आज मैं आपको अपनी टैरेस गार्डन प्रारंभ करने की दास्ताँ सुनाने जा रहा हूँ। बात उस समय की है जब मैं अपनी लखनऊ पोस्टिंग के दौरान छुट्टी में अपने घर महू आ रहा था। रास्ते में पड़ने वाले देवास शहर जहाँ की फूल गोभी बहुत बड़े आकार के साथ ही बहुत सफेद होने के कारण अत्यंत लोकप्रिय है, के समीप ही एक खेत में पूरे शहर की गंदगी को निकालने वाले सीवर लाईन से सिंचाई हो रही थी। वहाँ बहता हुआ काले रंग का मलबा देख कर मन बहुत खिन्न हो गया। इस गंदगी में उपजी सब्जियां हमारे शरीर को कुछ तो प्रभावित करती ही होंगी। तो क्या हम स्वयं अपने परिवार के लिए ऑरगैनिक और साफ सुथरी सब्जियां नहीं उगा सकते हैं?

इस विषय पर जब सोचना शुरू किया तो लगा कि न तो हमारे पास जमीन है और न ही खेती का अनुभव और जानकारी। हमारे घर में ग्राउंड फ्लोर पर जो खाली जगह है वहाँ तो गाड़ियां खड़ी होती हैं। हमारी पिछली सारी पीढ़ियों में न तो किसी के पास कृषि भूमि थी और न ही किसी ने खेती की थी। सो मित्रों, ऐसे ही उधेड़बुन में समय गुजरता गया और मैं बैंक से रिटायर हो कर अपने घर महू आ गया। परंतु मन मस्तिष्क में कहीं न कहीं घर में टैरेस गार्डन बनाने का कीड़ा लगातार पनप ही रहा था.
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना वाली कहावत चरितार्थ हुई। कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा। जहाँ सब्जियों की कमी होने लगी वहीं समय इतना मिलने लगा कि काटे न कटे। तो ऐसे में हिम्मत जुटा कर, प्रभु का नाम लेकर हमने टैरेस गार्डन का शुभारंभ कर दिया। चूंकि हमें छत पर गार्डनिंग करनी थी इसलिए मिट्टी के स्थान पर कोकोपिट, वर्मी कम्पोस्ट और गोबर की खाद का मिश्रण उपयोग में लाने और जो पुराने गमले थे उनके अलावा ग्रो बैग्स को इस्तेमाल किया ताकि छत पर ज्यादा वजन न पड़े।
बीजों और पौधों के लिए स्थानीय बाज़ार में बहुत भटकने के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई कि अगर सरकारी नर्सरी से खरीदी करेंगे तो बेहतर होगा क्योंकि जो फूलों के पौधे निजी नर्सरी में 60-70 रूपये के मिल रहे थे वो सरकारी नर्सरी में 12-15 के मिल रहे थे। इसी तरह फलों के पौधे प्राईवेट नर्सरी में 180 के और सरकारी नर्सरी में 25-50 के थे। सब्जियों में तो और भी ज्यादा अंतर था। निजी नर्सरी में दस रूपये का एक पौधा और सरकारी में एक रूपये का। ऐसे ही ऑनलाइन सर्च करते हुए आंध्र प्रदेश की एक नर्सरी Santhi Plant’s का पता चला जहाँ हर किस्म के पौधे 20-25 रूपये तक उपलब्ध होते हैं।
धीरे धीरे हमने अपनी बगिया की शुरुआत की और गुगल बाबा और यूट्यूब काकी से विचार विमर्श करते हुए और उनके बताए रास्ते पर चलते हुए आज हम इस स्थिति में आ गए हैं कि हमारे टैरेस गार्डन में लगभग 58 किस्म के फल और सब्जियों के पौधे हैं। करीब 23 प्रकार के फूलों के पौधे है। हमारे शहर और आसपास के क्षेत्र में इतनी वैरायटी वाला टैरेस गार्डन किसी के भी पास नहीं है। लगभग रोज ही कोई न कोई इसे देखने के लिए भी आता है। अभी चार दिन पहले दैनिक भास्कर के रिपोर्टर ने भी लगभग पौने दो घंटे तक इसका निरीक्षण करते हुए पूरी जानकारी ली और फोटो भी खींचे।
कहते हैं कि आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। ये कहावत भी हमारे मामले में फिट बैठती है। पिछले साल जनवरी के अंतिम सप्ताह की बात है, हमने अपने घर में पहली मंजिल पर अपनी बालकनी से जुड़ा हुआ लगभग पांच सौ वर्ग फीट का एक टैरेस बनवाया। चूंकि उसके बनवाने के पीछे हमारा मंतव्य पहली मंजिल पर भी एक गार्डन बनाना था, हालांकि हमारे घर में ग्राउंड और सैकेंड फ्लोर पर पहले से ही गार्डनिंग हो रही थी। तो टैरेस बनते ही हमने उसके लिए बड़े गमलों/ग्रो बैग्स की और ऑनलाइन प्लांट्स व सीड्स की खरीदी शुरू कर दी। अब बारी थी कोकोपिट और वर्मीकम्पोस्ट लाने की क्योंकि टैरेस पर मिट्टी का उपयोग करके हम वजन बढ़ाना नहीं चाहते थे।
अचानक एक दिन हमें किसी काम से अपने दूध वाले जगदीश भैय्या के घर जाना पड़ा तो जब तक वो बाहर आते हम टहलते हुए उनके गाय भैंस बांधने के कोठे की ओर चले गए, वहाँ हमारी नजर नीचे जमीन पर पड़ी तो देखा कि वहाँ पशुओं के चलने फिरने के कारण मिट्टी धूल में बदल गयी थी और उसमें गौमूत्र, गोबर और भूसा मिला हुआ था। हमने तब तक वहाँ आ चुके जगदीश भैय्या से अनुरोध किया और चार बोरी में वो मिश्रण भर के गाड़ी में रख कर घर ले आए। आप यकीन मानिए वो इतना हल्का मिश्रण था कि वो एक एक बोरी एक हाथ से उठ रही थी। उसे लाकर हमने गमलों में भरा और पौधे लगाना शुरू कर दिया।
मित्रों उसके जो परिणाम हमें मिले थे उसका कोई मुकाबला ही नहीं है। उस मिश्रण में एक तरह से पूरी खाद ही थी सो शक्कर जैसे खरबूजे और 16 इंच लंबी ककड़ी हमने अपने गमलों में से प्राप्त की। आप भी सोचिए, विचारिए और अगर मन करे तो अपनाइए।
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