ऑनलाइन दादीमाँ

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हुए बब्लू की नजरें अनायास ही दादाजी की तरफ उठ गई। वे पास ही एक कुर्सी पर बैठे हुए जाने किन ख्यालों में खोए हुए थे। उनकी उम्र 75 साल से कम न थी। उनके झुर्रियों से भरे चेहरे पर उदासी और आँखों में एक विरानी-सी दिख रही थी।

लेखक—मनोज कुमार
वाल्मीकि नगर, प चम्पारण, बिहार
 

       बब्लू को ध्यान आया कि दादाजी को गाँव  से यहाँ शहर आये हुए छः महीने से ज्यादा बीत गये थे। उनकी तबीयत खराब थी। इलाज के लिए पापा उन्हें बिहार के अपने पुश्तैनी गाँव से शहर लेकर आ गये थे। उन्हें दिल की कोई बीमारी थी। यहाँ बड़े हास्पीटल में उनका इलाज हुआ और वे डेढ़-दो महीने में ठीक भी हो गये।

  लेकिन जब उनके वापस गाँव जाने का प्रोग्राम बना तो अचानक ही कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण पूरे देश में लॉकडाउन हो गया। दादाजी को यहीं दिल्ली शहर में रूकना पड़ गया।

  वैसे तो मम्मी-पापा शुरू से ही चाहते थे कि दादा-दादी दोनों ही गाँव से यहाँ आकर शहर में रहें। लेकिन उन्होंने अपनी सारी जिन्दगी गाँव में गुजारी थी। शहर की चिल्ल-पों में उनका मन नहीं रमता था। यही कारण था कि जब दादा जी इलाज के लिए गाँव से शहर आ रहे थे तो दादी ने यह कहकर आने से मना कर दिया था कि एक तो घुटनों के दर्द के कारण उन्हें यात्रा में बड़ी परेशानी होती थी और दूसरे वे गाँव की अमन-चैन वाली जिन्दगी से दूर नहीं जाना चाहती थी। इसलिए यही निर्णय हुआ था कि दादा जी अकेले दिल्ली जाकर अपना इलाज करवाकर फिर से वापस गाँव आ जायेंगे।

  मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था! अब भला किसे पता था कि अचानक से ये कोरोना वायरस आकर सारी दुनिया में तांडव करने लगेगा और पूरे देश में कभी न देखा न   सुना जाने वाला लॉकडाउन जैसी विकटतम स्थिति पैदा हो जायेगी।

बब्लू की मोबाइल स्क्रीन पर तेजी से हरकत करती अंगुलियाँ ठिठक-सी गई। उसने दादा जी को देखा और मुस्करा कर कहा- ‘‘क्यूँ दादाजी, आज आपको फिर से गाँव की याद आ रही है?’’

दादा जी ने जैसे कुछ सुना ही नहीं। वे पूर्ववत अपनी ख्यालों में खोये रहे।

बब्लू ने इस बार जोर देकर कहा- ‘‘दादाजी, आप कहाँ खोए हुए हो?’’

दादाजी की तन्द्रा टूटी। उन्होंने चौंक कर बब्लू  की तरफ देखा। फिर धीरे-से पूछा- ‘क्यों बेटा, तुमने कुछ कहा क्या……?’’

‘‘दादाजी’’ बब्लू ने कहा- ‘‘मैं पूछ रहा था कि आज आपको फिर गाँव की बहुत याद आ रही है क्या?’’

दादाजी थोड़ी देर को कुछ कह नहीं सके। फिर उन्होंने बात बदलकर पूछा- ‘‘अच्छा बब्लू, पापा ऑफिस से आ गये क्या?’’

‘‘कैसी बात करते हो दादा जी?’’ बब्लू ने कहा-‘‘पापा इतनी जल्दी थोड़ी न ऑफिस से आयेंगे। अभी तो सिर्फ पाँच बजे हैं। वे छः बजे से पहले कभी आ पाते हैं क्या?’’

‘‘ओह।’’ दादाजी के मुँह से निकला।

‘‘मैं जानता हूँ आप उनसे क्या पूछने वाले हो?’’ बब्लू ने मुस्कराते हुए उनसे पूछा।

‘‘अच्छा!’’ दादाजी ने आश्चर्य से कहा- ‘‘यह तुम्हें कैसे मालूम?’’

‘‘मुझे सब पता है।’’ बब्लू ने चहक कर कहा-‘‘आप पापा से यही न पूछने वाले हो कि गाँव कब तक जा सकेंगे?’’

‘‘हाँ बेटा।’’ दादाजी ने हसरत भरे स्वर में कहा ‘‘जब यहाँ आया था तो यह नहीं सोचा था कि देश में ऐसे हालात हो जायेंगे कि लोगों का एक जगह से दूसरी जगह आना-जाना ही बन्द हो जायेगा।’’

‘‘मैं तो कहता हूँ दादाजी कि अब गाँव जाने का प्रोग्राम कैंसिल ही कर दीजिए। कितना अच्छा हो कि आप हमेशा के लिए यहीं रह जाइये।’’ कहते-कहते बब्लू की अंगुलियाँ मोबाइल स्क्रीन पर फिर से हरकत करने लगी। कदाचित वह कोई रेसिंग गेम खेल रहा था। पापा जब भी घर पर नहीं होते थे तो वह चुपके से मम्मी का मोबाइल लेकर उसमें गेम खेलने लगता था।

‘‘मैं यहाँ रह जाऊँगा तो वहाँ गाँव के खेत-खलिहान कौन देखेगा।’’ दादा जी ने हसरत भरे स्वर में कहा-‘‘और फिर तुम्हारी दादी भी तो वहाँ अकेली है…!’’

‘‘ओह तो अब समझा…..’’ बब्लू ने कुछ शरारत भरे स्वर में कहा-‘‘तो यूं कहिये ना कि आपको असल में दादी माँ की याद आ रही है!’’

‘‘तुम्हारी दादी की भी तो तबीयत ठीक नहीं रहती बेटा।’’ दादा जी ने कहा-‘‘उसके घुटनों में दर्द रहता है। मैं तो उससे बोला था कि चलो तुम भी अपने घुटनों का इलाज शहर में करा लेना। लेकिन वह आने को तैयार ही नहीं हुई। कहने लगी कि यहीं गांव के वैद्य के इलाज से ही घुटनों को आराम मिल जाता है तो फिर शहर क्या जाना। तुम्हीं वहां जाकर अपना इलाज कराओ।’’

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बबलु ने कहा-‘‘अब देख लीजिये। आप का इलाज हो गया। फिर भी लाकडाउन के कारण आप अब गांव नहीं जा सकते। कोरोना का खतरा अभी पुरी तरह खत्म नहीं हुआ है। बल्कि यह पहले से कहीं ज्यादा तेजी से अब अपने पांव पसारने लगा है।’’

‘‘इसी बात की तो मुझे फिक्र लगी रहती है बेटा।’’ दादाजी के स्वर में चिन्ता झलक रही थी-‘‘कि तुम्हारी दादी गांव पर अकेली कैसे रह रही होगी। वहां उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। सुना है कि कोरोना अब गांवों में भी पहुंच चुका है। न जाने यह कब तक सभी लोगों को परेशान करता रहेगा?’’

‘‘आपको पता है दादाजी’’ बबलु ने कहा-‘‘हमारे स्कूल तो अभी कोरोना वायरस के कारण बंद पड़े हैं। लेकिन आनलाइन क्लासेज चल रहे हैं। वहां टीचर्स ने हमें बताया है कि हर सौ साल में एक बार ऐसी बड़ी महामारी आती ही है।’’

‘‘सही बात है बेटा।’’ दादाजी ने कहा “हमने भी अपने गांव में एक बार प्लेग जैसी महामारी को फैलते देखा था। जानकारी और सही इलाज के

‘‘मैं यहाँ रह जाऊँगा तो वहाँ गाँव के खेत-खलिहान कौन देखेगा।’’ दादा जी ने हसरत भरे स्वर में कहा- ‘‘और फिर तुम्हारी दादी भी तो वहाँ अकेली है…!’’

‘‘ओह तो अब समझा…..’’ बब्लू ने कुछ शरारत भरे स्वर में कहा- ‘‘तो यूँ कहिये ना कि आपको असल में दादी माँ की याद आ रही है!’’

‘‘तुम्हारी दादी की भी तो तबीयत ठीक नहीं रहती बेटा।’’ दादा जी ने कहा- ‘‘उसके घुटनों में दर्द रहता है। मैं तो उससे बोला था कि चलो तुम भी अपने घुटनों का इलाज शहर में करा लेना। लेकिन वह आने को तैयार ही नहीं हुई। कहने लगी कि यहीं गाँव के वैद्य के इलाज से ही घुटनों को आराम मिल जाता है तो फिर शहर क्या जाना। तुम्हीं वहाँ जाकर अपना इलाज कराओ।’’

बब्लू ने कहा- ‘‘अब देख लीजिये। आप का इलाज हो गया। फिर भी लॉकडाउन के कारण आप अब गाँव नहीं जा सकते। कोरोना का खतरा अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। बल्कि यह पहले से कहीं ज्यादा तेजी से अब अपने पाँव पसारने लगा है।’’

‘‘इसी बात की तो मुझे फिक्र लगी रहती है बेटा।’’ दादाजी के स्वर में चिन्ता झलक रही थी-‘‘कि तुम्हारी दादी गाँव पर अकेली कैसे रह रही होगी। वहाँ उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। सुना है कि कोरोना अब गाँवों में भी पहुँच चुका है। न जाने यह कब तक सभी लोगों को परेशान करता रहेगा?’’

‘‘आपको पता है दादाजी’’ बब्लू ने कहा- ‘‘हमारे स्कूल तो अभी कोरोना वायरस के कारण बंद पड़े हैं। लेकिन ऑनलाइन क्लासेज चल रहे हैं। वहाँ टीचर्स ने हमें बताया है कि हर सौ साल में एक बार ऐसी बड़ी महामारी आती ही है।’’

‘‘सही बात है बेटा।’’ दादाजी ने कहा “हमने भी अपने गाँव में एक बार प्लेग जैसी महामारी को फैलते देखा था। जानकारी और सही इलाज के

अभाव में बहुत लोग असमय ही मारे गये थे।’’

बब्लू और दादाजी की बातें अभी चल ही रही थी कि कमरे में मम्मी ने प्रवेश किया। उनके हाथ में चाय की प्लेट थी। उन्होंने उसे टेबल पर रखते हुए कहा- ‘‘लीजिये पापाजी। आपकी काढ़े वाली चाय। आपने विटामीन की गोली ली या नहीं?’’

‘‘मैंने गोली ले ली है।’’ दादाजी ने कहा- ‘‘गोपाल तो ऑफिस से आते ही मुझसे पहला सवाल यही करता है कि मैंने दवायें ली है या नहीं।’’

‘‘उन्होंने यह भी कहा है कि आपको बाहर जाकर अब टहलने की जरूरत नहीं है।’’ मम्मी बोली-’’घर में ही रहना है या फिर छत पर टहल लेना है। इस महल्ले में ही धीरे-धीरे अब कई पॉजिटिव केस निकलने लगे हैं।’’

दादाजी चाय का एक घूँट लेकर बोले- ‘‘हमने पूरी जिन्दगी में आज तक ऐसा कभी नहीं देखा कि इतने समय तक एक आदमी को दूसरे आदमी से बच कर रहना पड़ा हो। ट्रेनें चलनी बंद हो गई हों। सारी गाड़ियाँ चलनी बंद हो गई हों । लोगों को पैदल एक राज्य से दूसरे राज्य तक चलना पड़ा हो।’’

‘‘गाड़ियाँ तो अब धीरे-धीरे चलने लगी है।’’ मम्मी बोली- ‘‘लेकिन उनमें यात्रा करना बिल्कुल भी उचित नहीं है। खासकर बुजूर्गों को तो और भी परहेज करना चाहिए।’’

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‘‘लेकिन मम्मी’’ बब्लू ने कहा- ‘‘दादाजी दादी माँ के लिए चिन्तित हो रहे हैं।’’

‘‘दादाजी की चिन्ता बिलकुल जायज है।’’ मम्मी बोली- ‘‘आखिर वे इतनी दूर जो हैं। लेकिन किया भी क्या जा सकता है। जो भी जहाँ पर है ऐसे माहौल में वहीं पर सुरक्षित और थोड़ा परहेज से रहे तो भलाई हैं। दादीजी साथ में आ जाती तो ज्यादा अच्छा रहता परंतु वे नहीं आ सकी। अब दादाजी को ऐसे माहौल में यात्रा करने की इजाजत तो है नहीं। इसलिए जब तक माहौल सामान्य नहीं हो जाता तब तक इंतजार ही करना पड़ेगा दादाजी के माथे पर चिन्ता की लकीरें और गहरी हो गई।

 बब्लू के हाथों में अपना मोबाइल देखकर मम्मी नाराज होकर बोली- ‘‘और तुम ये बार-बार मेरा मोबाइल क्यों उठा लाते हो? मैंने मना किया था ना इसमें ज्यादा गेम वगैरह नहीं खेलना है।’’

‘‘नहीं मम्मी वो……’’बब्लू सफाई देता हुआ बोला-‘‘वो मेरी ऑनलाइन क्लासेज थी ना…….!’’

‘‘ऑनलाइन क्लासेज तो दिन को चलती है। फिर इस समय इसका क्या काम?’’ मम्मी गुस्साई।

‘‘अरे मम्मी …..वो मैं ….’’बब्लू हड़बड़ाकर बोला-‘‘वो मैं इस समय अपने एक फ्रेंड के साथ क्लास में पढ़ाये गये टॉपिक पर ऑनलाइन डिस्कसन कर रहा था। वो क्या है कि मैं ना तो अपने किसी दोस्त को घर पर बुला सकता हूँ और ना ही खुद किसी के यहाँ जा सकता हूँ तो….इसलिए….।’’

‘‘ठीक है, ठीक है। ज्यादा बहाने न बनाओ।’’ मम्मी बोली- ‘‘मैं सब समझती हूँ तुम क्या कर रहे थे। समय ही ऐसा आ गया है कि अब कुछ कहना ही बेकार है। एक समय था जब स्कूल वाले खुद ही बच्चों के हाथों में मोबाइल देने को मना करते थे और आज पढ़ाई के नाम पर बच्चे मोबाइल लेकर दिन-दिन भर उसमें गेम खेलते रहते हैं।’’

‘‘नहीं मम्मी, मैं सच कह रहा हूँ।’’ बब्लू ने मोबाइल पर अपना शैक्षिक एप्लीकेशन ओपन कर दिखाया।

तबतक दादाजी अपनी चाय खत्म कर चुके थे। मम्मी खाली कप-प्लेट लेकर कमरे से किचन की तरफ चली गईं।

‘‘दादाजी’’ मम्मी के जाने के बाद बब्लू ने दादाजी से कहा- ‘‘आपको एक मजे की बात बताऊँ।’’

‘‘क्या?’’ दादाजी बोले- ‘‘बताओ।’’

‘‘वह क्या है न दादाजी…।’’ बब्लू थोड़ा धीमें स्वर में बोला- ‘‘इस कोरोना के कारण हमारे जब से स्कूल बंद हुए हैं ना, तबसे हमारे सारे दोस्त बड़े खुश हैं। परीक्षायें भी नहीं देनी पड़ी और अगली कक्षा में पहुँच भी गए। है न मजे की बात!’’

‘‘नहीं बेटा।’’ दादाजी बोले- ‘‘यह तुम कैसी बाते कर रहे हो। ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है। तुम्हें पता नहीं कि इससे तुम्हारी पढ़ाई का कितना नुकसान हुआ है और हो रहा है।’’

‘‘लेकिन दादाजी, अब तों हमें मोबाइल पर ही स्कूल से पढ़ाया जा रहा है।’’ बब्लू बोला।

‘‘वो सब मन भरमाने की बाते हैं बेटा।’’ दादाजी ने आगे कहा- ‘‘जो पढ़ाई सही मायने में स्कूल में हो सकती है वह भला इस छोटे से मोबाइल में कैसे हो सकती है। और तुम्हारी मम्मी ठीक ही तो

कहती है। क्या तुम अभी थोड़ी देर पहले मेरे सामने ही रेस वाला गेम मोबाइल में नहीं खेल रहे थे?’’

‘‘वो तो दादाजी’’ बब्लू थोड़ा शर्माते हुए बोला- ‘‘एक आप ही तो है जो मुझे ज्यादा डाँटते नहीं इसीलिए मैंने मन बहलाने के लिए थोड़ा-सा खेल लिया।’’

‘‘हमारे समय में ये सब चीजें नहीं हुआ करती थी।’’ दादाजी अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बोले- ‘‘तब हम स्कूल जाते थे। दोस्तों के साथ कबड्डी, गुल्ली-डंडा आदि खेल खेला करते थे। इन खेलों से शरीर में फुर्ती भी आती थी और सेहत भी बनती थी। मोबाइल में खेलने से सेहत तो नहीं बन सकती और ना ही शरीर में वो ताकत आ सकती है।’’

‘‘लेकिन दादाजी….’’ बब्लू बोला- ‘‘अब जब तक ये कोरोना है हम में से कोई भी बाहर नहीं निकल सकता। और पता है आजकल मोबाइल पर सारे काम हो जाते हैं। खेलने के साथ-साथ पढ़ना, दोस्तों के साथ बातचीत, शॉपिंग आदि सबकुछ।’’

‘‘इसे ही समय का बदलाव कहते हैं।’’ दादाजी ने कहा- ‘‘समय बहुत तेजी के साथ बदल रहा है।’’

‘‘हाँ दादाजी’’ बब्लू ने आगे कहा- ‘‘और हमें और आपको भी समय के इस बदलाव के साथ बदल जाना चाहिए। इसी बदलाव में आगे के रास्ते छिपे हुए हैं।’’

‘‘अब हमारे बदलने के लिए भला क्या है बेटा?’’ दादाजी बोले- ‘‘हमें तो अब अपने बचे हुए दिन किसी तरह बिता लेने हैं।’’

‘‘नहीं दादाजी। ऐसी बात नहीं है।’’ बब्लू बोला-‘‘हमारी स्कूल की प्रिंसिपल मैम कहती हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। आदमी चाहे तो हर उम्र में कुछ न कुछ सीख सकता है।’’

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‘‘बात तो सही है।’’ दादाजी बोले- ‘‘लेकिन हम भला अब क्या सीख सकते हैं?’’

‘‘क्यों?’’ बब्लू ने कहा- ‘‘आपको दादीजी की बहुत याद आती है। आप यहाँ शहर में हो और दादी माँ वहाँ गाँव में। आपको उनको देखने का बहुत मन करता होगा न?’’

दादाजी ने स्वीकार करने के अंदाज में अपना सिर हिलाया।

‘‘तो मैं आपकी दादी माँ के साथ ऑनलाइन मुलाकात करवा सकता हूँ।’’ बब्लू ने चहक कर कहा।

‘‘वो भला कैसे?’’ दादाजी ने आश्चर्य से कहा।

इस मोबाइल से।’’ बब्लू ने अपने हाथ में थामे हुए स्मार्टफोन की तरफ इशारा किया।

दादाजी चौंक कर बोले- ‘‘मगर वहाँ दादी के पास तो ऐसा मोबाइल भी नहीं है। एक पुराना बटन वाला फोन है उसे तो वो ढंग से चला नहीं पाती। कोई लगा कर देता है तो बात हो पाती है।’’

‘‘मेरे पास उसका भी उपाय है।’’ बब्लू बोला- ‘‘गाँव में चाचाजी का लड़का पिंटु जो पटना में हॉस्टल में रहकर पढ़ता है, स्कूल बंद होने के कारण अभी गाँव में ही हैं। मेरी उससे कल ही बात हुई थी। उसके पास भी ऐसा ही मोबाइल है। हम अभी आपकी दादीमाँ से ऑनलाइन  मुलाकात करवा सकते हैं।’’

उसकी बातों को सुनकर दादाजी की आँखों में चमक-सी आ गई।

तबतक बब्लू मोबाइल पर विडियो कॉलिंग करने लगा था। थोड़ी ही देर में सम्पर्क हो गया और स्क्रीन पर पिंटु की तस्वीर उभर आई।

बब्लू ने उसे दादी माँ के पास जाने के लिए कहा।

थोड़ी देर में मोबाइल स्क्रीन पर दादी माँ का चेहरा दिखाई दे रहा था।

‘‘ये देखिये दादाजी।’’ बब्लू ने मोबाइल दादाजी के हाथों में थमाते हुए कहा- ‘‘दादी माँ ऑनलाइन हैं। अब जी भरके आप बाते कीजिए।’’

दादाजी ने झिझकते हुए मोबाइल को थामा।

बब्लू हँस कर बोला- ‘‘दादी माँ भी आपको देख रही हैं। आप कुछ बोलिये तो सही।’’

दादाजी ने कहा- ‘‘गोपाल की माँ, का तू हमके देख पावत हो?’’

दादी माँ बोली- ‘‘हाँऽ देखाई तो देत हो। ई पिंटुआ बोलत रहा कि मोबाइलवा मा दादाजी आएल हैं, बात करी लिहो।’’

दादाजी ने पूछा- ‘‘और कइसन हो? तबीयत तो ठीक रहो हय ना?’’

‘‘हाँऽ सब ठीक हो। एने सभे थरिया करछुल पिटलकै। हर एतबार के मेहरारू सब करोना माई के पूजा करै छय कि सब दुनिया जवार के माफ करी दिहो।’’ दादी माँ ने अपने गाँव के लहजे में बताया कि वहाँ सभी ने थाली पीटे थे और अब रविवार को गाँव की औरतें करोना माई की पूजा करती है।

‘‘सब एकदम बुड़बक वला बात हय।’’ दादाजी हँस पड़े और दादी को लगे समझाने- ‘‘ई करोना कवनो माय वाय नय हय। इ एगो वायरस हय वायरस। मने बीमारी फइलावे वाला एगो कीटानु। एकर पूजा उजा करे के कवनो जरूरत नय हय।’’

‘‘अब हमरा की पता?’’ दादी माँ तनिक झेंपती हुई बोली- ‘‘हियां मेहरारू सभे जे कह हय से हम बोल देलियो।’’

‘‘सही बात में बिस्वास करे के हय।’’ दादा जी समझाते हुए बोले- “पूजा करे से आ थरिया पीटे से कुछो नय होखे वाला हय। ई एक आदमी से दूसर आदमी में फइले वाला वायरस हय। एह से बाहर केन्हूं आय-जाय के जरूरत तनको नय हय। एही मारे त हमरा हियां से लोग नय आबे दे रहले हय। कहीं जाये के जादे जरूरी होय त मुँह  पे मास्क लगा के जाये के हय। आ साबुन से हरदम हाथ धोते रहे के है। हमर बिल्कुल चिन्ता मत करिहो। अपना ध्यान रखिहो…।’’

दादी माँ हाँ-में-हाँ मिलाती रही।

  दादाजी आज बहुत दिनों के बाद काफी खुश दिखाई दे रहे थे। उनकी आँखों में एक चमक और झुर्रियों से भरे चेहरे पर उत्साह की झलक दिखाई दे रही थी।

  शाम को बब्लू के पापा गोपाल जब ऑफिस से घर लौटे तो दादाजी को खुश देखकर आश्चर्य में पड़ गये। हमेशा वे उन्हें उदास ही देखा करते थे। मगर आज बात कुछ और दिख रही थी। बब्लू ने उन्हें दादाजी की खुशी का राज बताते हुए कहा- ‘‘आज दादाजी की मुलाकात दादी माँ से हुई थी। ऑनलाइन विडियो कॉलिंग से।’’

‘‘चलो।’’ सारी बातें सुनकर पापाजी ने मम्मी से कहा- ‘‘नये जमाने के इन बच्चों ने आज अपने दादाजी के लिए कोई तो एक ढंग का काम करके दिखाया।’’

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