़ी को जोड़ते गए। उनका कहना था कि प्रत्येक असफलता के बाद एक और प्रयास करना चाहिए ना कि हार मान कर बैठ जाना चाहिए।

थॉमस अल्वा एडिसन बड़े-बड़े डिग्री नहीं ले पाए लेकिन अपने अथक परिश्रम और अध्ययन से बड़े-बड़े डिग्री धारी को अपने चरण में झुका दिए।

अपनी मां के मरने के बाद जब एडिशन ने संदूक खोला तो वही चिट्ठी देखा जो अध्यापक ने उन्हें दिया था कि अपनी मां को दे देना। चिट्ठी पढ़ते वक्त अपनी मां के आंखों में आंसू देख एडिसन ने जब पूछा था कि मां इसमें क्या लिखा है तो मां ने जवाब दिया था कि बेटा इसमें लिखा है कि आपका बेटा बहुत ही होशियार है। उसके पढ़ाने योग्य अध्यापक हमारे स्कूल में नहीं है इसीलिए आप अपने बेटे को घर पर ही पढाइए, कल से आप स्कूल नहीं जाओगे मैं घर पर ही आपको पढ़ाऊंगी।

उस वक्त एडिसन को पढ़ना नहीं आता था लेकिन अब उन्होने उस चिट्ठी को पढ़ा। वास्तव में उसमें जो लिखा था वह जानकर उनकी आंखों में आंसू और हृदय में मां के लिए गर्व हुआ। 12 वर्ष की आयु से ही उन्होंने अखबार बेच कर पैसा कमाना शुरू कर दिया था। काम के साथ-साथ अध्ययन और वैज्ञानिक प्रयोग करते रहे थे।

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बच्चों की अभिरुचि के अनुसार ही उसे प्रोत्साहित करना चाहिए ज्यादा दबाव से बच्चों में स्वतंत्र रचनात्मक क्षमता कम हो जाती है। बच्चों की क्षमता पर विचार और चिंतन करना बहुत जरूरी है।

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