60 की उम्र के बाद के लिए मेरी तैयारी 

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आप के शहर से…… न्यूज चैनल….अगर …..आप में से कोई इस व्यक्ति को पहचानता है। तो कृपया हमें संपर्क करें यह हमें मोहाली सेक्टर नंबर 5 के बस अड्डे पर बहुत ही दयनीय अवस्था में मिले हैं। उनकी हालत इस अवस्था में नहीं है कि यह अपने विषय में अपना घर और शहर का पता बता पाए। हम मानव सेवा केंद्र से बोल रहे है।

अजय ने फेसबुक देखते-देखते अचानक से आए इस वीडियो पर सरसरी-सी नजर डाली। यह पूरे वीडियो का अंत वाला हिस्सा था। बस मोहाली का नाम सुनकर वह थोड़ा सोच में पढ़ गया। उसने फिर से वीडियो रिवर्स करके देखना शुरू किया। उसे चेहरा कुछ जाना-पहचाना लगा…. पर समझ नहीं आ रहा था कि उसने उस व्यक्ति को कहां देखा था। दिमाग पर जोर देने पर भी उसे कुछ याद नहीं आ रहा था।

तभी आशा… की आवाज़ सुनाई दी ….आदि, पापा को बुला ला.. खाना तैयार हो गया है। लेकिन ना तो आवाज़ का आदि पर कोई असर था ….ना ही अजय पर। दोनों अपने फोन में इस कदर गुम थे कि….. घर में कोई तीसरा भी है इस बात का एहसास भी अक्सर उनके दिमाग से निकल ही जाता था।

तीसरी आवाज़ में आशा के स्वर में गुस्सा आ गया था। सब कुछ किया कराया मिलता है ….फिर भी इनको फुर्सत नहीं है कि फोन छोड़ कर खाना खा ले। आदि सारा दिन कानों में यह क्या….. इयरबड्स लगाकर रहता है। यह अच्छे नहीं होते…. कितनी ही बार वह यह बातें आदि से कह चुकी थी। लेकिन उस पर कोई असर नहीं था। कुछ नहीं होता ….. कह कर अक्सर निकल जाता। कभी-कभार आशा सोचती …भगवान ना करें…. कुछ हो जाएं…कितनी अजीब बातें सुनने में आती है….इन्हें आवाज़ भी सुनाई नहीं देती। अगर हमें कुछ हो जाए हम चीखते ही रह जाएंगे ….यह कानों में लगाकर आराम से फेसबुक देखता रहेगा या इंस्टाग्राम…… चलाता।

आए दिन कितनी वारदातें हो जाती है। इनके कानों तक कोई आवाज़ भी नहीं पहुंचेगी। इसी सोच में वह टेबल पर खाना लगा रही थी। तभी अजय खाने के टेबल पर पहुंच गया। क्या हुआ गुस्से में….. क्यों हो। हाल देख लो …..आदि के। सारा दिन कान में ठूंस कर कुछ नहीं सुनता ….बस फोन। मन में गुस्सा तो अजय के लिए भी था। घर आते ही फोन लेकर बैठ जाते हैं। कोई बात नहीं करता ….बस फोन पर उंगलियां ….घूमाते। सारा दिन कोई घर में उनके लिए काम करता रहे… इनको उस से कोई मतलब नहीं कि उससे भी कोई बात कर ले …वो तो सारे काम करके कभी…. खाना खा लो….कभी चाय पी लो बस यह सब ….. कहती ही रह जाती है और जब वह फोन लेकर बैठे तो …..तू तो सारा दिन फोन लेकर बैठी रहती है। अजय के लिए मन में भरा अपना गुस्सा ……आदि का नाम लेकर निकाल रही थी।              

कोई बात नहीं ……..बच्चा है। तभी अजय ने एक आवाज़ लगाई। आदि खाने की टेबल पर आ गया। आशा… ने एक नजर देखा ‘मम्मा पढ़ाई कर रहा था।’ खाना खाने को ही बोल रही थी। पढ़ता रह …..अजय ने बीच में टोकते हुए, कहा… खाना खा लो पहले ….अब क्यों कान में ठूंसा हुआ है…. मम्मा अब अपनी पसंद के गाने सुन रहा हूँ….. ‘टीवी भी तो लगा है’ आशा ने खीझते हुए कहा….. ‘नहीं वह तो आप लोग देख रहे हो। आपकी पसंद का प्रोग्राम।

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‘एक चीज देख लो अपनी पसंद का टीवी पर लगा कर… कान से तो निकाल ईयरफोन’

‘….मम्मा आप तो पीछे ही पड़ जाते हो।’ आदि अपनी प्लेट आगे कर खाने लगा।

खाना खत्म किया और अपने रूम में चला गया। कोई एहसास नहीं खाना कैसा बना और क्या बना है। और पिज़्ज़ा बर्गर पर उनके कितने कमेंट्स….. यम्मी निकलते हैं। पढ़ाई ऐसे कर रहे हैं जैसे हम पर एहसान कर रहे हो जब कमाने लगेंगे तब तो पता नहीं क्या होगा। आशा ने अपनी प्लेट आगे करते हुए खाना शुरू किया। तुम चिंता क्यों करती हो बच्चा है …..जिम्मेदारियां पड़ते ही समझ जायेगा।

आशा अब भी मन ही मन आने वाले समय के लिए चिंतित हो रही थी। अब आने वाली पीढ़ी में अहसासों की जगह कम ही है। अपना ही सोचने वाले हैं। कुछ कह दो मुंह बन जाता है। आशा फिर खुद को समझा खाने में व्यस्त हो गई।

काम खत्म कर लौटी तो…. देखा। अजय फिर फोन में व्यस्त था। आशा ने थोड़ी देर अपना मोबाइल देखा और अलार्म लगा के सो गई।

फोन देखते-देखते मानव सेवा केंद्र का एक और वीडियो सामने आया। आपको कुछ दिन पहले हमारा दिखाया वीडियो याद होगा। 70 साल के बुजुर्ग बहुत ही बुरी अवस्था में जिन्हें अपने घर और परिवार का भी याद नहीं था। आज मानव सेवा केंद्र की टीम एक हफ्ते बाद उनके घर पहुंची है यह बुजुर्ग जो हमें मोहाली सेक्टर 5 के बस स्टैंड पर कूड़े के ढ़ेर के पास बीमार हालत में मिले थे। यह उन्हीं का घर है। आपको बता दे कि यह सरकारी कॉलेज में फिजिक्स के प्रोफेसर के पद से रिटायर्ड हुए हैं। यह इनका घर है। आप देख सकते हैं कितना सुंदर घर रहा होगा। लेकिन यहां आसपास के लोग बता रहे हैं कि उनकी ऐसी हालत होने के बाद वह अक्सर घर से चले जाते हैं।

खुला घर देखकर कर चोर घर का सामान सब ले गए हैं। पत्नी और बेटा इनको छोड़कर विदेश में सेटल हो गए हैं। आसपास के लोगों को किसी को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।

पुराने चित्र दिखाए जाने पर अजय को सब याद आ गया। यह उसके फिजिक्स के प्रोफेसर है। उनकी यह दशा देखकर उसे बहुत ही दुख हुआ। इतने इंटेलिजेंट अच्छे प्रोफेसर का यह हाल ऐसे कैसे हो सकता है। वह इसी सोच में परेशान हो गया।

आसपास के लोग अपनी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दे रहे थे। कोई कह रहा था ‘नहीं …..उनकी पत्नी का देहांत हो गया है, बेटा चला गया है।’ किसी को उनके बारे में कोई पता नहीं था कि यह कब से इस डिप्रेशन का शिकार होकर इधर-उधर भटक रहे थे।

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प्रोफेसर सर के बारे में सोचते-सोचते अजय को नींद आ गई। सुबह जब ऑफिस के लिए बस पकड़ी तो दो सीट छोड़कर आगे एक सीट पर कंडक्टर का एक बूढ़े व्यक्ति के साथ टिकट को लेकर झगड़ा हो गया। वह कह रहा था उसके पास पैसे नहीं है और कंडक्टर उसको बस से उतारने की धमकी दे रहा था कि तुम लोग बस में चढ़ कैसे जाते हो। उनकी बातें सुनकर उसे रात प्रोफेसर वाली घटना जो उसने फेसबुक पर देखी थी फिर से याद आ गई। अजय ने कंडक्टर से पूछा ‘इनको जाना कहां है? आप मेरे से टिकट के पैसे ले लो।’ उसने टिकट के पैसे दिए।

जिस स्टॉपेज पे वह उतरा वह बुजुर्ग भी उतर गए। बस से नीचे उतरकर अजय ने बूढ़े व्यक्ति को पूछा ‘आपने कहां जाना है?’ चेहरे से वह बुजुर्ग आदमी काफी थके और दु:खी से दिख रहे थे। लग रहा था जैसे उन्होंने खाना भी ना खाया हो। अजय को उस बुजुर्ग आदमी में अपने प्रोफेसर दिखाई दे रहे थे।

‘अंकल आपने कहाँ जाना है?….. सामने एक चाय की रेहडी थी। उसने कहा ‘….. अंकल आपने चाय पीनी है?’ उन्हें चाय वाले के टेबल पर बिठाते हुए अजय ने चाय वाले को दो चाय का आर्डर दिया।

‘अंकल! आपने कहां जाना है?’ …..एक बार फिर अजय ने उनसे पूछा। उत्तर में बुजुर्ग ने कहा ‘बेटा मैंने अपना घर वृद्धाश्रम में जाना है।’

‘वृद्धाश्रम’ …….. नाम सुनते अजय की बात मुंह में ही रह गई। फिर उसने पूछा ‘क्या बात हुई अंकल आपके घर में… …’

‘नहीं बेटा, मेरे घर में सब है। लेकिन उस घर में अब मैं अपने आप को ढूंढ नहीं पाता हूँ।… … सारी जिम्मेदारियां पूरी कर दी है। सब अपनी-अपनी बात करते हैं।… … चार बेटे हैं। चारों बहुत अच्छा कमाते हैं। … … बहुत पैसा है। लेकिन मुझे अब उनके साथ नहीं रहना है।’

अंकल ने अपने बैग में से एक फाइल निकाली और पेपर दिखाते हुए कहा ‘यह मैं अपनी सारी प्रॉपर्टी ‘अपना घर’ को दे दूंगा। ताकि मेरे जैसे वृद्ध लोगों को कोई दिक्कत ना हो।

चाय पीने के बाद अजय ने एक आटो को रोका और उसे वृद्ध आश्रम ‘अपना घर’ कहकर वृद्ध को बिठाकर भेज दिया। ऑफिस चलते हुए सारे रास्ते अजय के दिमाग में प्रोफेसर सर का और वृद्ध दोनों की कहानी घूम रही थी। बहुत अजीब लग रहा था कि हमारा समाज इस कगार पर आ गया है।

क्या सच में नयी पीढ़ी अहसास खोती जा रही है? क्या सच में सारी जिंदगी काम करने और बच्चों के लिए जोड़-तोड़ करने के बाद 60 के बाद की जिंदगी ऐसी हो जाएगी? पैरों पर खड़े होकर पंख लेकर ऐसी उड़ान भरेंगे कि… … कोई भी वृद्ध व्यक्तियों का हाथ थामने वाला नहीं होगा?

अजय ने एक बार अपने बारे में सोचा। आज मेरी उम्र 50 साल है क्या अगले 10 साल बाद मुझे भी अपने बारे में ऐसा सोचना चाहिए कि मेरी जिंदगी ऐसी स्थितियों में ना आ जाए।

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इसी सोच विचार में सुबह से शाम हो गई। ऑफिस से घर के लिए निकला तो पार्क में मिश्रा जी बैठे हुए दिखाई दिए। अजय की नज़र उन पर पड़ी तो वह उनके पास चला गया। ‘चरण वंदना अंकल जी, आप को बहुत दिनों बाद देखा।’ दूध लेने जाते हुए दूध वाले की दुकान के साथ मिश्रा जी का घर होता था। वह अक्सर घर के बाहर खड़े होते थे।

‘आज अचानक बहुत दिनों बाद दिखे अंकल जी’ अजय ने कहा।

‘हां… बेटा जब से यहां से गए हैं, आना नहीं हुआ।’

‘अच्छा तो आप यहां नहीं रहते अब?’

‘नहीं बेटा, यह घर बेच दिया है। बेटे के नाम पर कर दिया था। उसने कहा बड़े शहर में चलते हैं। यहां बच्चों के भविष्य नहीं है। मेरे भी हाथ बंधे थे। क्या ….करता बड़े शहर में फ्लैट में ले जाकर बिठा दिया है। कोई किसी से मिलता नहीं ….इतनी भीड़ है कि कहीं जाने से भी डर लगता है कहीं खो ना जाऊं। अगर हिम्मत करके कहीं जाने की कोशिश करता हूं तो डर लगता है कि कहीं गिर गया …चोट लग गई ….तो घर वालों को और मुसीबत हो जाएगी।’ यहां बेटे के एक दोस्त की शादी थी। तो वह साथ ले आया।

आज से पहले अजय ने कभी भी ऐसी परिस्थितियों के बारे में सोचा नहीं था …..क्योंकि जिंदगी जो चल रही थी…. ठीक थी और हमेशा ऐसा ही चलेगी। यह हम…..आशावादी…. मान कर ही चलते हैं कि सब अच्छा ही होगा। लेकिन समय कौन-सी करवट ले ले। यह हम सोचने के लिए तैयार नहीं होते।

तभी फोन की रिंग बजी। उसकी सोच ने फिर विराम दिया। ‘हेलो शर्मा, कैसे हो आप?

‘आपने जो मॉडल टाउन में प्लॉट बुक करना है ….अपने बेटे का नाम बताया था। दरअसल मेरे दिमाग से निकल गया। जरा फिर से बता दे मैं बुकिंग फार्म भरने वाला हूँ।’

‘गुप्ता जी आप प्लॉट मेरे नाम पर ही कर दे। हमारे बाद सब …बच्चों का ही होगा।’

‘सही कहते हैं ….’ शर्मा जी ‘ठीक है।’

अजय ने एक लंबी सांस ली और घर की तरफ चल पड़ा। आशा ने दरवाजा खोला और बोली ‘यह आज इतने बड़े-बड़े डिब्बे क्या ले आए हो?’

“सेहत…..यह शूज़ ……”

“शूज़?” आशा ने हैरानी भरे स्वर में कहा।

“हां….अपने और तुम्हारे लिए। कल से हम दोनों सुबह की सैर को जाया करेंगे।” आशा हंसने लगी।

“आपको क्या सोच पड़ी अपनी सेहत की”, आशा ने कहा।

“और….. क्या। अपनी और तुम्हारी सेहत की…… सही रहेंगे तभी तो अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभा पायेंगे। ठीक? कल सुबह तैयार रहना।”

अजय ने फोन चार्जिंग पर लगाया, लंबी सांस ले मुस्कुराते हुए चेंज करने के लिए चल पड़ा। जैसे उसने 60 साल के बाद की तैयारी शुरू कर दी हो। 

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