मित्रों! खुश कौन नहीं रहना चाहता। खुशी के पीछे हम जीवन भर भागते ही रहते हैं, मृगतृष्णा की भाँति। लेकिन खुशी हमसे आँख मिचौली खेलती ही रहती है।

गुरूग्राम
वास्तव में खुशी की कोई एक विशेष परिभाषा नहीं है प्रत्येक व्यक्ति इसकी अपनी ही एक परिभाषा गढ़ रहा है। कोई कहता है धन में खुशी है तो कोई कैरियर की ऊंचाइयों को छूने में, कोई अच्छे स्वास्थ्य में तो कोई बच्चों की सफलता में। जिन व्यक्तियों के लक्ष्य तथा गंतव्य स्पष्ट होते हैं और वह निरंतर उन्हें पाने में प्रयत्नशील रहते हैं ऐसे व्यक्तियों में चिंता, तनाव तथा बेचैनी कम नज़र आती है और वह अक्सर खुश रहते है।
मित्रों से जुड़ाव, लगाव और अपनत्व हमें खुशियाँ देता है। जो व्यक्ति दूसरों के साथ आसानी से सामंजस्य बिठा लेता है यानी एडजस्ट कर लेता है वह स्वयं भी खुश रहता है और दूसरों को भी खुश रखता है। खुशी एक भावना है जो बाहर नहीं अपितु हमारे अंदर छिपी है। हाँ, उस खुशी के भाव को जगाने के लिए हम सबके अपने अपने मापदंड है जैसा कि मैंने ऊपर कहा। सबकी अपनी-अपनी एक परिभाषा है खुशी को लेकर और वे उसी मान्यता एवं विश्वास के साथ अपनी खुशी को तलाशने के लिए भाग-दौड़ करते रहते
हैं।
एक और बात याद रखें कि दूसरों को परेशान करके खुश होने वाले व्यक्ति की खुशी अधिक समय तक नहीं टिकी रहती। खुशी बहुत हद तक आपके दृष्टिकोण पर भी निर्भर करती है। जैसा हम अक्सर देखते है, छोटे बच्चे किसी भी वस्तु में खुशी ढूँढ लेते है और खिलखिलाते रहते हैं। उन्हें ना तो भविष्य की चिंता है और न तो भूत का। वे बीती बातों को भूल कर वर्तमान में जीते हैं। ऐसा ही दृष्टिकोण हमारा भी होना चाहिए। मेरे कहने का अभिप्राय है हम भविष्य के विषय में सोचे, योजनाएँ बनाये लेकिन चिंता कतई न करें।
अपने आप में संतुष्ट व्यक्ति ही सदा खुश रहता है। दूसरों से अपेक्षा रखना और उन अपेक्षाओं का पूरा न होना भी आपकी खुशी को छीन लेता है।
मित्रों! आप कैसे खुश रह सकते हैं इसके विषय में तो आपको स्वयं ही तय करना है। अंत में यही कहूंगी कि मनुष्य जीवन बार-बार नहीं मिलता इसलिए इसे खुशी-खुशी बिताएँ, स्वयं भी खुश रहें और अपने आसपास वालों को भी खुशियां बांटे।