महिलाओं के लिए जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाने का स्वर्णिम अवसर है रिटायरमेंट

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समय कितनी तेजी से बदलता है। कब बचपन बीत गया और किशोरावस्था को पार करके युवावस्था में पहुँच गए, पता ही नहीं चला। अपनी पढ़ाई-लिखाई, नौकरी, विवाह और बच्चे, फिर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनकी नौकरी, उनके विवाह, उनके बच्चे, जीवन की अन्य समस्याएँ, उनको सुलझाने की भागदौड़ में एक दिन नौकरी से भी रिटायर हो गए। पर क्या रिटायरमेंट के साथ सब कुछ थम जाता है? नहीं, थमना तो नहीं चाहिए।

आशा रानी गुप्ता
पीतमपुरा, दिल्ली

       रिटायर के कुछ दिन बाद की बात है कि जैसे ही मैं बैंक जाने के लिए तैयार होकर घर से निकली एक पड़ोसन ने पूछा, ‘‘आप तो रिटायर हो चुकी न? अब कहाँ जा रही हो तैयार होकर? क्या कोई दूसरी नौकरी पकड़ ली है?’’ उसने ऐसे ही कई और प्रश्न एक साथ दाग दिए जिनमें कोई उत्साह अथवा ताज़गी की बात नहीं थी।

       क्योंकि मुझे बैंक जाना था और वहाँ पहुँचने की जल्दी थी फिर भी संक्षिप्त-सा जवाब निकल पड़ा कि मैं नौकरी से रिटायर हुई हूँ ज़िंदगी से नहीं। लेकिन उसके द्वारा पूछे गए प्रश्न मेरा पीछा करते रहे। मुझे रिटायरमेंट और रिटायर्ड लाइफ के बारे में सोचने पर मजबूर करते रहे। क्या रिटायर्ड व्यक्ति का घर में पड़े रहना ज़रूरी है? वो जहाँ भी जाए क्या उसे पहले की तरह ही तैयार होकर घर से निकलने की बजाय मैले-कुचैले या बिना प्रेस किए कपड़े पहन कर ही बाहर चले जाना चाहिए? क्या रिटायरमेंट के बाद निष्क्रिय होकर घर में बैठना अथवा कोई दूसरी नौकरी पकड़ लेना ये दो ही विकल्प बचे हैं? क्या कोई ऐसा विकल्प नहीं जिससे रिटायरमेंट के बाद जीवन में कुछ नया, कुछ बेहतर, कुछ संतुष्टिप्रदायक करने को मिल जाए?

     क्या रिटायरमेंट जीवन का अंत है? नहीं। रिटायरमेंट जीवन का अंत नहीं होता बल्कि एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना होता है। व्यक्ति इसे स्वयं स्वीकार करे ओर आगे बढ़े तो इसमें ज़्यादा आनंद है। कई लोग सोचते हैं कि रिटायरमेंट के बाद बाहर घूमने जाने, अच्छे कपड़े-जूते पहनने या स्वयं को मेंटेन करने की क्या ज़रूरत है? इसी सोच के कारण कुछ लोगों का जीवन अत्यंत नीरस हो जाता है। जब हम अपने आपको मेंटेन करके रखते हैं तभी जीवन में सक्रियता बनी रहती है और इसी सक्रियता के कारण हम चिंतामुक्त व स्वस्थ रहते हैं। निष्क्रियता अथवा उत्साहहीनता के कारण ही हम नीरस जीवनशैली अपनाकर बीमारियों को आमंत्रित करते हैं।

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     रिटायरमेंट का अर्थ जीवन के प्रति उपेक्षा नहीं होता। व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए सदैव स्वच्छ व क्रियाशील बने रहना चाहिए अतः उसके लिए घर के कामों के साथ-साथ बाहर के कामों में रुचि लेकर उन्हें करना आवश्यक है अन्यथा जीवन नीरस हो जाएगा। यदि एक रिटायर्ड व्यक्ति सलीके से रहता है तो न केवल उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली बना रहता है अपितु उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

       कई बार घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है और बच्चे अथवा घर के अन्य सदस्य कहते हैं कि अब आपको सिर्फ आराम करना है काम नहीं। उनकी भावनाएँ अच्छी हैं। उनकी भावनाओं को भी महत्त्व दीजिए लेकिन काम करना कभी मत छोड़िए। अपनी रिटायर्ड लाइफ़ किसी के निर्देशानुसार नहीं अपने स्वयं के विवेकानुसार व्यतीत कीजिए।

     रिटायरमेंट के बाद लंबे समय में जब तक हम घर व समाज के लिए उपयोगी होते हैं तब तक अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण बने रहते हैं। एक स्थिति ऐसी भी आती है कि बिना किसी उपयोगी कार्य के हम बोझ लगने लगते हैं। अतः घर व समाज में अपना महत्त्व बनाए रखने के लिए भी उपयोगी बने रहना ज़रूरी है और यह तभी संभव है जब हम कुछ उपयोगी अथवा अर्थपूर्ण कार्य करते हुए व्यस्त रहें।

       घर में छोटे बच्चे हैं तो होमवर्क करने में उनकी मदद करें व उन्हें कुछ उपयोगी कुशलताओं का अभ्यास करवाएँ। यदि घर में कोई भी काम नहीं है तो नियमित रूप से टहलने अथवा प्रातःभ्रमण की आदत बनाएँ। बागबानी अथवा अन्य कोई हॉबी विकसित करें। व्यस्तता व सक्रियता के साथ-साथ समय भी आराम से व्यतीत होगा।

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     यदि रिटायरमेंट के बाद आपके पास काफी समय है तो उसका अच्छा से अच्छा उपयोग कीजिए। हो सकता है नौकरी के दौरान काम के बोझ के तनाव एवं घर व ऑफिस में सामंजस्य बनाने की समस्या रही हो। रिटायरमेंट के बाद उससे पूरी तरह मुक्ति का अनुभव कीजिए। शेष जीवन को अपनी इच्छाओं व संसाधनों के मुताबिक एक उत्कृष्टता प्रदान करने की कोशिश कीजिए।

       पहले समय की कमी के कारण जो कार्य भाग-दौड़ में निपटाने पड़ते थे अब इत्मीनीन से कीजिए। घर को नए ढंग से सजाइए। दैनिक खानपान में कुछ विविधता पैदा कीजिए। हर क्षण को अधिकाधिक गुणवत्तापूर्ण व कलात्मक बनाने का प्रयास कीजिए। कभी-कभी पुराने मित्रों व सहकर्मियों को आमंत्रित कीजिए और पुराने दिनों को याद करने के साथ-साथ अपने प्राप्त अनुभवों का आदान-प्रदान कीजिए व हँसिए-हँसाइए। ये चीज़ें आपको तरोताज़ा करने में सहायता करेंगी।

     रिटायरमेंट के समय संस्थान अथवा सहकर्मी उपहार के रूप में प्रायः कुछ धार्मिक पुस्तकें व हल्के रंग की शॉल वग़ैरा देते हैं। रिटायरमेंट का ये अर्थ नहीं है कि अब हम भविष्य में अच्छे रंगीन कपड़े नहीं पहन सकते या मनपसंद पुस्तकें नहीं पढ़ सकते और शेष जीवन में सिर्फ तथाकथित धार्मिक पुस्तकें पढ़नी हैं, मंदिर जाना है अथवा भजन-कीर्तन में ढोलकी या चिमटा बजाना है।

       यदि आप अपने आध्यात्मिक विकास के लिए कुछ करना चाहते हैं तो बड़ी अच्छी बात है लेकिन रिटायरमेंट के दिन से क्यों? ये तो आप अपनी इच्छा से पहले भी कर सकते थे लेकिन कुछ लोग अपनी अज्ञानता के कारण रिटायर होने वाले लोगों पर ग़लत विचार थोपने का प्रयास करते हैं। इसे कभी स्वीकार मत कीजिए और पहले की तरह ही काम करते रहिए। ऑफिस तो जाना नहीं होगा लेकिन अन्य सभी आयोजनों में अवश्य जाते रहिए।

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     पठन-पाठन व लेखन में रुचि रखने वालों के लिए तो रिटायरमेंट एक बहुत बड़ा अवसर है। आप किसी पुस्तकालय में जाकर वहाँ पढ़ सकें तो ठीक है अन्यथा घर पर ही अच्छा साहित्य व प्रेरणास्पद साहित्य लाकर या मँगवाकर पढ़िए। आप बेशक रिटायर हो गए हैं लेकिन टाइम पास करने के लिए कुछ भी पढ़ने की बजाय केवल जीवनोपयोगी साहित्य ही पढ़िए जिससे आपको अपने जीवन को और ज़्यादा बेहतर बनाने की प्रेरणा मिलती रहे।

       जहाँ तक कपड़ों और सजने-सँवरने की बात है अपनी आय, इच्छा, रुचि, सुविधा व आयु के अनुसार अच्छे से अच्छे कपड़े पहनिए। इसका ये अर्थ नहीं कि यदि आपने जीवन भर सूट-सलवार या साड़ी पहनी हो तो अब आप जींस और ऐसे टॉप्स पहनें जिससे फूहड़ता प्रदर्शित हो और आप उपहास के पात्र बन जाएँ। यहाँ भी गुणवत्ता के साथ-साथ शिष्टता का ध्यान रखिए। हर चीज़ सुरुचिपूर्ण हो। वह आपके व्यक्तित्व को सँवारे न कि धूमिल करे। सादगी, शिष्टता व सौम्यता स्वयं में बहुत बड़ा फैशन है। हर कार्य समझदारी से इस प्रकार से करें जिससे जीवन एक उत्सव में परिवर्तित हो सके।

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