सेवानिवृत्त कर्मचारी

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पं० व्रतराज दूबे ‘विकल’
शांति नगर, बेतिया, बिहार
 

मैं सेवानिवृत्त कर्मचारी, पहले दरबार लगाता था।

अब बना हुआ हूँ दरबारी।

मैं सेवानिवत कर्मचारी।।

पहले कार्यालय जाता था, अपनी कुछ धौंस जमाता था,

अब तो मन में ले टीस बड़ी मैं बना हुआ हूँ घरबारी। मैं… …

पहले मैं रोब जमाता था, मन माफिक भोजन पाता था,

अब तो भोजन के लिए मुझे करनी पड़ती ताबेदारी। मैं… …

घर में लड़के सब डाँट रहे, मेरा पेंशन भी बाँट रहे,

सब छीन झपट ले जाते है, मैं झेल रहा हूँ लाचारी। मैं… …

छुटी पद की जिम्मेवारी, जूटी घर की पहरेदारी,

बच्चों का बस्ता ढोता हूँ, जो बच्चों से भी है भारी। मैं… …

है मुझे किसी से बैर नहीं, फिर भी लगता है खैर नहीं

सहमा सहमा सहता रहता, घर में अब बहुओं की जारी। मैं… …

अब प्रेम शब्द सपना लगता, ना कोई है अपना लगता

सब दूर-दूर रहते मुझसे, सुनसान लगे दुनिया सारी। मैं… …

कैसा यह विकट बुढ़ापा है, नित पड़ता रहता छापा है।

देते जबाब ना बनता है, मैंने अपनी हिम्मत हारी।

मैं… …

पेंशन हर माह उठाता हूँ, रख पास न कुछ भी पाता हूँ

सबका हिसाब रखते बेटे, लूटा करते बारी-बारी।

मैं… …

रो-रो कर घर में जीता हूँ, हँस-हँस कर आँसू पीता हूँ,

इज्जत कैसे बच पायेगी, है इसकी ही चिन्ता भारी । मैं… …

घुट-घुट कर घर में मरता हूँ, बेटे-बहुओ से डरता हूँ

कोई उपाय ना दिखता है, होती रहती मारा-मारी।

मैं… …

है चैन मुझे दिनरात नहीं, कह पाता अपनी बात नहीं

दुष्कर लगता जीना मेरा, चल गई छोड पत्नी प्यारी। मैं… …

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है एक भरोसा भगवन का, मालिक हैं वे ही जीवन का

मैं विकल बना अब घूम रहा, रक्षक हैं “गोवर्धनधारी” । मैं… …

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