7 कारण, जो 60 के बाद आर्थिक समस्याएँ बनाती हैं

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गुप्ता जी और मिश्रा जी साथ-साथ राज्य सरकार में क्लर्क के रूप में 35 वर्ष सेवा देने के बाद एक साथ ही रिटायर हुए। दोनों की जॉइनिंग भी साथ ही थी। दोनों समवयस्क थे इसलिए उन दोनों के बच्चे भी लगभग एक उम्र के ही थे।

    एक साधारण पारिवारिक जीवन बिताते हुए दोनों का सपना बस इतना-सा था कि रिटायर होने तक बच्चे सेटल हो जाए अपने-अपने जीवन में ताकि रिटायर के बाद वे आराम और चिंता रहित जीवन बिता सके।

    गुप्ता जी के दो बेटे थे। दोनों प्राइवेट नौकरी करते थे और अपने परिवार के लायक कमा लेते थे। लेकिन छोटे बेटे की आमदनी कम थी। गुप्ता जी समय-समय पर उसकी आर्थिक सहायता करते रहते थे। रिटायर होने के बाद जो उन्हें पैसे मिले उनसे उन्होंने एक आरामदायक घर बना लिया। सोचा पेंशन से उनका और उनकी पत्नी का गुजारा आराम से हो ही जाएगा। लेकिन आर्थिक मंदी के दौर में उनके बड़े बेटे की नौकरी चली गई। छोटे बेटे की भी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। गुप्ता जी दोनों बेटों की जरूरत के अनुसार उनकी सहायता करने की कोशिश करते। एक तो उनके पेंशन पर दवाब पड़ने से उन्हें आर्थिक तंगी होने लगी। दूसरा दोनों बेटे एक-दूसरे भाई के साथ पक्षपात करने का आरोप पिता पर लगाने लगे। इससे पारिवारिक जीवन भी कलहपूर्ण हो गया।

    मिश्रा जी भी गुप्ता जी की तरह ही बेटियों की शादी कर और बेटों को व्यवसाय के लिए पैसे देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना कर निश्चिंत हो गए थे। उन्हें इस बात का संतोष था कि रिटायर होने तक वे अपनी सभी जिम्मेदारी निभा चुके थे। केवल एक ही जिम्मेदारी रह गई थी, वह था बेटे द्वारा लिए गए घर का बैंक लोन जो लिया था, उसकी किस्तें जा रही थी। उस समय बेटे ने सोचा था कि बैंक से लोन लेकर घर अगर खरीद लिया जाय तो किराया बच सकेगा और किराया वाला पैसा से लोन चुका देगा। लेकिन उसकी आमदनी इतनी पर्याप्त और स्थायी नहीं थी कि बैंक

लोन देता। इसलिए उसने पिता से सहायता माँगी। पिता इसके लिए तैयार हो गए। लेकिन यह उचित नही होता कि एक बेटे को घर खरीदने के लिए पैसे देते और दूसरे को नहीं। इसलिए बाद में जब उन्होंने रिटायर किया तब दूसरे बेटे को भी पैसे दिया। इस तरह उनके पास केवल पेंशन ही रहा, उसपर भी बैंक की किस्त जाती थी। ऐसे में जब पत्नी को लिवर की गंभीर बीमारी हुई तो इलाज के लिए फिर कर्ज लेना पड़ा। अब कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया कि अपने इलाज के लिए भी पैसे की कठिनाई महसूस करने लगे।

    इन दोनों से अलग दूबे जी की कहानी है। वे भी एक प्रतिष्ठित कंपनी में अच्छे पद पर थे। उनके तीन बेटियाँ ही थी। तीनों का विवाह अच्छे घरों में कर दिया था उन्होंने। कंपनी रिटायरमेंट के बाद पेंशन नहीं देती थी। लेकिन उन्होंने नौकरी में रहते ही एक अच्छा-सा घर बना लिया था। घर का एक मंजिल किराया पर लगा रखा था। जमा पूँजी भी अच्छी खासी थी। उन्हें विश्वास था कि किराया और बैंक से ब्याज इतना आ जाएगा कि उन्हें या उनकी पत्नी को कभी पैसों के लिए बेटी-दामाद के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा। लेकिन जिस किडनी की बीमारी ने उनकी जान ली उसने ही उनकी अधिकांश बचत को भी ख़त्म कर दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी के पास गुजारे का एकमात्र स्रोत घर का किराया ही था। अब उनकी भी तबीयत ठीक नहीं रहती है। तीनों बेटियाँ चाहती हैं कि माँ उनके पास आकर रहे। लेकिन आने से पहले उस घर को बेच कर पैसे तीनों को दे दे।

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    ये कुछ उदाहरण हैं। आम जीवन में ऐसे उदाहरण बहुत-ही सामान्य हैं। सारी तैयारियों के बावजूद उम्मीद के विपरीत किसी-न-किसी कारण से अधिक उम्र होने पर आर्थिक कठिनाई आने लगती है। ये उदाहरण भी ऐसे लोगों की है जिन्हें हम आर्थिक रूप से “सुरक्षित” की श्रेणी में रखते हैं।

    कुल वरिष्ठ जनसंख्या में ऐसे लोगों की संख्या मात्र 41.43% है जो किसी-न-किसी तरह का पेंशन पाते हैं। इस उम्र में आर्थिक सुरक्षा का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है किराया। करीब 12% वरिष्ठ लोगों का गुजारा किराया से मिलने वाले आय से होता है। शेष के पास आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं होता है। वे पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर रहते हैं।  

    एक अध्ययन के अनुसार देश में 26.03% आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और 20.3% आंशिक रूप से आत्मनिर्भर हैं। 53.4% पूरी तरह बच्चों पर निर्भर हैं।

वरिष्ठ जनसंख्या में आर्थिक कठिनाई के कारण

    वरिष्ठ लोगों के विषय में सामान्यतः यह माना जाता है कि वे दूसरों (सामान्यतः उनके बच्चे) पर निर्भर होते हैं लेकिन अध्ययन बताते हैं कि बहुत-से वरिष्ठ लोग इस उम्र में भी अपने बच्चों के बहुत से जिम्मेदारियों को उठाते हैं। पेंशन, किराया या अन्य कोई स्रोत से जो आय होती है उसका एक बड़ा हिस्सा लोन चुकाने या बच्चों और उनके परिवार के लिए खर्च करते हैं। भारत में इसके लिए कोई आँकड़ा उपलब्ध नहीं है लेकिन अमेरिका में हुए एक अध्ययन के अनुसार करीब 33% वरिष्ठ जनसंख्या वह कर्ज चुका रही है, जो उनके बच्चों ने लिया था। जरूरत के समय बच्चों की मद्द करना कोई गलत नहीं है लेकिन जब ऐसे में इन लोगों को स्वयं जरूरत पड़ती है तो वे कठिनाई में पड़ जाते हैं। कई बार उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया जाता है।

    अमेरिका के The National Council on Aging के सर्वे के अनुसार सेवानिवृति के बाद के लिए कम जमा पूँजी, लो इंटरेस्ट रेट, इन फ़िक्स्ड ईन्वेस्ट्मेंट्स, कर्ज, अनसेटल्ड बच्चे- 60 से अधिक आयु वर्ग के लोगों के लिए आर्थिक समस्या के मुख्य कारण हैं। इसी सर्वे के अनुसार एक-तिहाई वरिष्ठ लोग गिरवी रखे गए या लोन ले कर लिए गए घर के लिए अभी भी किस्त दे रहे हैं। ये घर या तो उनके बच्चों के लिए हैं, या बच्चों के बच्चों के लिए या फिर अपने लिए। Pew Research found के एक अध्ययन के अनुसार लगभग 40% वरिष्ठ जनसंख्या अपने बच्चों के बिलों के भुगतान में मद्द करते हैं। ये ऐसे खर्चें होते हैं जिसके लिए ये तैयार नहीं होते हैं। ऐसे कर्ज और खर्चें उनकी बचत और रिटायरमेंट योजनाओं पर प्रभाव डालतीं हैं।

    वास्तव में वरिष्ठ लोगों में आर्थिक कठिनाई के ये सात कारण सबसे सामान्य होते हैं:

1.  कम आय और कम बचत

2.  स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में वृद्धि

3.  घर की कमी या घर का लोन

4.  बच्चों की उनपर निर्भरता

5.  अपने वित्तीय दस्तावेजों और व्यवसायों को व्यवस्थित नहीं कर पाना

6.  वित्तीय धोखाधड़ी, और

7.  सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की कमी

          इनके अलावा ये कुछ अन्य कारण भी समस्या को बढ़ाते हैं- ऐतिहासिक न्यूनतम ब्याज दर, स्टॉक मार्केट की अस्थिरता, सामाजिक सुरक्षा की समस्या, प्रतिकूल जॉब मार्केट, युवा बच्चों का पलायन, अपर्याप्त आवास इत्यादि। यद्यपि वृद्धाश्रम कोई उचित व्यवस्था नहीं है लेकिन फिर भी इनकी संख्या जरूरत के अनुसार बहुत कम हैं। प्राइवेट वृद्धाश्रम इतने अधिक महँगे हैं कि साधारण व्यक्ति इसके लिए सोच भी नहीं सकता। अधिकांश राज्यों में सरकार द्वारा मिलने वाला वृद्धावस्था पेंशन भी आवश्यकता से बहुत कम है।

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संबंधों और संपत्ति में संतुलन

    उम्र होने पर जब शरीर साथ छोड़ने लगता है तब पैसे की जरूरत तो होती ही है लेकिन इससे भी अधिक जरूरत होती है किसी ऐसे व्यक्ति कि जो अपनापन, प्रेम और सम्मान के साथ आपकी देखभाल कर सके।

    कुछ लोग यह सोचते हैं कि अगर उनके पास पैसे होंगे तो इस स्थिति में जो उनकी देखभाल करेगा, उसे देंगे। कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि अगर उनके पास पैसे होंगे तो लोग उनकी देखभाल करेंगे। दूसरी ओर कुछ लोग अपने लिए कुछ नहीं रखते हैं, अपनी संतान की जिम्मेदारियों को ही निभाने में ही सारा खर्च कर देते हैं। लेकिन इन दोनों अतिवाद से बचना चाहिए। अगर बच्चों में अच्छे संस्कार दिए होंगे और उनकी भावनाओं और समस्याओं को समझा होगा तो इस बात की संभावना अधिक होती है कि वे जरूरत पड़ने पर अपनी जिम्मेदारी जरूर निभाएँगे।

    अपने बच्चों के बच्चों की चिंता उनके माँ-बाप को करने दीजिए। आप अपनी कर चुके हैं। कुछ पैसे जरूर बचाने का प्रयास करें। हो सकता है जब आपको जरूरत पड़े तब बच्चे चाह कर भी कुछ न कर पाएँ या ये भी हो सकता है कि वे आपकी जरूरतों को समझ ही नहीं पाएँ। इसलिए संबंधों और संपत्ति दोनों में संतुलन बनाना बहुत जरूरी है।

    पश्चिमी देशो से भिन्न हमारे देश में अभी भी अधिकांश वरिष्ठ व्यक्ति परिवार के साथ ही रहते हैं। विशेष कर जब दंपत्ति में से किसी के की मृत्यु हो जाती है तो दूसरा अपने बच्चों के साथ ही रहने  लगता है। ऐसे में कभी स्वेच्छा से, तो कभी दवाबवश वह अपनी संपत्ति या बचत उस बच्चे को देते हैं।

    देश में 2.2% वरिष्ठ व्यक्ति अकेले और करीब 10% अपने पति या पत्नी के साथ अकेले रहते हैं । वे अपने आय या बचत का अधिकांश भाग घर बनाने या खरीदने में लगा देते हैं। लेकिन बाद में बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं। कई बार तो उन्हें इस घर से भी बेदखल होना पड़ता है।

    यह संतुलन आय और व्यय में भी करने का प्रयास करें। अगर संभव हो सके तो कुछ अनावश्यक खर्चें को कम कर बचत के लिए प्रयास करें। अपनी पूरी संपत्ति, जैसे घर, या जमा पूँजी किसी को नहीं दें ताकि दूसरों पर निर्भर होने के अवसर कम रहें।

 स्वास्थ्य खर्चों को कम और व्यवस्थित करना

    ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है त्यों-त्यों स्वास्थ्य समस्याएँ भी अधिक होने लगती हैं। संतुलित भोजन, शारीरिक और मानसिक सक्रियता, उचित आराम, नियमित दिनचर्या अपनाना इत्यादि तरीकों से शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए प्रयास किया जा सकता है। इस उम्र में गिरने का ख़तरा और कभी-कभी बिना गिरे, हल्की चोट से भी हड्डी टूटने का ख़तरा हो जाता है। इसलिए गिरने से बचने के लिए विशेष रूप से सावधानी बरतनी चाहिए। तंबाकू, शराब इत्यादि जैसे मादक पदार्थों का सेवन भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इन कुछ प्रयासों से स्वस्थ रहकर स्वास्थ्य खर्च को कम करने का प्रयास किया जा सकता है। इससे शारीरिक और आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भरता के अवसर भी कम किए जा सकते हैं।

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    उपर्युक्त सावधानी बरतने पर भी कई बीमारियाँ हो सकती हैं। ऐसे बीमारियों पर खर्चों को कम करने के लिए स्वास्थ्य बीमा का उपयोग लाभदायक हो सकता है। इसलिए किसी-न-किसी तरह का स्वास्थ्य बीमा जरूर लें। 

आर्थिक दस्तावेजों को व्यवस्थित रखना

    माँ-बाप की आय या संपत्ति पर हिस्सा भी पारिवारिक कलह का एक बड़ा कारण होता है। बच्चे माँ-बाप पर एक-दूसरे के प्रति पक्षपात का आरोप लगाते हैं। माँ-बाप की मृत्यु के बाद बच्चों को दस्तावेज संबंधी कई परेशानियाँ भी होती हैं। अव्यवस्थित दस्तावेज होने से जब शरीर या दिमाग की क्षमता कम होने लगती है, तब भी परेशानियाँ आती हैं। इन दस्तावेजों के दुरुपयोग होने की भी संभावना होती है। इसलिए जमीन, घर, दुकान, व्यवसाय, बैंक अकाउंट, लॉकर, कर्जों का लेन-देन इत्यादि से सबंधित दस्तावेजो को शुरू से ही व्यवस्थित और सुरक्षित रखें ताकि जरूरत पड़ने पर आसानी से मिल सके। अब डिजिटल फॉर्म में इसे ऑनलाइन भी रखा जा सकता है।

    प्रयास करें कि आपके इस दुनिया से जाने के बाद भी आपकी संपत्ति को लेकर आपके घर में किसी तरह की परेशानी न हो, इसके लिए एक सही तरीका है, अपना वसीयत (Will) बना कर किसी विवाद की आशंका को कम कर देना।   

अपनी जिम्मेदारियों के लिए प्रतिनिधि चुनना

    कई लोग अपने सारे काम स्वयं ही करते हैं। वे किसी को अपना विश्वासपात्र नहीं समझते या किसी को अपना राजदार नहीं बनाना चाहते। ऐसे में जब उनके साथ आकस्मिक रूप से कोई दुर्घटना होती है, या शारीरिक या मानसिक क्षमता कम होने लगती है तो उनके आर्थिक कार्य अस्त-व्यस्त होने लगते हैं।

    इसीलिए किसी एक या अधिक व्यक्ति पर विश्वास करके उन्हें अपने कार्य थोड़े-थोड़े कर सौंपना शुरू कीजिए। इससे आपकी छत्रछाया में उसे उन चीजों को संभालने का अनुभव हो जाएगा। उसे सब कुछ पता रहेगा तो आपकी अनुपस्थिति में भी वह ठीक से व्यवस्थित कर पाएगा। साथ ही आपको भी उसकी विश्वसनीयता परखने का मौका मिल जाएगा। मान लीजिए आप कोई दुकान चलाते हैं या कोई व्यवसाय करते हैं। आपका लेन-देन किन लोगों से हैं, या आपके कितने फ़िक्स्ड डिपॉज़िट किस-किस बैंक में हैं, या आपने कहाँ-कहाँ निवेश किया हुआ है, जैसी जानकारी आपके अलावा भी आपके विश्वासपात्र किसी ऐसे व्यक्ति को होना चाहिए, जो जरूरत पड़ने पर आवश्यक कार्य कर सके।

    वरिष्ठ व्यक्ति धोखाधड़ी के भी आसान शिकार होते हैं। वर्तमान में कई वरिष्ठ व्यक्ति मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि का उपयोग करने लगें हैं। लेकिन कई बार वे इनके द्वारा मिलने वाले लोगों और संदेशों पर भी भरोसा कर लेते हैं और धोखाधड़ी के शिकार हो जाते हैं। वर्तमान में ये ऑनलाइन ठगी के एक सॉफ्ट टार्गेट बनते जा रहे हैं।

    इन चार मौलिक आर्थिक सावधानियों के साथ कुछ अन्य बातों को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है, जैसे; अधिक उम्र होने पर अधिक जोखिम वाले निवेश से बचें, प्रयास करें कर्ज न लेना पड़े, छोटा ही सही, पर एक घर अपने नाम से अवश्य रखें, घर में अच्छा वातावरण बनाए रखने का प्रयास करें, पड़ोसी और दोस्तों से मिलते-जुलते रहें, आवश्यक हो तो सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने का प्रयास करें। जब बच्चों के बच्चे हो जाए तो प्रयास करें उन्हें उनका स्पेस देने का। उनकी जिम्मेदारी अपने सिर पर कम लें। घर के मुखिया की भूमिका से अपने को धीरे-धीरे अलग कर लें और बच्चों के सलाहकार-मित्र की भूमिका में आ जाएँ।

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