
व्याख्याता (अंग्रेजी)
घोटिया-बालोद (छत्तीसगढ़
“अपनी नाक कटवाने के बावजूद तुम्हें बात समझ नहीं आई। तुमने औरत होकर औरत का वजूद नहीं समझा। धिक्कार है तुम्हारा औरत होना।” सीता के प्रत्युत्तर में शूर्पणखा ने कहा- “सीते! मैंने अपनी नाक नहीं कटवायी; बल्कि बलात काट दी गयी।” शूर्पणखा की बात सुन सीता से रहा नहीं गया। बोली- “परपुरुष के प्रति तुम्हारी बिगड़ती नीयत देख कदाचित लाज भी लजा गयी होगी। तुम्हारे औरत होने पर आखिर प्रश्नचिह्न क्यों?”
सीता कुछ और कह ही रही थी कि शूर्पणखा आँखे तरेरती हुई बोली- “हाँ, मैं एक औरत हूँ। मेरे हृदय में भी स्पंदन होता है। बस… चुप रहो। अब कुछ न कहना। मुझे कुछ पाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा न।”
शूर्पणखा के शांत होते ही सीता सर पकड़ कर बैठ गयी। बोली- “तब तो मैं अपने राम से बार-बार बिछुड़ती रहूँगी।