मिसेज सक्सेना को छ: महीने हो गए थे, यूँ उदासी ओढ़े । अब करतीं भी क्या.. अकेली..?
डॉक्टर सक्सेना अब न रहे।

लखनऊ, उत्तर प्रदेश
उनकी एकलौटी बहू शालिनी तरह-तरह से जुगत लगाती रहती कि माँ जी किसी प्रकार से खुश रहें, किन्तु वे शालिनी के समक्ष तो स्वयं को खुश प्रकट करती किन्तु वे उदास ही रहतीं। शालिनी से ये बात छिपी न थी। वो कभी पूजा-कीर्तन रखवाती तो कभी उनकी सहेलियों को निमन्त्रण देकर चुपके से सरप्राइज देने के बहाने बुला लिया करती।
जब-तक भींड-भाड़ का माहौल रहता तब-तक मिसेज सक्सेना सभी के मध्य खुद को सहज रखतीं, किन्तु एकांत पड़ने पर फिर वो उदासी की चादर में खुद को समेट लेतीं ।
हालांकि वे अपनी उदासी को बहु के ऊपर जाहिर नहीं होने देतीं, किन्तु जब बहू बेटी बन जाए तो वो सब कुछ भांप ही जाती है। एक दिन मिसेज सक्सेना अपने कक्ष में रखीं रखी पुस्तक की आलमारी को टटोल रही थीं। बुक सेल्फ में रखीं सारी की सारी पुस्तकें मिसेज सक्सेना ने पढ़ ली थी। वे टटोल कर देख रही थी कि कोई ऐसी पुस्तक उनके हाथ लग जाए जो उनकी पढ़ी हुई न हो किन्तु नैराश्य ही हाथ लगा।
शालिनी उनके लिए जब उनके कमरे में चाय लेकर आई तो उन्हें पुस्तक टटोलते हुए देख कर पूछी –
माँ, जी! कोई पुस्तक ढ़ूँढ़ रही हैं क्या?”
“हाँ, बेटा! ढूंढ़ तो रही थी किन्तु कोई ऐसी पुस्तक हाथ न लगी जो मेरी पढ़ी हुई न हो।”
“सारी पुस्तकें आप ने पढ़ ली है माँ जी?”
“हाँ बेटा, सारी पढ़ ली है।”
शालिनी के मस्तिष्क में सद्य: यह विचार कौंधा, कि मेरे दिमाग में ये बात आई क्यों नहीं, कि माँ जी को पढ़ना बेहद पसंद है। वे बैठकर किसी से बेकार की बातों में समय गँवाने से बेहतर पढ़ना पसंद करती हैं।
शालिनी ने कहा– “माँ जी! आप चाय पिजिए, मुझे कुछ जरूरी काम है जिसे कर के एक घंटे के भीतर वापस आती हूँ।”
शालिनी एक घंटे पश्चात जब वापस आई तो उसके हाथ में एक बड़ा-सा कागज का थैला था। उसे अपनी सासू माँ के हाथों में पकड़ाती हुई बोली ये लिजिए माँ जी! इसमें कुछ पुस्तकें हैं जो शायद आप को पसंद आएँ।
मिसेज सक्सेना ने थैले में से पुस्तकें निकाल कर देखने लगीं। देवी भागवत, मुन्सी प्रेम चंद, शरतचन्द्र और कुछ नए लेखिका और lलेखकों की किताबें थीं।
आश्चर्य मिश्रित चक्षुओं से देख मुस्कराती हुई मिसेज सक्सेना बोलीं- “तो, ये था तुम्हारा आवश्यक काम?
“जी, माँ जी! आप का असल साथी…. आप की पुस्तकें।”
मिसेज सक्सेना ने पुस्तकें आलमारी में रखते हुए कहा- “मेरी असल साथी तो तू है बहु! जो बिना बोले ही मेरे मन के भाव पढ़ लेती है।
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