“हो गए हम साठ के तो क्या हुआ
दिल तो बच्चा ही हमारा है अभी”

विवेक विहार, न्यू सांगानेर रोड,
सोडाला, जयपुर
जिस प्रकार हमने अपनी किशोरावस्था को “स्वीट सिक्सटीन” कह कर बुलाया था, बस बिल्कुल वैसे ही मैंने अपनी जाती हुई “प्रौढ़ावस्था” और आती हुई “स्वर्णिमावस्था” को भी “स्वीट सिक्सटी” कह कर पुकारा। सिक्सटीन का ‘न’ हटा कर मैंने अपने जीवन की सारी नकारात्मकता को निकाल कर फैंक दिया है।
हर सुबह उठते ही अपना खूबसूरत चेहरा आईने में देखा और दस बार बोला “मैं सुंदर हूँ, मैं स्वस्थ हूँ” और दिन का श्रीगणेश किया। घर के बाहर की सेवाओं से निवृत्ति ली है अपने जीवन से नहीं इसलिए सुबह की दिनचर्या में बस इतना ही बदलाव आया कि सुबह की चाय अपने जीवन साथी के साथ सुकून से पीना शुरू कर दिया है। बिस्कुट के साथ चाय की चुस्की अब आनंद देने लगी है।
सुबह-सुबह अखबार की हैडलाइन और कुछ नए समाचारों से खुद को अपग्रेड जरूर करती हूँ। जब सेवा निवृत्ति का समय आने लगा था तभी से संकल्प लिया कि अपनी लेखनी को फिर से धार देकर लिखना शुरू करूंगी सो कर दिया।
अब न कहीं जाने की जल्दी रहती है न किसी का दबाव। बच्चे अपने फैसले लेने लायक हो गए हैं तो जब हमारी राय की जरूरत होगी तो दे देंगे। अपने फैसलों में किसी की दखलंदाजी नहीं होगी, ऐसा निर्णय लेकर जिंदगी प्रफुल्लित वातावरण में चल पड़ी है।
हां एक और बात अपनी काया और अपनी माया का जरूर ध्यान रखती हूँ। बालों की सफेदी अब अखरती नहीं बल्कि चेहरे में तजुर्बे की चमक लाती है। घर के सुकून ने चेहरे को भी कांतिमय बना दिया है। कुछ लोग हताश होकर अपने शरीर को विकृत करने लगते हैं पर मैं स्वयं को हल्के-फुल्के व्यायाम से तरोताजा रखती हूँ। बचपन से ही मैंने अपने आप से प्यार करना सीखा है वो मेरे व्यक्तित्व में अभी भी झलकता है। जिंदगी हमारी है, उम्र से तजुर्बे लें और दिल को बच्चा ही रहने दें।
हां अपनों से प्यार करें। समय आने पर मदद करें, समाज से जुड़े, अपनी रुचि, अपने हुनर को पंख लगाएं क्योंकि कला और प्रतिभा की कोई उम्र नहीं होती। 60 के बाद तो जिंदगी की दूसरी पारी शुरू होती है इसे व्यथा न गंवाएं। सकारात्मक सोच से स्वीकार करें। खुशियां बांटें, हंसें, खिलखिलाते हुए अपना दायरा बढ़ाएं। मूक और एकाकी जीवन से बचें।
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